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छत्तीसगढ़ में आईएएस को खीर पूड़ी तो आईपीएस को दाल भात ✍️जितेंद्र शर्मा
मुखिया मुख सो चाहिए, खान पान को एक
पालै पोसै सकल अंग, तुलसी सहित विवेक
महाकवि तुलसी दास जी की यह पंक्तियां छत्तीसगढ़ में अभी कारगर दिखाई नहीं पड़ रही हैं। माना कि आईएएस और आईपीएस दोनों के कार्य अलग हैं, पर सरकार के लिए दोनों ही बराबर महत्व रखते हैं। इन्हें सरकार के दो हाथ की संज्ञा भी दी जा सकती है। एक परिवार के रूप में व्याख्या करें तो सरकार यदि पिता है तो आईएएस और आईपीएस उसकी दो संतानें हैं। अब जैसा कि तुलसी दास जी ने कहा है, पिता यानी मुखिया का यह फर्ज होता है कि वह अपनी संतानों का बराबर ख्याल रखे। उनके साथ किसी प्रकार का भेदभाव न होने दे। लेकिन यहां तो खुद मुखिया ही भेदभाव करते दिख रहे हैं। तो जिसके साथ भेदभाव हो रहा है उसकी नाराजगी भी जायज ही मानी जाएगी। यह बात अलग है कि वह लिहाज वश कुछ बोल, कर नहीं पा रहा है। पर मुखिया को तो उनके सुख-दुख, दर्द का एहसास होना ही चाहिए न।
सरकार का यह भेदभाव अभी दो दिन पहले ही उजागर हुआ है। आईएएस अफसरों के स्थानांतरण की एक जंबो सूची जारी की गई। इस सूची में एक ऐसे अफसर का नाम अग्र पंक्ति में था जिनकी सेवानिवृत्ति में चंद दिन ही बाकी हैं, पर मेहरबानी देखिए उन्हें उनके वर्तमान कार्यभार के साथ अतिरिक्त कार्यभार देकर नवाजा गया। कहा जा रहा है कि सरकार सेवानिवृत्ति के बाद भी उनकी सेवाएं लेने की इच्छुक है। कारण जो सुनने में आ रहा है वह है उक्त अफसर को अपने क्षेत्र में महारत हासिल है। पर सवाल खड़ा होता है क्या दूसरे आईएएस वह काम नहीं कर सकते? क्या उनकी योग्यता पर संदेह है? खैर इस बात को यहीं छोड़ते हैं। सरकार यदि मानती है कि वह बेहद योग्य है और प्रदेश को उसकी जरूरत है, तो उन्हें सेवा वृद्धि का लाभ दे दिया जाए। लेकिन हक होने के बाद भी कृपा आईपीएस पर क्यों नहीं की जा रही है?
सरकारी सूत्रों की मानें तो छत्तीसगढ़ पुलिस में डायरेक्टर जनरल के चार पद स्वीकृत हैं। लेकिन अभी इस पद पर केवल एक अफसर डीजीपी डीएम अवस्थी ही काबिज हैं। बाकी तीन पद रिक्त हैं। भाजपा शासनकाल में 1988 बैच के संजय पिल्लै, मुकेश गुप्ता और आरके विज को प्रमोट कर डायरेक्टर जनरल बनाया गया था। बाद में जब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी तो यह कहकर इनके प्रमोशन को अमान्य कर दिया गया था कि प्रमोशन को केंद्र की अनुमति नहीं मिली है। बाद में मुकेश गुप्ता पर अपराध दर्ज हुआ और उन्हें निलंबित कर दिया गया। और फिर दो अफसरों के प्रमोशन के लिए केंद्र से अनुमति मांगी गई। बताते हैं केंद्र सरकार ने दिसंबर में ही राज्य सरकार को अनुमति दे दी थी। इस लिहाज से जनवरी में ही वरिष्ठता क्रम के हिसाब से आरके विज और संजय पिल्लै को प्रमोट कर डीजी बना दिया जाना था। पर ऐसा नहीं किया गया है। है न भेदभाव वाली बात।
बात यहीं खत्म नहीं हो जाती। इन्हें प्रमोशन नहीं मिलने के कारण पीछे के अफसर एडीजी अशोक जुनेजा, आईजी प्रदीप गुप्ता, डीआईजी डीआर पैकरा, वरिष्ठ एसपी आरएन दास, बीएस ध्रुव और टी एक्का का प्रमोशन लटक गया है। पीएचक्यू के सूत्रों की मानें तो इनमें से अशोक जुनेजा ने पिछले साल ही आईपीएस के रूप में 30 साल की नौकरी पूरी कर ली है। इस लिहाज से वे भी डायरेक्टर जनरल पद के योग्य हो गए हैं। इसी प्रकार बाकी अधिकारी भी प्रमोशन के इंतजार में दिन गिन रहे हैं। कहने और बताने वाले यह भी चर्चा करते हैं कि पिछली सरकार में तो आईपीएस के एक पूरे बैच को समय से पहले ही प्रमोशन का लाभ दे दिया गया था तो आईपीएस के साथ भेदभाव क्यों? वैसे चर्चा यह भी है कि निलंबित आईपीएस मुकेश गुप्ता प्रदेश के मुखिया के निशाने पर हैं। और डीजी पद को सुशोभित करने की योग्यता रखने वाले अफसर जिनके बारे में कहा जा रहा है कि केंद्र ने भी हरी झंडी दिखा दी है, वे गुप्ता के ही बैच के हैं, और यही उनकी गलती है जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ रहा है। बहरहाल नया रायपुर में चर्चा गरम है सरकार आईएएस को खीर पूड़ी खिला रही है तो आईपीएस को दाल भात पर ही संतोष करना पड़ रहा है।
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