"हुकुम" नाम से ही बादशाहत का भान होता है .बादशाहत तो हुकुम लाल वर्मा में भी है, उनके चित्रों के माध्यम से रंगों की जो जादूगरी और लुकाछिपी का खेल देखने मिलता है, वह बहुत अद्भुत है, चाहे धान के खेत का हरा,सुनहरा, सुबह का लाल ,शाम का धूसर नारंगी ,लाल हो सकता है तो कभी जेठ का सूर्योदय तो कभी सावन का सूर्यास्त भी, वही पुस की गुदगुदाती मखमली दोपहर। Khairagarh की सियासत पर 'पंडित' का पंच
रंग, रूपाकार , तूलिका घात, के मिश्रण को अमूर्त का मूल कह सकते है. एक रचना बनाने के लिए रूप, रंग ,रेखा जो दुनियाँ में दृश्य रूप में स्वतंत्रता के साथ मौजूद हो सकती है।
कलर , टेक्सचर ,लाईट और शेड का जो ब्रस स्ट्रोक से रूप उभर कर आता है, वह किसी यथार्थ दृश्य का चित्रण है जो अमूर्त रूप में प्रकृति में विद्यमान होता है।
हुकुम के चित्रों में जो रूपाकर रेखाएं दिखाई देती है , उनकी शुरुवात , उनके बचपन (छतीसगढ़ राज्य में खैरागढ़ के पास लगभग 500 की आबादी वाला छोटा सा गांव "कट्टाहा नावांगांव" )से होती है , जो एक गली से दृश्यगत होकर है दूसरा छोर खेत में जाकर एक सैरा चित्रकार के चित्र के संयोजन की तरह लगता है,जहाँ धान के पौधे की कोमलता जो सावन -भादो में लाहलहाती फसल का हूबहू रूप हो जो हरे के साथ नीला आकाश का प्रितिबिम्ब खेत के पानी में दिखता है, वही खेत के बीच में बबुल, बेर व अर्जुन के पेड़ों का ठोस रूप भी है।वही महींन रेखांकन भी है जो अरहर के पौधे की तरह लहलहाता हुआ प्रतीत होता है ।
किसान परिवार से होने से चित्रकला को चुनना हुकुम लाल के लिए एक चुनौती को स्वीकार करना था, जहाँ आधुनिक कला का कोई वास्ता नही था। बचपन में ग्राम स्कूल में शिक्षा के बाद माध्यमिक शिक्षा के लिए गृहग्राम से जिला नगर राजनांदगांव में जाना ही उनके लिए कला में जाने की शुरुआत है । Khairagarh: बिफरे सांसद, तो रद्द करनी पड़ी नगर पालिका परिषद की बैठक
ग्रीष्मकालीन छुट्टीयो में 'चित्रकला शिविर' राजनादगांव म्युनिस्पल स्कूल से शुरुआत हुई, बचपन में ही सधे हुए हाथ होने से उनके पालक ने उच्च शिक्षा के लिए इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ में दाखिला कराया और इस तरह कला की दुनिया में एक किसान पुत्र का पदार्पण हुआ।
' चित्रकला' में स्नातक की शिक्षा के बाद एक- 'अनहोनी' , जिससे पूर्णरूप से कलाकर बनने की नींव पडी।असफलता में सफल कलाकार का भविष्य छुपा था, जिसने हुकुम लाल के जीवन को बदल दिया । स्नातकोत्तर (प्रथम वर्ष) में दुर्भाग्यवश सफल नहीं हो पाए और आगे की शिक्षा में अवरोध हो गया संयोग से कुछ और वरिष्ठ कलाकार साथियों ने भारत भवन भोपाल में जाकर कला साधना के लिए सुझाव दिया, भारत भवन में जाना जैसे- ' कला दुनिया' को जानना हुआ ।
हुकुम लाल जब भारत भवन गये तब जे. स्वामीनाथन (वरिष्ठ चित्रकार) से मुलाकात नहीं हो पाई लेकिन उनका कहना है कि जैसे- जे .स्वामीनाथन की खुशबू वहां मौजूद थी ,जो उनके लिए एक ऊर्जा का माध्यम बनी। भारत भवन में आरंभिक समय में ग्राफिक कार्यशाला में लिथोग्राफि(शिलालेखन) मध्यम में कार्य किया और यहीं से उनका कला श्वेत श्याम (ब्लैक एंड वाइट )चित्रण ,रेखांकन अमूर्त का प्रादुर्भाव हुआ। यही से उनके रेखांकनो ने आगे चलकर एक स्वतंत्र मौलिक शैली के रूप में विस्तार लिया।
