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रायपुर. छत्तीसगढ़ की राजनीति का जाना-पहचाना नाम, अजीत जोगी। अब हमारे बीच नहीं रहे। शुक्रवार (29 मई 2020) को दोपहर साढ़े तीन बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। एक ऐसे IAS जो छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री बने। जिन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग में गोल्ड मैडल हासिल की, लेकिन IPS बने। फिर दो साल बाद IAS की परीक्षा में भी सफल रहे। फिर Collector की कुर्सी से CM के सिंहासन तक पहुंच गए। लच्छेदार भाषण और जुगाड़ की राजनीति उनकी सियासी पहचान बनी। कांग्रेस से मोहभंग हुआ तो क्षेत्रीय पार्टी छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस (छजकां) बनाकर प्रदेश की सियासत में अच्छी खासी दखल बरकरार रखी। प्रदेश की राजनीति में अंत समय तक उनका दबदबा कायम रहा।
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आप भी जानिए अजीत जोगी से जुड़े किस्से, जो उनके आसपास रहने वालों की जुबान में है:-
जब कलेक्टर जोगी को नेता बनाने पहुंचे दिग्गी राजा
बात 1985 की है। इंदौर के कलेक्टर बंगले में प्रधानमंत्री राजीव गांधी के पीए वी जॉर्ज का फोन आया। उन्होंने जोगी को ढाई घंटे का समय दिया। बोले- सोच लो! राजनीति में आना है या कलेक्टर ही बने रहोगे। दिग्विजय सिंह आएंगे तो उन्हें अपना फैसला बता देना। ठीक ढाई घंटे बाद दिग्गी राजा पहुंचे और अजीत जोगी नेता बन चुके थे। कुछ ही दिन बाद उन्हें ऑल इंडिया कमेटी फॉर वेलफेयर ऑफ शेड्यूल्ड कास्ट एंड ट्राइब्स का सदस्य बना दिया गया। इसके बाद उन्हें राज्यसभा भेजा गया।
गांधी परिवार के नजदीक आए, अर्जुन को बनाया गॉडफादर
राजीव की पसंद होने की वजह से जोगी गांधी परिवार के नजदीक आ गए थे। दिग्वजय तो पहले से ही उनकी सूची में थे। छत्तीसगढ़ से आदिवासी लड़के की तलाश जोगी के रूप में पूरी हुई थी, जो शुक्ल बंधुओं को चुनौती दे सके। फिर एक तेज तर्रार वाकपटुता में माहिर आईएएस को भला कौन हाथ से जाने देता। सीधी और शहडोल में कलेक्टरी की लंबी पारी खेल चुके जोगी ने अर्जुन सिंह को अपना गॉडफादर बना लिया।
उस वक्त मध्यप्रदेश में अर्जुन सिंह कांग्रेस के कद्दावर नेता थे। उनका हाथ सिर पर पाते ही जोगी ने दिग्गी राजा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया, जो उन्हें राजनीति में लेकर आए थे। 1993 में दिग्गी सीएम बनने वाले थे, तब जोगी ने भी अपनी दावेदारी पेश कर दी। इसके बाद दूरियां बढ़ती गईं। दोस्ती, दुश्मनी में तब्दील होती चली गई।
दिग्गजों गुत्थम गुत्थी में हाईकमान ने चुना आदिवासी नेता
केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए ने 1999 में सरकार बनाई। छोटे राज्यों की मांग के चलते जून 2000 में तय हुआ कि तीन नए राज्य बनाए जाएंगे। इसमें से एक छत्तीसगढ़ भी था, जिसे मध्यप्रदेश से अलग होकर बनना था। इस टुकड़े के साथ कांग्रेस में मध्यप्रदेश की राजनीति से अलग होने वाले 90 विधायकों में दिग्गज श्यामाचरण शुक्ल, विद्याचरण शुक्ल, राजेंद्र शुक्ल, मोतीलाल वोरा भी थे।
सवाल तो उठना ही था कि मुखिया कौन बनेगा? इसमें विद्याचरण सबसे आगे थे। छत्तीसगढ़ राज्य संघर्ष मोर्चा बनाकर उन्होंने ताकत दिखानी शुरू की। उनके साथ 12 विधायक मैदान में उतरे। दूसरी तरफ जोर लगा रहे थे मोतीलाल वोरा। गांधी परिवार से उनकी नजदीकियों के चलते उनकी दावेदारी भी तगड़ी मानी जा रही थी।
लेकिन हाईकमान ने दिग्गजों के बीच समन्वय बनाए रखने के लिए ट्रम्प कार्ड फेंका। नाम निकलकर आया अजीत जोगी का। आदिवासी का प्रमाण पत्र उन्हीं के पास था। हालांकि यह प्रमाण पत्र सालों विवादों में रहा।
खैर! आदिवासी सीएम की मांग पूरी कर कांग्रेस अपना गढ़ बचाए रखना चाहती थी और अजीत जोगी का इसका फायदा मिला। हाईकमान ने यह जिम्मेदारी दिग्गी राजा को सौंप दी, जिनके साथ जोगी का 36 का आंकड़ा था। शायद इसीलिए यह इलाज ढूंढा गया। क्योंकि विधायक तो दिग्गी राजा के साथ थे और दिग्गी राजा सोनिया गांधी को नाराज नहीं करना चाहते थे।
उन्हीं की बिछाई बिसात पर सारे मोहरे फिट किए गए और 31 अक्टूबर 2000 को अजीत जोगी छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री बने। तीन साल तक सत्ता चलाई। लेकिन तीन साल बाद चुनाव की घड़ी आई तो कांग्रेस के पास सीटों की संख्या कम थी।
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चर्चा में रहा जोगी का जुगाड़ भी...
