उपाध्यक्ष रामाधार रजक ने कहा- रियासतकाल से है नाला, अध्यक्ष पति गुलाब चोपड़ा बोले- बचपन से मैंने भी देखा है, अब देखना है कि कहीं नक्शे में छेड़छाड़ तो नहीं हुआ!
खैरागढ़. नगर पालिका ने नाला खोदकर निकाल लिया, लेकिन राजस्व विभाग के नक्शे से वह गायब है। रागनीति के सर्वे में हिस्सा लेने वाले 96.7% लोगों ने जैन मंदिर के बाजू वाले नाले को विश्वविद्यालय परिसर से निकलकर बहते हुए सालों से देखा है। इसमें से 80% लोग ये मान रहे हैं कि राजस्व के नक्शे से नाले का गायब होना कोई साजिश है।
जैन मंदिर के बाजू वाले नाले को लेकर दो विभागों मतभेद दिखाई दे रहा है। राजस्व के अफसर नक्शे को देखकर नाले के अस्तित्व को नकार रहे हैं, जबकि नगर पालिका उसी नाले के पूर्ण निर्माण की प्लानिंग कर रही है। नगर पालिका की सब इंजीनियर दीपाली तंबोली मान चुकी हैं कि वहां नाला है। Corruption की होगी जांच: SDM सहित पांच अधिकारी पाइप लाइन में ढूंढेंगे रेत-मुरुम
दो विभागों के अफसरों में इस मतभेद के बीच रागनीति ने नगर में गूगल फार्म के जरिए एक डिजिटल सर्वे किया। इसके जरिए नाले को लेकर लोगों की राय जानने की कोशिश की। इस सर्वे में 19 से लेकर 43 की आयु वाले 300 लोगों ने हिस्सा लिया। 15 से 20 लोगों ने वाट्सएप के जरिए अपनी राय दी। कुछ ने फेसबुक वाल पर मिम्स आदि के जरिए भी अपनी प्रतिक्रियाएं व्यक्त की। इसमें विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र भी शामिल हैं।
गूगल फार्म के जरिए इस सर्वे में हिस्सा लेने वाले ज्यादातर ने ये माना कि उन्होंने बचपन से नाले को बहते हुए देखा है। नाले की चौड़ाई को लेकर 33.3% लोग मान रहे हैं कि वह 20-25 फीट का रहा होगा, जबकि 20% का आकलन 15-20 फीट का है। वहीं 23.3% 12 से 15 और 10-12 फीट की चौड़ाई का अनुमान लगा रहे हैं। Corruption का कमाल-2: शिवमंदिर रोड व टिकरापारा को छोड़ मोंगरा में बनाया पुल, नक्शे से गायब हुआ नाला
चूंकि 96.7% लोगों ने नाले को बहते हुए देखा है, इसलिए राजस्व नक्शे से इसका गायब होना वे पचा नहीं पा रहे। इनमें से 80% को इसके पीछे साजिश की आशंका है। बाकी 20% में से 10 प्रतिशत लोगों कहते हैं उन्हें पता नहीं। बचे 10 प्रतिशत अलग-अलग राय दे रहे हैं। काश ! पानी को भी नक्शा दिखा देते साहब...
86.7% लोग कह रहे कमजोर राजनीतिक इच्छाशक्ति का परिणाम
सर्वे में शामिल लोगों में से 86.7% लोगों का कहना है कि यह कमजोर राजनीतिक इच्छाशक्ति का परिणाम है। बाकी 13.3% कहते हैं, उन्हें पता नहीं! सबसे बड़ी बात ये है कि इनमें से 56.7% लोगों को भरोसा है कि प्रशासन नाले को ढूंढ निकालेगा। ये लोग कह रहे हैं कि राजस्व अभिलेख में नाले का उल्लेख जरूर होगा। कुछ लोग जिला कार्यालय में ओरिजनल नक्शा होने का दावा कर रहे हैं। ऐसे भी हैं, जिन्होंने ग्वालियर में मूल दस्तावेज होने की बात कही है। पत्रकार शशिकांत शर्मा की मौत को लेकर प्रेस क्लब ने खोला मोर्चा,कलेक्टर और डीन से कार्रवाई की मांग
76.7% लोग चाहते हैं नाला गायब करने वालों को सजा मिले
सर्वे में शामिल 76.7% लोग चाहते हैं कि नाला गायब करने वालों को सजा मिले। वहीं 10% का कहना है कि सजा नहीं मिलनी चाहिए। बाकी 10% ने अलग-अलग राय दी है। इनमें से कुछ का तो यह भी कहना है कि सजा मिल पाना तो मुश्किल है, अगर मिल भी गया तो शायद ही कुछ फर्क पड़े। काश ! पानी को भी नक्शा दिखा देते साहब...