उनके आरंभिक रेखांकन में उन्होंने ब्लैक एंड वाइट में कई परत दर परत तूलिका घात (ब्रश स्ट्रोक) से छाया- प्रकाश के मखमली पारदर्शी लालित्य को उभरा। एक वर्ष भारत भवन में कार्य के दौरान उन्हें बहुत से राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय कलाकार से सानिध्य प्राप्त हुआ, यही से कलाकार होने का मार्ग प्रशस्त हुआ। एक वर्ष भारत भवन में कार्य करने के बाद आगे की शिक्षा पूर्ण करने पुनः "इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय " खैरागढ़ आए और अपने भारत भवन के अनुभव से अपनी शैली को शशक्त बनाया ।स्नाकोत्तर के बाद कला के विस्तार के लिए दिल्ली को कार्यक्षेत्र चुना। दिल्ली में 10 वर्ष तक रहने के दौर में हुकुम की रचना को उत्कृष्ठ आयाम मिला, जिसमे की विभिन्न कलाकारों एवं कलादीर्घा से रूबरू होना एक नये अनुभव को विस्तार देना हुआ। यहां से ही उन्होंने विभिन्न रंगों के साथ प्रयोग करना जारी किया, फिर हुकुम लाल वर्मा अपने नाम (हुकुम)के अनुरूप, सच में ही बादशाह हो गये कला के ...रंगों के....। Khairagarh: बिफरे सांसद, तो रद्द करनी पड़ी नगर पालिका परिषद की बैठक
बहुत से नये कलाकारों को भी ऊर्जा मिली, की एक छोटे से गांव के व किसान परिवार का होने के बावजूद, हुकुम ने खुद को कला जगत में, छत्तीसगढ़ के एक सशक्त प्रतिनिधि के तौर पर 'आधुनिक समकालीन 'कलाकार के रूप में स्थापित किया।
हुकुम के चित्रों में एक रंग का प्रभाव ज्यादा होता है हरा है तो पूरा हरा, नीला है तो नीला , लाल है तो पूरा लाल ..... शुद्ध रंगों के बीच में भी कहीं-कहीं से झांकता सहयोगी रंग और विरोधी रंग भी जैसे नीले के साथ नारंगी तो कहीं हरा के बीच में पीला नीला भी , जैसे लुकाछिपी का खेल हो पेड़ों के बीच में झांकता सूर्य, सूर्य के समान लाल ।
इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ में मुख्यत: अधिकांश छात्र मानव -आकृति एवं पशु- पक्षी को ही अपनी चित्रांकन का विषय वस्तु के रूप में चित्रित करते हैं ।स्नातक की शिक्षा के दौरान हुकुम लाल के चित्रों में भी पशु पक्षी और मानव आकृति और प्रकृति चित्रण का समावेश रहा है, शिक्षा के समय में इन्हीं बातों का ज्यादा ध्यान रहता है , लेकिन हुकुम को बैकग्राउंड में लगने वाले रंग ज्यादा आकर्षित करते व उसे लगाने में जो ब्रश के संचालन में जो आजादी होती थी उसमें ज्यादा आनंद महसूस होता चाहे वह शिक्षकों द्वारा दिया गया डिमाष्ट्रेशन हो या अन्य कलाकारों द्वारा किए गए कार्य पर ध्यान केंद्रित करना रहा हो।
भारत भवन भोपाल जाना हुआ तो मूर्त और अमूर्त के द्वंद से उनको बाहर आने में सहायता मिली और फिर वह अपने आप को एक अमूर्त चित्रकार रूप में देखा। मुख्य रूप से हुकुम लाल का चित्र रचना का श्रोत रंग प्लेट में कई रंगों का मिश्रण करना रहा जिसे उन्होंने अपने कैनवास में प्रयोग करना आरम्भ किया तथा आसपास के दृश्य को भी।