मुख्यमंत्री विधायक खरीद रहे हैं
तब बीजेपी के पास 50 सीटें थीं और जोगी 37 सीटों में सिमट गए थे। उस वक्त जुगाड़ का एक स्टिंग ऑपरेशन चर्चा में रहा। दावा किया गया कि जोगी ने विधायकों को खरीदने की कोशिश की। टेप के सामने आते ही उन्हें कांग्रेस से पांच साल के लिए बाहर करने की सिफारिश की गई। पर सोनिया ने उन्हें निकाला नहीं। जनवरी 2017 में सीबीआई ने इस मामले में उन्हें क्लीन चिट दे दी।
मंतूराम टेपकांड के बाद बना जोगी कांग्रेस
2140 के अंतागढ़ उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी मंतूराम पवार ने ऐन वक्त पर पार्टी को बताए बिना नाम वापस ले लिया था। इसके बाद 2015 एक ऑडियो टेप सामने आया जिसमें खरीद-फरोख्त की बात थी। आरोप लगे कि टेप में अजित जोगी, उनके बेटे अमित जोगी और पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के दामाद पुनीत गुप्ता की आवाज थी। इस टेप में मंतूराम के नाम वापस लेने को लेकर बातचीत थी।
इसके बाद पार्टी हाईकमान ने अमित जोगी को कांग्रेस से 6 साल के लिए बाहर का रास्ता दिखा दिया। अजित जोगी को भी निकालने की सिफारिश हुई, लेकिन फैसले से पहले खुद जोगी ही पार्टी से अलग हो गए। फिर 23 जून 2016 को उन्होंने नई पार्टी छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस बना ली।
उनके दोहों की कायल थी जनता
जब कांग्रेस से नाराज खैरागढ़ राजपरिवार के देवव्रत सिंह ने पार्टी छोड़ी तो जोगी ने उनका हाथ थामा था। साल्हेवारा की सभा में पहुंचकर 12 साल सक्रिय राजनीति से अलग रहे देवव्रत को क्षेत्र का नेता घोषित किया था। तब उनकी सभा में अपेक्षा के अनुरूप भीड़ भी जुटी थी। जोगी ने चिर-परिचित अंदाज में दोहे सुनाए और सरकार पर तंज भी कसे थे।
दोहा था- ‘आधा ल छर दे, आधा ल दर दे। छत्तीसगढ़ कहूं जाए, मोर दोंदर ल भर दे।।’ (दोहे से पहले स्पष्ट किया कि ये मुख्यमंत्री के लिए है)
अपने चुनाव चिन्ह पर… ‘जब तक नांगर ल जोतबो नहीं तो खाबो कइसे? वही चिनहा ल लेके आए हवन।’
उनके इस अंदाज पर खूब तालियां बजी थीं। बाद में इसकी चर्चा भी खूब रही।
जीत की आस में दिखाया दमखम
उन्होंने हमेशा अपने दम पर राजनीति की। पार्टी को भी अपने दम पर खड़ा किया। इसी के चलते विधानसभा चुनाव 2018 में भी उन्होंने पूरा जोर लगाया। दमखम दिखाया। मायावती और वाम दलों के साथ गठबंधन किया। मायावती ने तो मुक्त कंठ से कह दिया था कि गठबंधन जीता तो मुख्यमंत्री अजीत जोगी ही बनेंगे, लेकिन युक्ति काम नहीं आई। जोगी कांग्रेस के तीन ही विधायक जीते। इसके बाद भी उन्होंने अपनी धमक बरकरार रखी।
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