रागनीति के सर्वे में 80 फीसदी लोगों ने राजस्व के नक्शे पर जताया संदेह, इसके बावजूद नहीं जागे अफसर, अब तक शुरू नहीं की छानबीन।
खैरागढ़. जैन मंदिर के बाजू से निकला नाला राजस्व के नक्शे में भले ही न हो, लेकिन खरीदी-बिक्री के समय नाले को छोडक़र बाकी जमीन का सौदा हुआ है। बताया गया कि जमीन का कुल रकबा लगभग 6 एकड़ 30 डिसमिल है। जैन मंदिर ट्रस्ट को जमीन का टुकड़ा दान करते वक्त भी संभवत: नाले का जिक्र है।
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बताया गया कि संबंधित जमीन समाज के वरिष्ठ रेखचंद सांखला ने पारस सांखला से खरीदी थी। इसमें 80 डिसमिल आबादी वाली और बाकी खेत था। खुद रेखचंद सांखला ने बताया कि बेचने से पहले वह खुद उस जमीन पर गन्ने की खेती किया करते थे और मोटर लगाकर नाले के पानी से फसल सींचा करते थे।
उनके भाई लक्ष्मीचंद सांखला का भी कहना है कि रोड से पीछे नदी तक काफी चौड़ा नाला था। राजस्व के नक्शे से नाला गायब होने की बात सुनकर वे खुद हतप्रभ हैं। उनका कहना है कि ऐसा तो होना ही नहीं चाहिए।
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जैन मंदिर ट्रस्ट समिति के अध्यक्ष बबलू डाकलिया खुद मान रहे हैं कि उन्होंने बचपन से उस नाले को देखा है। दानपत्र में क्या लिखा है यह देखकर ही बता पाउंगा। हालांकि स्वयं व्यवसायी नरेंद्र बोथरा ने भी इस बात से इनकार नहीं किया है कि जब उन्होंने जमीन खरीदी तो वहां से नाला बहता था। वह यह भी बता चुके हैं कि 200 मीटर का नाला उन्होंने खुद के खर्च पर बनवाया है।
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इसके बावजूद राजस्व विभाग के अधिकारी नक्शे से गायब हुए नाले को ढूंढने में रुचि नहीं दिखा रहे हैं। आरआई इंद्रपाल टेकाम का कहना है कि मैंने रिपोर्ट दे दी है। इसके बाद इस बारे में कोई चर्चा नहीं हुई है। मौका मुआयना करने पहुंचे नायब तहसीलदार हलेश्वर नाथ खूंटे ने बाद में जानकारी देने की बात कही थी, उसके बाद उन्होंने कॉल रिसीव ही नहीं किया।
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सीमांकन हो तो निकल आएगा नाला
बताया कि उन्होंने तकरीबन 6 एकड़ 30 डिसमिल जमीन बेची है। तब वहां नाला था। 2005-06 की बाढ़ में उसी नाले के उफान में आने से टिकरापारा के मकान डूबे थे। जनता रेस्टोरेंट के भीतर तक पानी घुसा था। इसके बाद जमीन का समतलीकरण हुआ और नाला गायब हो गया। जानकारों का कहना है कि राजस्व विभाग चाहे तो सीमांकन कराकर वास्तविक स्थिति का पता लगा सकता है।
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नक्शे से किया गया है छेड़छाड़
इससे पहले रागनीति के सर्वे में 80 फीसदी लोग पहले ही राजस्व के नक्शे से छेड़छाड़ की आशंका जता चुके हैं। वरिष्ठ कांग्रेसी गुलाब चोपड़ा का भी कहना है कि उन्होंने बचपन से उस नाले को देखा है। अब देखना होगा कि नाले किनारे निर्माण की परमिशन किसने दी? पुराना रिकॉर्ड देखना पड़ेगा।
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