×

Warning

JUser: :_load: Unable to load user with ID: 807

कुम्भकर्णी नींद में सरकार, नाले में डूब रहा जनाधार! ✍️प्राकृत शरण सिंह

'कुंभकर्ण, रामायण का अद्भुत किरदार था। बुद्धिमान था, और बहादुर भी। राक्षस वंश में जन्मा विशाल शरीर का मालिक अपनी भूख के लिए कम गहरी नींद के लिए ज्यादा जाना जाता था।’

जैन मंदिर के ठीक सामने हुए कथित सौंदर्यीकरण के पास लगी बेंच पर बैठकर गुनगुनी धूप का आनंद लेते 'कलमकार' की बुदबुदाहट पास से गुजर रहे 'सेठ जी' के कानों में पड़ी।

इसे भी पढ़ें: 14 घरों का गंदा पानी बहाने बनाया साढ़े 3 फ़ीट गहरा नाला

‘कुंभकर्ण… भूख… गहरी नींद..! ये क्या बड़बड़ा रहे हो मित्र, होश में तो हो?’, सेठ जी ने तशरीफ़ रखते हुए पूछा।

'कोशिश कर रहा हूं, सोई सियासत को कुंभकर्णी नींद से जगाने की।', कलमकार ने कहा।

'मैं कुछ समझा नहीं।', सेठ जी की जिज्ञासा बढ़ी।

'वोट मांगा था नगर विकास के लिए, जनता ने दिया। भरोसा किया। बदले में उन्हें क्या मिला? जब-जब जागे, तब-तब खाया और फिर गहरी नींद सो गए, कुंभकर्ण की तरह!'

'जैसे..?', सेठ जी ने बात आगे बढ़ाई।

'जैसे, जल आवर्धन योजना पर खूब हल्ला मचा। शिकायत हुई। पांच सदस्यीय टीम ने जांच की, लेकिन रिपोर्ट का बंद लिफाफा नहीं खुला, न मैडम ने जुबान खोली। मुट्ठीभर चने खाकर सारे घोड़े खामोश हो गए।'

'सुना हूं… दो ने तो पेटभर ठूंसा और डकार भी नहीं ली।', सेठ जी ने अपनी जानकारी जोड़ी।

'न जाने ये कमीशन का जाल कहां तक फैला है।'

'कहां तक मतलब… साहूकारों को मात दे रहे हैं, नेता! कमीशन को ही मिशन बना रखा है।'

'क्यों!!! कारोबारियों की नेतागिरी तो उस पर भी हावी है। उदाहरण सामने है, सारे नियम-कायदे इसी नाले में बहा दिए गए।', कलमकार ने तेवर दिखाए।

इसे भी पढ़ें: अवैध निर्माण पर चुप्पी और जैन मंदिर वाला अधूरा नाला बनाने 13 लाख का प्रस्ताव

'अरे भाई, नाला तो बनने वाला है ना। पालिका ने 13 लाख का प्राक्कलन तैयार किया है। तकनीकी स्वीकृति भी मिल चुकी है, कल ही पढ़ा मैं।', सेठ जी बचाव की मुद्रा में आए।

'मैडम को तो दिख ही नहीं रहा है। उनका अमला नाले का अस्तित्व नकार कर कागजी प्रमाण के लिए अड़ा हुआ है, जबकि कागजात तैयार करना उन्हीं का काम था।'

'बेकार की जिद लिए बैठे हो, नाला न हुआ, खजाना हो गया। नाले को कोई थोड़े ही ऊपर ले जाएगा।'

'देख-देख, यही नेतागिरी है। ये स्वभाव में आ चुका है, तुम्हारे भी। तर्क नहीं दे सकते तो कुतर्क पर उतर आते हो। आवाज दबाते हो। जानते तुम भी हो, हल्ला मचा तब 14 साल की खामोशी टूटी। वरना रियासतकाल का खजाना कब से लुट चुका था! '