हुकुम के चित्रों की चित्रण की शैली में बहुत उतार-चढ़ाव होता है, उनका तूलिका घात (ब्रश स्ट्रोक) कैनवास पर जब पड़ता है तो तूलिका दिखाई नहीं देती, जैसे रंगों का नृत्य चल रहा हो और जब वह शांत होता है तो लगता है ब्रश रखा है और रंग चल रहा है ।ऐसा लगता है कि कोई छत्तीसगढ़ का लोक नृत्य हो। तूलिका घात (ब्रश स्ट्रोक) इतना प्रबल होता है कि लगता है कि तेज पानी की धार.. जो एक खेत से दूसरे खेत में जाती है ,रेखांकन में ठहराव भी है जो खेत के बीच बीच में मेड़ के सदृश प्रतीत होता है।

हुकुम के अमूर्त चित्रों को देखने से ऐसा लगता है जैसे - हरे भरे खेत के बीच में बबूल का फूल या कोई खूबसूरत जंगली फूल हो , उनके पूरे रचना संसार में छत्तीसगढ़ के मौसम के अलग-अलग रूप दिखते है... कहीं पेड़ का ठूठ है तो कहीं लहराती फसल ,कहीं कटे हुए धान का भारा (गट्ठर)दिखाई पड़ता है। एक समय में एक रंग के बजाय ,सभी रंग के अलग अलग कैनवास पर चित्र बनाते है परंतु सभी का स्वरूप एक ही जैसा होता है, उनके चित्रों में रंग ही रेखा है ,उनका घनत्व चाहे कैसे भी हो, जो जीवन के विभिन्न स्वरूप का प्रतिबिंब है ।आरम्भिक चित्रों में केवल एक ही रंग होता था परतु हम इन रचना को मोनोक्रोम नहीं कह सकते , धीरे-धीरे इन्हीं रंगों में जीवन का उतार-चढ़ाव भी दिखाई देने लगा । ऐसा महसूस होता है जैसे ध्यान मग्न योगी ध्यान कर रहे हैं, चाछुष सौन्दर्य के अलावा अलौकिक सौन्दर्य का संगम है ।बाह्य और आत्मिक सुख मिलता है रंग चटक है किंतु सौम्य एवं ताजगी भी, जैसे फूलों में होती है, धान की लहलहाते फसल में होती है ,इस तरह हुकुम की रचना यथार्थ है और यथार्थ के साथ अमूर्त ।हुकुम का कहना है -"कला मेरे लिए दृश्य के साथ आत्मिक अनुभूति का माध्यम है।"
हुकुम के चित्रों को कैसे देखते हैं ये प्रेक्षक के ऊपर निर्भर है कि देखने वाले की आंख में सौन्दर्य है या नहीं उनके चित्रों को देखने जागरूक आंखों का होना भी जरूरी है ।यदि आप उनके चित्रों में रेखा व रंग देखते हैं, तो छत्तीसगढ़ के गांव के खेत- खलिहान के दृश्य -जो खैरागढ़ के आसपास है , वह दिखाई देगा ।यदि आध्यात्मिक ढंग से देखते है तो जीवन के कई पहलू व रंगो में एक सूफियानापन नजर आता है । दोनों ही स्थिति में चित्रों में अनुपम सौंदर्य है। गर्लफ्रेंड को प्रपोज करने के लिये खुद में लगाया आग, शख्स को ये कारनामा सोशल मीडिया में हो रहा है वायरल
हुकुम कहना है कि- "मेरे लिए खेत की भूमि भी कैनवास है जिसमें- धान,सोयाबीन,अरहर,गेंहू व चना आदि फसलें बो देते है, बुआई करते समय बीज पीले तो कुछ भूरे होते हैं फिर सभी फसलों में हरे हरे कोमल पत्ते आ जाने से पूरी तरह ढक जाता है सभी तरफ हरा और सिर्फ हरा दिखाई देता है धान पकाने से खेत सुनहरा पीला हो जाता है, कहीं-कहीं नीम बबूल के पेड़ भी हरे हरे दिखाई देते हैं खेत में दिखता आसमान नीले से कई शेड्स लिए होता है - "मेरे लिए चित्रों में आया रंग फसलों और खेतों का ही प्रतिबिंब है।"
वर्तमान में हुकुम लाल वर्मा अपने पैतृक गांव में प्रकृति की गोद में रहकर कला साधना में जुटे हैं।