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कांग्रेस नहीं, जीती सरकार और हार गया जोगी परिवार ✍️प्राकृत शरण सिंह

प्रतिष्ठा का प्रश्न था, मरवाही उपचुनाव। वैसे ही लड़ा भी गया। जोगी परिवार का नामांकन रद्द होने से रोमांच बढ़ा। वे चुनाव नहीं लड़ सके, लेकिन दंगल में दखल जारी रखा। प्रचार के अंतिम क्षण तक जोगी कांग्रेस सुर्खियों में रही। पार्टी दो फाड़ हो गई। भाजपा-कांग्रेस के दिग्गजों की बयानबाजी का दायरा सिमट गया। दोनों तरफ से फ्रंट फुट पर छजकां के विधायक खेलते रहे। फिर चाहे लोरमी विधायक धर्मजीत सिंह हों या खैरागढ़ के देवव्रत सिंह।

भाजपा चुनाव लड़ी, किन्तु कांग्रेस और जोगी कांग्रेस ही आमने-सामने नजर आए। भाजपा को समर्थन के फैसले पर देवव्रत ने मोर्चा खोला। अमित जोगी को आड़े हाथों लिया। खुद को विचार से कांग्रेसी बताया और सरकार का गुणगान किया। उनके साथ आए बलौदा बाजार विधायक प्रमोद कुमार शर्मा। कोर कमेटी के निर्णय पर सवाल उठाए। जवाब दिया लोरमी विधायक धर्मजीत सिंह ने। कहा- दोनों सत्ता से प्रभावित हैं। डॉ. रेणु जोगी ने कहा- भारतीय जनता पार्टी के साथ यह गठबंधन इस चुनाव तक बरकरार रहेगा।

इससे पहले जोगी परिवार उपचुनाव के लिए पूरी तरह से तैयार था। खुद रेणु जोगी छोटी-छोटी बैठकों के जरिए जनसंपर्क में जुट चुकी थीं। घर-घर अजीत जोगी के फोटो की फ्रेम पहुंचाने की कोशिश हुई। लेकिन ऐन वक्त पर हाई पॉवर कमेटी ने अमित जोगी का जाति प्रमाण पत्र निरस्त कर दिया। फिर नामांकन रद्द कर दिया गया। चुनाव आयोग ने उनकी पत्नी ऋचा जोगी के जाति प्रमाण पत्र को भी कानूनी तौर पर सही नहीं माना। इसके बाद जोगी परिवार ने रणनीति बदली। गढ़ को बनाए रखने न्याय यात्रा की पहल हुई।

कृषि मंत्री रविन्द्र चौबे पहले ही कह चुके थे, ‘जब भी मरवाही में उपचुनाव होता है, कांग्रेस ऐसे ही लड़ती है।’ हालांकि इस उपचुनाव में सरकार ज्यादा सक्रिय दिखी। पूरा दांव इसी पर था कि कैसे जोगी परिवार की पारंपरिक सीट पर वर्चस्व बनाया जाए। मई के अंतिम सप्ताह में पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के निधन बाद मरवाही में उपचुनाव होना तय था। तब से ही रणनीति बनाई जा चुकी थी।

चुनाव से ठीक पहले सितंबर में बड़ी प्रशासनिक सर्जरी को भी इसी से जोड़कर देखा गया, जिसमें 11 वरिष्ठ आईएएस अफसर इधर से उधर कर दिए गए। इधर चुनाव के दौरान मरवाही को चार सेक्टर में बांटा गया। दस मंत्रियों के साथ 50 विधायकों की ड्यूटी लगाई गई। सांसदों, संसदीय सचिवों, विधायकों और पूर्व विधायकों को जिम्मेदारी सौंपी गई।

परिणाम सामने है। कांग्रेस को 38132 मतों से जीत हासिल हुई। डॉ. केके ध्रुव पहले राउंड से ही आगे रहे। सातवें राउंड तक तो उन्होंने 17390 की निर्णायक बढ़त बना ली थी। डॉ. ध्रुव को 83372 वोट मिले, जबकि भाजपा के डॉ. गंभीर सिंह 45240 वोट हासिल कर पाए। हालांकि कांग्रेस अभी भी 2018 में अजीत जोगी को मिले वोटों से पीछे है। तब उन्होंने अपने निकटतम प्रत्याशी को 45395 मतों से पराजित किया था। उपचुनाव के बाद दिग्गजों की बयानबाजी से भी जाहिर है कि चुनाव ‘सरकार विरुद्ध जोगी’ का ही रहा।

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा, 'मरवाही का उपचुनाव महज विधायक चुनने के लिए नहीं था, बल्कि यह मरवाही के साथ बीते 18 सालों तक हुए छल का जवाब देने की परीक्षा थी।'

अमित जोगी बोले, 'सीएम ने पद का खुला दुरुपयोग करके मेरे परिवार व पार्टी के दो अन्य प्रत्याशियों का नामांकन रद्द करवा कर चुनाव से बाहर कर दिया। प्रचार के दौरान घर में नजरबंद कर दिया।'

 

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Last modified on Wednesday, 11 November 2020 17:45

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