'गलत बात। नीयत खराब थी नक्शे में नाले को न उभारने वालों की। राजस्व के अफसर चाहते तो मामला आईने की तरह साफ होता।'

'आईना पसंद हो तब ना! यहां तो चापलूसों की आंखों में देखकर संवरने का चलन बढ़ गया है। और सुनो, नीयत साफ होती तो 20 फ़ीट चौड़ा नाला दबाकर 22 लाख का प्रस्ताव नहीं बनाते।'

'...तो क्या ये सुनियोजित भ्रष्टाचार है। पहले समस्या को बढ़ाना, फिर उसका निदान करने सियासी चालें चलना।'

'दायरा और बड़ा है। डुबान क्षेत्र में बस्ती बसाने की योजना है। हालांकि उस बसाहट तक जाने के लिए नक्शे में कोई आम रास्ता नहीं।', कलमकार ने इशारा किया।

'मतलब, सरकारी कारिंदे अब नक्शे में रास्ता तलाशेंगे नहीं, बनाएंगे। तभी बसाहट की अनुमति मिलेगी।', सेठ जी समझ गए।

'चलो, आज की चौपाल समाप्त करते हैं।', कहते हुए कलमकार उठा।

'अरे रुको ज़रा! कुंभकर्ण अभी जागा नहीं है।', सेठ जी ने चुटकी ली और हाथ खींचकर वापस बिठा लिया।

'ये बात जनता जान चुकी है। पिपरिया के युवा गोवर्धन पूजा के दिन सम्मान करने वाले हैं, नेताओं का। सोशल मीडिया में ही पढ़ा था। तस्वीरें, तुमने भी देखी होगी। युवाओं ने कैसे रातों रात नाली का निर्माण कर आत्मनिर्भरता का सबूत दिया।', कलमकार का दिया जोर का झटका धीरे से लगा।

'ये तो राजनीति हो रही है। किसी ने उन्हें उकसाया होगा।', सेठ जी के मुख से सियासी बोल फूटे।

'कमाल है ना सेठ जी! नीति निर्धारकों की साजिश समझने में सालों लग गए और आम आदमी की राजनीति मिनटों में पल्ले पड़ गई। अगर ये राजनीति है तो यही सही।'

'राजनीति हर किसी के बस की नहीं है, कलमकार! अभी तुम चक्कर घिन्नी में फंसे नहीं हो। कभी फंसे, तो दाल-आटे का भाव पता चल जाएगा।', सेठ जी ने लगभग धमकी भरे अंदाज़ में कहा।

'फंसुंगा तब, जब कुंभकर्ण जागेंगे। गर ये सचमुच जागे तो मेरी दिशा में ही भागेंगे। दिशा सही पकड़ी तो पाशा ही पलट जाएगा। स्वहित की सियासत जनहित में परिवर्तित होने लगेगी। नीति का निर्धारण आम आदमी के लिए होगा, केवल राज करने के लिए नहीं!'

(कलमकार को बुदबुदाता छोड़ सेठ जी अपने रास्ते निकल चुके थे, कोई इससे भी जरूरी मसला हो शायद!)

खैर! रामायण में युद्ध के दौरान कुंभकर्ण को जगाने के लिए नाना प्रकार की तरकीबें लगाई गई थीं। इस चर्चा में सोई हुई सियासत की चिंता स्पष्ट है।

देखें ज़रा, 'घोडों' की नींद टूटी या सारे चना खाने के बाद अभी भी घोड़ा बेचकर सो रहे हैं।

इसे भी पढ़ें: अधूरे निर्माण पर चुप्पी और जैन मंदिर वाला नाला बनाने 13 लाख का प्रस्ताव

Rate this item
(2 votes)
Last modified on Wednesday, 04 November 2020 09:46

Leave a comment

Make sure you enter all the required information, indicated by an asterisk (*). HTML code is not allowed.