न्यायपालिका में अन्याय? ✍️जितेंद्र शर्मा
जस्टिस दीपक गुप्ता बुधवार को सेवा निवृत्त हो गए। वे सुप्रीम कोर्ट में जज थे। सेवानिवृत्ति पर फेयरवेल की परंपरा है। इन्हें भी दिया गया जो कोरोना काल के कारण थोड़ा जुदा रहा। यह आयोजन वीडियो कॉन्फ्रेसिंग के जरिए किया गया। इस मौके पर अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि देश का लीगल सिस्टम अमीरों और ताकतवरों के पक्ष में हो गया है। यह बात उन्होंने अपने अनुभव के आधार पर कही थी। आमतौर पर होता भी यही है। जब कोई कहीं से विदा होता है तो वह वहां की अपने अनुभव शेयर करता है ऐसे मौकों पर, जस्टिस गुप्ता ने भी यही किया तो क्या गलत किया। उनके इस उद्बोधन के बाद सोशल मीडिया में लोग टिप्पणी करने लगे हैं कि रिटायर होने के बाद उन्हें अक्ल आई, भ्रष्टाचार की शुरुआत ऊपर से होती है, जब तक न्याय से खेल रहे थे..तब क्या उनकी आत्मा मर गई थी, जब सिस्टम सुधारना उनकी हाथ में था तब उन्होंने कुछ क्यों नहीं किया आदि, आदि। अब समझ में नहीं आता कि ऐसी टिप्पणी करने वाले तथाकथित समाज सुधारकों की विचारों का क्या करना चाहिए। जो बिना पूरी बात जाने टिप्पणी कर देते हैं। उन्हें शायद यह नहीं मालूम है कि नाबालिग पत्नी की सहमति के बावजूद सेक्स को दुष्कर्म माना जाएगा जैसे कई अहम फैसले अपने तीन साल के सुप्रीम कोर्ट के कार्यकाल में उन्होंने देकर कथित सिस्टम पर ही प्रहार किया था।
ऐसा भी कतई नहीं है कि न्यायपालिका में भ्रष्टाचार नहीं होता। इसके भी कुछ प्रमाणित उदाहरण हैं। सिक्किम हाईकोर्ट के जज पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा तो उन्हें 2011 में इस्तीफा देना पड़ा। कोलकाता हाईकोर्ट के एक न्यायधीश पर वित्तीय गड़बड़ी पर महाभियोग का फैसला हुआ तो उन्हें भी इस्तीफा देना पड़ा। पटना हाईकोर्ट में तो ऐसा भी हुआ जब एक जज ने अग्रिम जमानत के मामले में आदेश देते हुए न्यायपालिका में भ्रष्टाचार और भाईभतीजावाद का आरोप लगाया था और तब 11 न्यायाधीशों की बैंच ने उक्त आदेश को निलंबित कर दिया था। ऐसे और भी कई उदाहरण आपको गूगल अंकल के साथ बैठने पर मिल जाएंगे जब न्यायपालिका में भ्रष्टाचार पर मुहर लगाते हैं। लेकिन जस्टिस गुप्ता की बातें इससे जुदा हैं। उन्होंने अपने उद्बोधन में सिस्टम को सुधारने की बात अपने अनुभव के आधार पर अपने जूनियरों से कही थी। ऐसा ही कुछ सर्वोच्च अदालत के मुखिया रहे जस्टिस खरे ने एक साक्षात्कार में स्वीकार करते हुए कहा था कि जो लोग यह दावा करते हैं कि न्यायपालिका में भ्रष्टाचार नहीं है, मैं उनसे सहमत नहीं हूं। इसकी तुरंत सर्जरी की आवश्यकता है। तो बात अब बिल्कुल साफ है जिस गगरी में जल भरा हो वह छलके तो बात समझ में आती है, पर जिसमें जल आधी हो वह छलके तो..।
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