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बंकिम दृष्टि

बंकिम दृष्टि (81)

हम ऐसे ही हैं 

हमें फर्क कहाँ पड़ता है......?

 

पर हम भूल जाते हैं 

ये हमारा ही पैसा

वही

सुनो, सुनो, सुनो..!

‘सभी ध्यान से सुनो! जंगल पर आफत आई है। चिंता की खाई गहराई है। दरबार में सुनवाई

 

खैरागढ़ से लगा हुआ एक गांव है, दपका! वहीं का सीन पढ़िए/देखिए। घड़ी का छोटा कांटा 3 पर है

इंद्र का सिंहासन डोला। डोलना ही था। देवलोक में आपात बैठक बुलाई गई, लेकिन खैरागढ़ में अफसरों की कुर्सी टस

मुखरता लोकतंत्र की निशानी है। खुद दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने टूलकिट मामले में जमानत याचिका की सुनवाई मंजूर

सच मानिए, दाग उभर आए हैं। शायद, वर्दी वालों को न दिखाई दें, किन्तु आम जनता की नजरों से यह

किसान ने शिकारी से बचने के लिए तोते को चार सूत्र वाक्य सिखाए थे। तोते ने चारों रटे और जंगल

इतिहास गवाह है, कैसे मुट्ठीभर हमलावर रास्ते से गुजरते और दोनों तरफ खड़े लाखों लोग मूकदर्शक बने तमाशा देखते थे।

देखते ही देखते पांच साल बीत गए। परिषद की आखिरी बैठक भी आम रही। सोए हुए मुद्दों को जगाने वाला

कला के साधक परेशान हैं। सुर नहीं मिला पा रहे। मिलाएं भी तो कैसे, यह राग सिखाया ही नहीं गया।

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