सजग हुई पालिका वरना डूबता टिकरापारा
राजनांदगांव-कवर्धा रोड पर जैन मंदिर के बाजू से बने नाले की वर्तमान स्थिति को लेकर राजस्व और नगर पालिका की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में है। राजस्व के अफसरों ने मौका मुआयना करने के बाद नाले के अस्तित्व को नकार दिया। वहीं बाढ़ की आशंका के चलते नगर पालिका ने दीवार तोड़वाई और जेसीबी से खोदकर नाले को बाहर निकाला। पालिका की इसी तत्परता के चलते टिकरापारा बच गया।
राजस्व विभाग के अफसर पढ़ें नाले से जुड़े चुनिंदा रोचक किस्से...
गन्ने और आम खूब खाए हैं: पूर्व एल्डमैन आलोक श्रीवास लिखते हैं, ‘तब मैं विक्टोरिया स्कूल में था। दोस्तों के साथ इसी नाले के किनारे-किनारे गन्ने के खेतों से होते हुए पीछे आम के बगीचे में जाया करते थे। खूब आम खाए हैं और गन्ने भी। नाले का पानी सीधे नदी में जाकर गिरता था। अतिक्रमण कर नाले को छोटा कर दिया गया है। रागनीति ने जनहित के मुद्दे को उठाया है, मैं उनके साथ खड़ा हूं।’
कुल्लू मनाली जैसा था वह इलाका: विधायक प्रतिनिधि शिरीष मिश्रा ने लिखा है, ‘वह इलाका खैरागढ़ का कुल्लू मनाली जैसा था। जल निकासी की वजह से वहां हाडक़ंपाने वाली ठंड पड़ती थी।’
नाले पर बना था लकड़ी का पुल: विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र डॉ. आनंद कुमार पांडेय लिखते हैं, ‘मुझे अच्छे से याद है, नाले से लगा एक तालाब था, जहां आज चित्रकला विभाग बना हुआ है। मूर्तिकला विभाग से ग्रंथालय तक जाने के लिए छात्रों ने ही उस पर लकड़ी का पुल बनाया था।’
खैरागढ़ का शिमला वहीं था: व्यवसायी जिनेश जैन का कहना है, ‘नाले की चौड़ाई 20-25 फीट थी। वहां मेरा बचपन बीता है। उसे खैरागढ़ का शिमला कहा जाता था। ठंड के समय बहुत बार मैं उस नाले में बैठा हूं।’
गन्ने की बाड़ी याद है: कांग्रेस प्रवक्ता समीर कुरेशी लिखते हैं, ‘जब से होश संभाला है, तब से नाले को जानता हूं। वहां मछली पकडऩे जाया करते थे। अब नाले पर कब्जा हो चुका है। उसे नाली बना दिया गया है।’
20 पार्षदों में से चार बोले, 16 खामोश रहे
14वें वित्त से जारी हुई थी राशि: उपाध्यक्ष रामाधार रजक का कहना है कि वहां रियासतकाल से नाला है। बचपन से जानते हैं। नाला निर्माण के लिए पूर्व में 14वें वित्त से राशि स्वीकृत कराकर निर्माण कराया गया था। कार्य प्रगति पर है।
जांच होनी चाहिए: सभापति सुबोध पांडेय, जो खुद अधिवक्ता भी हैं, ने लिखा है, ‘हम तो बचपन से देखते आए हैं। वहां नाला था। अगर नाला राजस्व रिकॉर्ड से गायब है तो यह गंभीर बात है, इसकी उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए। खैरागढ़ का पुराना नक्शा ग्वालियर में है। उसके हिसाब से जांच होगी तो सच सामने आ जाएगा।’
मैंने खुद मौके पर जाकर तोड़वाई दीवार: वार्ड पार्षद शेष नारायण यादव का कहना है कि मुझे अच्छे से याद है कि वहां गन्ने का खेत हुआ करता था। नाले पर बनी दीवार की वजह से ही तो पानी भर रहा था। मैं खुद मौके पर जाकर दीवार तोड़वाया हूं और जेसीबी से खोदाई करवाकर नाले का मुहाना खुलवाया हूं।
कहीं नक्शे से तो छेड़छाड़ नहीं हुआ: नगर पालिका अध्यक्ष के पति एवं वरिष्ठ कांग्रेसी गुलाब चोपड़ा का कहना है कि हम बचपन से नाला देखते आए हैं, जो सत्य है। इसके पहले जो नाले के किनारे निर्माण हुए, उसकी अनुमति किसने दी, यह भी देखना पड़ेगा। जनहित का मुद्दा है। नाले पर बनी दीवार की वजह से ही पानी रुक रहा था, इसीलिए जेसीबी भेजकर दीवार तोड़वाए। हमें तो परिस्थिति के हिसाब से निर्णय लेना पड़ेगा ना। किसी के भरोसे थोड़े ही बैठे रहेंगे। काश ! पानी को भी नक्शा दिखा देते साहब...
अब हमें नहीं दिखता नाला: पार्षद पति अय्यूब सोलंकी का कहना है कि दोस्तों के साथ उसी नाले पर जाकर बैठा करते थे। नाला तो हमने देखा था, लेकिन रोड पर पानी भरते कभी नहीं देखा था। अब नाला नहीं दिखता, हां रोड पर पानी जरूर नजर आ जाता है।