खैरागढ़. जनपद पंचायत छुईखदान में हुए करोड़ों रुपए के फर्जी भुगतान मामले में अब लीपापोती की कोशिशें खुलकर सामने आने लगी हैं। पहले सचिव, सरपंच, ऑपरेटर, और अधिकारियों की मिलीभगत से पंचायतों को दरकिनार कर 65 फर्जी बिलों के जरिए 17 वेंडरों को करोड़ों रुपए का भुगतान किया गया, अब इस मामले में छोटे कर्मचारी को बलि का बकरा बनाने की तैयारी चल रही है।
लिपिक पर कार्रवाई की तैयारी, सीईओ को क्लीन चिट?
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार जिला पंचायत अब जनपद पंचायत के लिपिक लिकेश तिवारी को निलंबित करने की प्रक्रिया में है। वहीं पूरे मामले में जिनके डिजिटल सिग्नेचर (DSC) से भुगतान हुआ, वे तत्कालीन सीईओ रवि कुमार को बचाने की हरसंभव कोशिश की जा रही है।
सूत्रों के अनुसार, सीईओ ने जांच अधिकारी के समक्ष दिए बयान में कहा है कि उनका डीएससी लिपिक लिकेश तिवारी के पास सुरक्षित रखा गया था और उसी ने ऑपरेटरों पर दबाव डालकर सीधा भुगतान करवा दिया। ऑपरेटरों ने भी बयान में यही कहा है कि तिवारी के कहने पर ही उन्होंने अपने खातों में पंचायतों का पैसा मंगवाया।
जांच के नाम पर आत्ममुक्ति का प्रयास!
गंभीर सवाल तब खड़ा हुआ जब यह सामने आया कि पेपर में मामला उजागर होते ही सीईओ रवि कुमार ने खुद को जांच अधिकारी घोषित कर लिया और लिपिक एवं ऑपरेटरों के बयान दर्ज कर अपने पक्ष में रिपोर्ट तैयार कर ली। अब सवाल उठ रहा है कि जब जनपद सीईओ के हस्ताक्षर के बिना कैशबुक, गोस्वारा और भुगतान की प्रक्रिया पूरी ही नहीं हो सकती, तो क्या वह पूरे घटनाक्रम से अनभिज्ञ थे?
साफ है कि भुगतान प्रक्रिया में सीईओ की भूमिका सिर्फ हस्ताक्षर तक सीमित नहीं रही होगी। कैशबुक की प्रविष्टियां, भुगतान आदेश, कार्य की स्वीकृति और मदवार खर्च — इन सभी में सीईओ की भूमिका स्वाभाविक रूप से रहती है। फिर भी सारा दोष लिपिक पर डालकर उन्हें निलंबन की ओर धकेला जा रहा है।
बैकडेट में सहमति पत्र का खेल
यह भी सामने आया है कि जिन पंचायतों को दरकिनार कर भुगतान किया गया था, उन पंचायत सचिवों और सरपंचों पर दबाव बनाया जा रहा है कि वे पुराने तारीखों में सहमति पत्र तैयार करें। इन पत्रों में यह दर्शाया जा रहा है कि भुगतान उन्हीं की सहमति से हुआ। कैशबुक में भी बैकडेट एंट्री करवाकर पूरे मामले को कागजों में वैध ठहराने की कोशिश की जा रही है।
राजनीतिक हस्तक्षेप भी आया सामने
घोटाले की परतें खुलने के साथ ही अब कुछ स्थानीय नेता भी सक्रिय हो गए हैं। बताया जा रहा है कि ये नेता सचिवों और सरपंचों को सहमति पत्र देने के लिए मजबूर कर रहे हैं, ताकि दोषी अधिकारियों को बचाया जा सके। वहीं चार ऑपरेटर जिन्हें तत्काल प्रभाव से हटाया गया है, वे अब नेताओं की शरण में पहुंच गए हैं।
हालांकि सचिवों और सरपंचों में से कुछ ने जांच के दौरान दावा किया है कि उन्हें भुगतान की जानकारी ही नहीं थी। ग्राम पंचायत समबलपुर और सिलपट्टी के सचिवों ने बयान दिया है कि राशि सीधे वेंडरों को भेजी गई और उन्हें इसके बारे में बाद में पता चला। इस बयान से यह स्पष्ट होता है कि जनपद स्तर पर पंचायतों को अंधेरे में रखकर राशि का गबन किया गया।
जांच अधिकारी प्रकाश तराम ने बताया कि फर्जी भुगतान मामले में जांच प्रक्रिया अंतिम चरण में है और रिपोर्ट तैयार की जा रही है। उन्होंने कहा कि जांच पूरी होने के बाद विस्तृत रिपोर्ट सक्षम अधिकारी को सौंपी जाएगी।
वहीं, दोषियों पर क्या कार्रवाई की जाएगी, इस बारे में उन्होंने स्पष्ट करते हुए कहा, “यह तय करना मेरे अधिकार क्षेत्र में नहीं है। जांच रिपोर्ट में जो तथ्य सामने आएंगे, उसी के आधार पर संबंधित अधिकारी आगे की कार्रवाई करेंगे