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सरगुजा. औषधीय गुणों से भरपूर महुआ अब शराब ही नहीं सैनिटाइजर बनाने के भी काम आ रहा है। जशपुर की महिलाओं ने यह काम कर दिखाया है। खुद स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव इसकी तारीफ कर रहे हैं। उन्होंने महुआ सैनिटाइटर की तस्वीर ट्वीट करते हुए लिखा है कि आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है। जशपुर की महिलाओं ने महुआ से हर्बल हैंड सैनिटाइजर बनाया है। कोविड-19 से लड़ाई में यह बहुत उपयोगी साबित होगा।
आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है।
— TS Singh Deo (@TS_SinghDeo) April 21, 2020
जशपुर की महिलाओं ने महुआ से हर्बल हैंड सैनिटाइजर बनाया है। ये सैनिटाइजर कोविड से लड़ाई में बहुत उपयोगी साबित होगा। pic.twitter.com/BCnY2FKhY3
अब 18 नहीं 30 रुपए में महुआ खरीदेगी सरकार
इधर लॉक डाउन में वनोपज का संग्रहण करने वाले आदिवासियों को छत्तीसगढ़ सरकार ने बड़ी राहत दी है। अब राज्य सरकार द्वारा महुआ फूल को 18 रुपए प्रतिकिलो के बजाए 30 रुपये प्रति किलोग्राम की दर पर खरीदा जाएगा। छत्तीसगढ़ में 13 लाख तेंदूपत्ता संग्राहक परिवारों को लगभग 650 करोड़ रुपए संग्रहण के पश्चात दिया जाएगा। प्रदेश सरकार के इस निर्णय से कोरोना के इस संकट काल में वन क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासियों को लाभ होगा। छत्तीसगढ़ सरकार ने बीते साल आदिवासियों से 17 रुपए प्रति किलो की दर से महुआ और 45 रुपए की प्रति किलो की दर से आंवला खरीदा था।
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आयुर्वेद के अनुसार औषधीय गुणों से भरपूर है महुआ
महुआ औषधीय गुणों से भरपूर है। कुछ लोग महुआ के फूलों को सुखाकर चपाती या हलवे में भी इस्तेमाल करके खाते हैं। इसका वैज्ञानिक नाम मधुका लांगिफोलिया है। आयुर्वेद में महुआ के पेड़ के कई स्वास्थ्य लाभ हैं, इसमें कई औषधीय गुण मौजूद हैं। इसकी छाल, पत्तियां, बीज और फूल भी गुणकारी हैं। महुआ के फूल पीले सफेद रंग के होते हैं, जो मार्च-अप्रेल के महीने में मिलते हैं। महुआ के फूलों में प्रोटीन, शुगर, कैल्शियम, फास्फोरस और वसा होती है।
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जीवकोपार्जन का महत्वपूर्ण स्रोत है महुआ
लघु वनोपजों से परिपूर्ण छत्तीसगढ़ के वनांचल में रहने वाले आदिवासियों के लिए महुआ जीवकोपार्जन का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। इसके संग्रहण के बाद इसे सुखाया जाता है। फिर इसके समर्थन मूल्य पर बेच कर आदिवासी अपनी आजीविका चलाते हैं। भोर होते ही टोकरी लेकर जंगल जाने वाले आदिवासी भरी दुपहरी तक महुआ फूलों का संग्रहण करना और फिर उसे धूप में सुखाना, ये आदिवासियों की नियमित दिनचर्या में शामिल है।
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संकट की घड़ी में 15 करोड़ के वनोपज का संग्रहण
कोविड-19 महामारी के 21 दिनों के लाकडाउन में ही प्रदेश की महिला समूहों ने लगभग 15 करोड़ रुपए के 50 हजार क्विंटल वनोपज की खरीदी की है, जिसमें लाखों वनवासियों को लाभ मिल रहा है। वर्ष 2020 में समूह के माध्यम से 100 करोड़ रुपए का वनोपज क्रय करने का लक्ष्य रखा है। समूहों के ग्राम स्तर एवं हाट बाजार स्तर पर मौजूदगी से ही व्यापारियों को न्यूनतम समर्थन मूल्य से अधिक मूल्य देना पड़ रहा है, जिससे अन्य लघु वनोपज से ही 200-250 करोड़ रुपए अतिरिक्त संग्राहकों को प्राप्त होगा। संग्रहित वनोपज से राज्य में हर्बल एवं अन्य उत्पाद भी तैयार किए जा रहे है। पूर्व में इसकी बिक्री केवल संजीवनी केन्द्र से होती थी, अब इनकी सीजी हाट के माध्यम से ऑनलाइन भी विक्रय करने की व्यवस्था की जा रही है।
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