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मरवाही उपचुनाव में जोगी कांग्रेस मैदान से बाहर है, लेकिन पार्टी की अंतर्कलह ने चुनावी माहौल को गरमा दिया है। इस बिगड़े सुर का कुसूरवार ठहराया जा रहा है ‘राजा’ को! ऐसा है...? बिल्कुल नहीं!!! सरगम उनके खून में शामिल है और साधना उनकी दिनचर्या में। सियासी राग के पक्के ठहरे। सुर इधर-उधर हो ही नहीं सकते। ताल से भटकेंगे नहीं।
हां, ताल ठाेकेंगे जरूर! ठोक भी रहे हैं। जुबानी जंग के दांव-पेंच में पकड़ मजबूत है। तभी तो पिता के सिद्धांतों का हवाला देकर पुत्र को कटघरे में खड़ा कर दिया। कह रहे हैं, ‘तीसरी पार्टी का गठन ही भाजपा के खिलाफ हुआ था’। जबकि सियासी गलियारे में इसके ‘बी’ पार्टी होने की खबर पुरानी है। ‘दाऊ जी’ ने इसकी पुष्टि भी कर दी। कहा- ‘गठबंधन वर्षों से चल रहा था, पहली बार दोनों ने स्वीकार किया है।’
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आप सोच रहे होंगे, फिर ‘राजा’ का राग अलग कैसे? नहीं-नहीं… राग वही है, सियासी। फर्क सिर्फ मुरकी का है, वही किसी स्वर को सुंदरतापूर्वक घुमाते हुए दूसरे स्वर पर ले जाने की कला। समर्थन तो वे कांग्रेस के लिए ही मांग रहे हैं ना! लक्ष्य निर्धारित है। इसमें असमंजस नहीं। वहां पहुंचने का तरीका भले ही अलग हो। जैसे लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस प्रत्याशी के समर्थन में किए गए प्रचार को मुखिया के मुखारविंद से निकला आदेश बताना।
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विकास के लिए ही सही चुनाव जीतने के बाद से वह न बेसुरे हुए और न बेताले! तराने भी सधी हुई आवाज में सरकारी साज के साथ ही गाए। यह कहने में तनिक भी नहीं हिचकिचाए कि खून जांच कराने पर कोरोना निगेटिव आएगा और कांग्रेस पॉजिटिव। हुजूर, राजधर्म से बंधे हुए हैं और पार्टी जीत धर्म से। न्याय यात्रा जीत के लिए ही निकाली जा रही है, ‘बी’ नहीं तो ‘ए’ ही सही!
वैसे भगवा गमछे पर गुलाबी छींटों की कहानी विधानसभा चुनाव के दौरान लोगों की जुबान पर थी। राजनांदगांव में हुई भाजपा कोर कमेटी की बैठक में भी काफी बवाल मचा था। चर्चा पर परिचर्चा शुरू हुई। पदाधिकारी सीना जोरी करने के लिए भी पहुंचे। नेताओं ने समझा बात आई गई हो गई, किन्तु जनता के जेहन में वाकया आज भी जिंदा है।
‘राजा’ ने मन्द्र सप्तक (सबसे नीचे का शुद्ध स्वर समूह) का रियाज उसी दिन शुरू कर दिया था, जब कांग्रेस सत्ता में आई। विकास कार्यों की स्वीकृति के साथ कांग्रेसी स्वर आरोही (ऊपर उठने वाले सुरों का क्रम) हुए और जेसीसी के अवरोही (आरोही के ठीक उल्टा)। विज्ञापनों से हल व गुलाबी रंग का गायब होना इसका प्रमाण है।
लोकसभा के बाद नगरीय निकाय चुनाव के समय मध्य सप्तक (मध्य के शुद्ध स्वर समूह) का आलाप जोरों पर रहा। खैरागढ़ दरबार में मंत्रियों की आवभगत की तस्वीरें सुर्खियों में रहीं। ‘राजा साहब’ ने कांग्रेस प्रत्याशियों के पक्ष में प्रचार किया। यानी ‘बी’ पार्टी को त्यागा तो नहीं, लेकिन ‘ए’ पार्टी के विरोध में खुलकर सामने आए। अब तार सप्तक (सबसे ऊपर के शुद्ध स्वर समूह) में सत्ता का यशोगान, वह भी मरवाही चुनाव के दौरान, बनता ही है।
‘दाऊ जी’ के लिए मरवाही उपचुनाव नाक की बात है। वह खुद कह रहे हैं कि यह कांग्रेस की पारंपरिक सीट रही है। मतलब ये कि अगर ‘बी’ पार्टी के समर्थन बाद भाजपा जीती तो मरवाही में जोगी परिवार का वर्चस्व साबित हो जाएगा। वैसे ही जैसे खैरागढ़ में हुआ। यदि कांग्रेस को जीत मिली तो तार सप्तक का सुर लगाने वाले को भी श्रेय मिलना लाजमी है। भविष्य में फायदा भी मिलेगा।
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जीत-हार अपनी जगह है, यहां पर बात सधे सुरों में सियासी राग के प्रस्तुति की है। ‘राजा साहब’ ने यह साबित कर दिखाया है कि वे सियासी सरगम के सच्चे साधक हैं। माहाैल बनाने में उनका कोई सानी नहीं, फिर वह चुनावी जंग हो या जुबानी, कोई फर्क नहीं पड़ता!
वैसे भी ‘बी’ पार्टी के अस्तित्व पर मंडराता खतरा ‘राजा साहब’ भांप चुके हैं। इसलिए कह रहे हैं कि पार्टी का कैरेक्टर उन्हें समझ नहीं आ रहा। भीतर की खबर ये भी है कि चुनाव बाद शिकंजा कसने वाला है। फर्जीवाड़ा करने वाले धरे जाएंगे। अफसर ताक में हैं, और तैयारी भी पूरी हो चुकी है।