खैरागढ़. जब सेवा एक विचार बन जाए और संकल्प जनांदोलन का रूप ले ले, तब बदलाव की एक ऐसी कहानी लिखी जाती है जो वर्षों तक प्रेरणा देती है। खैरागढ़ की धरती पर 5 अप्रैल 2019 को शुरू हुआ “निर्मल त्रिवेणी महाअभियान” आज न केवल क्षेत्र की तीन प्रमुख नदियों — आमनेर, पिपरिया और मुस्का — की निर्मलता के संघर्ष प्रतीक है, बल्कि यह अभियान सामाजिक चेतना, जनसहभागिता और पर्यावरण संरक्षण की एक मिसाल बन चुका है।
नदियों से लेकर नगर तक — सेवा की व्यापक परछाई
छह वर्षों से अनवरत जारी इस अभियान की शुरुआत नदियों की सफाई और संरक्षण के लक्ष्य से हुई थी। लेकिन धीरे-धीरे यह केवल नदियों की सफाई तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसमें पौधरोपण, पौध संरक्षण, श्रमदान, रंगरोगन, जन-जागरूकता और सार्वजनिक स्थलों के सौंदर्यीकरण जैसी श्रृंखलाबद्ध गतिविधियाँ भी जुड़ती चली गईं। इन वर्षों में नदियों के किनारे बिखरी गंदगी साफ हुई, सूखी जमीनों पर हरियाली फैली और उपेक्षित सार्वजनिक स्थल, जैसे मुक्तिधाम, अस्पताल और खेल मैदान, नवजीवन से भर उठे। यह किसी सरकारी योजना का हिस्सा नहीं था — यह जनशक्ति का परिणाम था।
पौधरोपण से पेड़ तक : संरक्षण की सजीव यात्रा
अभियान की सबसे प्रभावशाली उपलब्धि केवल पौधे रोपना नहीं रही, बल्कि उन्हें संरक्षण देकर पेड़ के रूप में विकसित करना रहा। अभियान से जुड़े स्वयंसेवियों ने न केवल पौधे लगाए, बल्कि उन्हें समय पर पानी देना, उनके आसपास की घास काटना, झाड़ी हटाना और पौधों को पशुओं से बचाना जैसी ज़रूरी जिम्मेदारियां भी निभाईं। आज नगर के वे स्थान जो पहले वीरान और सूखे हुआ करते थे, अब छायादार वृक्षों से सजे हुए हैं। ये पेड़ आज राहगीरों के विश्राम स्थल हैं, बच्चों के खेलने का सुरक्षित वातावरण हैं, और शुद्ध वायु के सहज स्रोत बन चुके हैं।
मुक्तिधाम से अस्पताल तक — बिना सरकारी मदद के सुंदरता का संकल्प
निर्मल त्रिवेणी महाअभियान की एक विशेष बात यह रही कि इसने बिना किसी शासकीय अनुदान के सार्वजनिक स्थलों को नया रूप देने का बीड़ा उठाया। नगर के मुक्तिधाम की साफ-सफाई, रंगरोगन और पौधरोपण अभियान हो या शासकीय अस्पताल परिसर की साज-सज्जा — सब कुछ स्वयंसेवियों की मेहनत, समय और संसाधनों से ही संभव हो पाया। यह कार्य न केवल सेवा का प्रतीक है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि यदि समाज संगठित होकर कार्य करे तो सीमित संसाधनों के बावजूद भी बड़ी तस्वीर बदली जा सकती है।
जनचेतना का विस्तार — विचार से आंदोलन की ओर
इस अभियान की सबसे सशक्त उपलब्धि यह है कि इसने सेवा को एक विचार के रूप में स्थापित किया। अभियान से जुड़े कई स्वयंसेवी अब अलग-अलग समूहों और गांवों में छोटे-छोटे पर्यावरणीय और सामाजिक अभियानों का संचालन कर रहे हैं। कहीं स्वच्छता अभियान चल रहे हैं, तो कहीं पौधरोपण को पर्व की तरह मनाया जा रहा है। यह विचारधारा अब केवल एक शहर तक सीमित नहीं रही, बल्कि क्षेत्र के कई गांवों में इसकी प्रेरणा से स्वेच्छिक श्रमदान और पर्यावरणीय कार्यक्रम नियमित रूप से चल रहे हैं।
पर्यावरण संरक्षण की अमिट छाप
विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर जब वैश्विक स्तर पर पर्यावरण की चिंता की जाती है, तब खैरागढ़ का यह महाअभियान एक स्थायी समाधान के रूप में सामने आता है। यह दर्शाता है कि समाधान केवल नीतियों या बजट में नहीं, बल्कि जनभागीदारी और संकल्प में छिपा होता है। इस अभियान की खास बात यह रही कि इसमें हर वर्ग, हर उम्र और हर क्षेत्र के लोगों ने अपनी भूमिका निभाई — बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक, किसान से लेकर शिक्षक तक, पत्रकार से लेकर व्यापारी तक — सबने एक स्वर में इस विचार को जिया।
एक राह, जो हर नगर के लिए बन सकती है आदर्श
आज जब जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता की हानि जैसे संकट हमारे सामने हैं, ऐसे में “निर्मल त्रिवेणी महाअभियान” यह दिखाता है कि समाधान हमारे आसपास ही मौजूद हैं — ज़रूरत है तो बस उन्हें सामूहिक संकल्प से अपनाने की। यह महाअभियान खैरागढ़ नगर के लिए गौरव की बात है, लेकिन साथ ही यह देश के हर नगर, हर गांव के लिए प्रेरणा की जीवंत मिसाल है।