निगम (Nigam), मंडलों (Mandal) में नियुक्ति के बाद कांग्रेस (Congress) असंतोष का बम फटने की है आशंका
रायपुर। छत्तीसगढ़ में 15 साल बाद सत्ता में लौटी कांग्रेस (Congress) के लिए एक पारी में अपने कार्यकर्ताओं और चुने हुए जनप्रतिनिधियों को संतुष्ट कर पाना संभव जान नहीं पड़ रहा है। यही कारण है कि डेढ़ साल से अधिक समय गुजर जाने के बाद भी सरकार निगम (Nigam), मंडल (Mandal) और आयोगों में नियुक्ति नहीं कर सकी है। जब भी नियुक्ति की बात उठी, किसी न किसी बहाने उसे टाल दिया गया। अब गले की फांस बने इस मामले पर सरकार गंभीर दिख रही है। असंतोष की आग ज्यादा न भड़के इसलिए संसदीय सचिवों की नियुक्ति पर भी सहमति बन गई है। दावा किया जा रहा है कि नियुक्ति के लिए प्रदेश स्तर पर नामों पर सहमति बन गई है और मुहर लगाने के लिए हाईकमान के पास भेजा गया है। घोषणा भी जल्द ही कर दी जाएगी। Also read: जोगी कांग्रेस नेता धर्मजीत सिंह ने कहा " मरवाही से अमित जोगी होंगे जेसीसीजे उम्मीदवार"
एक अनार सौ बीमार जैसी हालत वाली कांग्रेस (Congress) में आशंका है कि इन पदों के दावेदार तब तक ही शांत बैठेंगे जब तक लिफाफा खुल नहीं जाता। लिफाफा खुलने के बाद जैसे ही नामों की घोषणा होगी असंतोष फूट सकता है। हालांकि दाऊ इस दौरान अपनी नीतियों से असंतोष को दबाने में कामयाब रहे हैं, लेकिन कांग्रेस (Congress) के इतिहास पर गौर करें तो इसके लंबे समय तक चलने में संदेह होता है। वैसे भी 90 सदस्यों वाली छत्तीसगढ़ विधानसभा में 68 विधायकों के साथ कांग्रेस सत्ता में आई थी। दंतेवाड़ा सीट जीतने के बाद यह संख्या बढ़कर 69 हो गई है। इनमें से स्पीकर, डिप्टी स्पीकर और मंत्रिमंडल में शामिल 15 विधायकों को छोड़ दें तो बचे 54 विधायकों या तो मंत्रिमंडल में फेरबदल का इंतजार है या निगम, मंडल, आयोग में बैठने का। अब सरकार के पास संसदीय सचिव को जोड़कर भी इतने पद नहीं हैं सभी को एडजस्ट किया जा सके। इनमें कुछ सीनियर्स भी हैं जिनका सम्मान बनाए रखना सरकार के लिए आसान नहीं है। Also read: बड़ा फैसला: JEE मेन्स, JEE एडवांस व NEET की परीक्षाएं होंगी 1 से 27 सितंबर के बीच, देखिए क्या कह रहे हैं मंत्री पोखरियाल
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यह तो हुई बात निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की। इसके बाद पद की प्रत्याशा वाले संगठन से जुड़े कार्यकर्ताओं, पदाधिकारियों की सूची भी काफी लंबी है। इनमें वे लोग भी हैं, जिन्होंने पार्टी को जीत दिलाने में दिन-रात एक किया। साथ ही ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने पार्टी जब सत्ता में नहीं थी तब और चुनाव के दौरान फायनेंस कर पार्टी को संबल प्रदान किया। नि:संदेह ऐसे लोग भी सत्ता का अंग बनने लालायित होंगे ही। इसके अतिरिक्त उम्मीद वे भी पाले बैठे हैं जिन्होंने चुनाव के वक्त समझौता किया, विधानसभा और लोकसभा चुनाव में परास्त हुए। जाहिर है सत्ता का केंद्र बने दाऊ के लिए संख्या का यह गणित हल करना आसान नहीं रहा। इसलिए तो लंबा वक्त निकल गया। पर इसका हल तो निकालना ही पड़ेगा। नियुक्तियां तो देनी ही होंगी। क्योंकि प्रजातंत्र तो सभी जगह है। सवालों के बाण घायल कर देंगे। बहरहाल अभी दावा किया जा रहा है। लिस्ट बन गई है। हाईकमान के पास एप्रुवल के लिए भेजा गया है। वहां से आते ही पदाधिकारियों और संसदीय सचिवों की घोषणा कर दी जाएगी। Also read: रायगढ़ में कैश वैन लूटपाट का दुस्साहस करने वाले अंतर्राज्यीय गैंग के दो गैंगस्टर गिरफ्तार
दूसरी तरफ कांग्रेस (Congress) के भीतरखाने में संदेह मिश्रित चर्चा यह भी हो रही है कि जो सूची हाईकमान के पास भेजी गई है उस पर क्या भूपेश (Bhupesh), सिंहदेव (Singhdev), ताम्रध्वज (Tamradhwaj), महंत (Mahant) और प्रदेश कांग्रेस (Congress) अध्यक्ष सभी की सहमति है? हालांकि अभी तक ऐसा कोई बयान सामने नहीं आया है जिससे इस संदेह को बल मिलता हो। लेकिन पहले भी कई बार यह चर्चा आई गई हुई है कि पदाधिकारियों के नामों पर आपस में सहमति नहीं बन पा रही है जिसके चलते कई बार प्रदेश प्रभारी पीएल पुनिया (P L Puniya) को भी गुपचुप दौरा कर मामले में दखल करना पड़ा है। वैसे संभावना है कि सूची में गुटीय संतुलन का ख्याल रखा जाएगा। लेकिन बात यह भी उठी है कि संयुक्त मध्यप्रदेश (Madhyapradesh) में मंत्री रहे विधायक सहित कुछ वरिष्ठ विधायकों ने खुद को और अपने परिवार को इन नियुक्तियों से अलग रखा हुआ है। इसकी वजह उनकी नाराजगी ही मानी जा रही है।
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बहरहाल यह तो संभव ही नहीं है कि सभी को संतुष्ट किया जा सके। लेकिन यदि असंतुष्टों की संख्या ज्यादा हो गई तो..? असंतुष्ट यदि सरकार के भीतर से ही निकल गए तो..? दोनों ही परिस्थितियों में कार्यकर्ताओं की नाराजगी पार्टी को झेलनी पड़ेगी। दावेदारों की संख्या को देखते हुए पहले और बीते दिनों में प्रदेश सरकार में नंबर दो की हैसियत रखने वाले मंत्री के बयानों से दूसरे ऑप्शन, यानी दोनों दृष्टि से समस्या बनी हुई है सरकार के सामने। अब तक अपनी नीतियों से सत्ता का केंद्र बने दाऊ जी इस संकट का क्या और कैसे हल निकालते हैं यह तो वक्त बताएगा, लेकिन पार्टी और सरकार के अंदर इसे लेकर हलचल जरूर है। तभी तो प्रदेश में भाजपा की सरकार के दौरान संसदीय सचिवों की नियुक्ति का विरोध कर कोर्ट जाने वाली कांग्रेस (Congress) को अपनी सरकार में संसदीय सचिवों की नियुक्ति का निर्णय लेना पड़ा। हालांकि सरकार के वरिष्ठ मंत्री जो इस मामले को लेकर हाईकोर्ट गए थे उन्होंने भाजपा की ओर से उठे सवाल का जवाब देते हुए यह कहा है कि वो कोर्ट के निर्णय का सम्मान करते हैं। इसलिए संसदीय सचिवों की नियुक्ति उनकी सरकार कर रही है। अब मंत्री जी के इस जवाब में संख्या के गणित को हल करने की दिशा में पहल की मजबूरी तो स्पष्ट है ही।
अब थोड़ा पीछे चलते हैं। विधानसभा चुनाव के बाद 68 विधायकों के साथ जब कांग्रेस (Congress) प्रदेश में सामने आई थी तब हाईकमान को मुख्यमंत्री चुनने में कितने दिन लग गए थे, किसी से छिपा नहीं है। इसके पीछे कारण यह था कि कांग्रेस (Congress) ने यहां किसी चेहरे पर चुनाव नहीं लड़ा था। यह बात अलग है कि तब मुख्यमंत्री भूपेश बघेल प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष थे, लेकिन टीएस सिंहदेव भी कांग्रेस जन घोषणा पत्र बनाने वाली समिति के संयोजक थे। पार्टी को एकतरफा जीत दिलाने में दोनों नेतृत्व के योगदान को कम नहीं आंका जा सकता। तीसरी बड़ी ताकत ताम्रध्वज साहू थे। तब पहले खबर चली थी कि ताम्रध्वज साहू प्रदेश के मुख्यमंत्री होंगे, लेकिन भीतरखाने में सुलह हुई और उनका नाम पीछे हुआ। इसके बाद खबर चली कि टीएस बाबा के साथ ज्यादा विधायक हैं लिहाजा मुख्यमंत्री उन्हें बनाया जाएगा। इस दौरान हाईकमान में लगातार चर्चा होती रही और अंत में फैसला हुआ कि भूपेश मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। अब सत्ता की पूरी ताकत भूपेश के पास है। संगठन भी लगभग उनके ही कब्जे में है। लेकिन अब डेढ़ साल बाद सरकार के दूसरे ताकतवर मंत्री छटपटाने लगे हैं। कुछ असहज महसूस करने लगे हैं। तभी तो गाहे बगाहे उनकी पीड़ा फूट पड़ती है। इसे देखते हुए लोग अब सवाल करने लगे हैं कि जब मुख्यमंत्री पद के लिए एकराय नहीं बन रही थी तब क्या हाईकमान ने सचमुच यह निर्णय लिया था कि मुख्यमंत्री पद पर दोनों नेता ढाई-ढाई साल रहेंगे? इसमें सच्चाई क्या और कितनी है यह तो कांग्रेस हाईकमान जाने और जिनके बीच चर्चा हुई थी वो। लेकिन सवाल तो है। Also read: Fake Teachers: फर्जी कागजों के आधार पर नौकरी कर रहे 1427 शिक्षकों से होगी 900 करोड़ की वसूली
खैर वक्त अभी छत्तीसगढ़ में कांग्रेस (Congress) पार्टी और सरकार दोनों के लिए संभलकर चलने का है। पार्टी के नेता असंतुष्ट हुए तो कार्यकर्ताओं को एक सूत्र में पिरोए रखना कठिन हो जाएगा। वैसे संख्या बल के हिसाब से यहां मध्यप्रदेश जैसे हालात की संभावना तो कम है, लेकिन शरीर के किसी भी अंग के भंग होने या चोटिल होने का दर्द तो मस्तिष्क को ही महसूस करना पड़ता है। बहरहाल उम्मीद है बहुप्रतिक्षित सूची की घोषणा जल्द हो जाएगी और उसमें संतुलन में बराबर का होगा जिससे असंतोष का बम न फटे, फूलझडिय़ों की चिंगारी को तो संभाला जा सकता है और दाऊ जी इसमें अब माहिर भी हो गए हैं। Also read: रेलवे क्रॉसिंग पर ट्रेन और बस की टक्कर में 19 सिक्ख श्रद्धालुओं की मौत
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