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रहस्य और राेमांच के बाद सीख/ सत्या के कल्लू मामा यानी अभिनेता सौरभ शुक्ला के अभिनय ने ऐसा बांधा कि नाटक में 20 मिनट के ब्रेक के बावजूद टस से मस नहीं हुए दर्शक।
नियाव@ खैरागढ़
बर्फ, एक रात की कहानी। कश्मीर का एक ऐसा गांव जहां तीन साल पहले हुए हमले में सारे मारे गए। बचा सिर्फ एक परिवार। टैक्सी ड्राइवर गुलाम, उसकी पत्नी नफीसा और एक रबर का चायनीज गुड्डा, जिसे वे अपना बच्चा मानते हैं। उसी की बीमारी का इलाज कराने के लिए नफीसा के कहने पर गुलाम एक ऐसे डॉक्टर को लेकर आता है, जो पश्चिम बंगाल से आया कश्मीरी पंडित है।
खैरागढ़ महोत्सव में अभिनेता सौरभ शुक्ला निर्देशित नाटक ‘बर्फ’ एक रात की कहानी में डॉ. कॉल की भूमिका में खुद सौरभ रहे और नफीसा का किरदार निभाया अभिनेत्री साबिया सिद्धिकी ने। इन दोनों के बीच का संवाद दर्शकों को खूब भाया। नाटक के दौरान नफीसा की नाराजगी पर डॉ. कॉल की खामोशी से कॉमेडी निकली। बच्चे (चायनीज खिलौने) का बुखार देखने के लिए थर्मामीटर लगाते समय डॉ. कॉल का अभिनय और इंजेक्शन लगाने पर नफीसा की संवेदना ने खूब तालियां बटोरी। दोनों में संतुलन बनाने वाले गुलाम का किरदार जॉली एलएलबी में कश्मीरी पुलिस बने सुनील कुमार पालवाल ने निभाया। बड़ी बात ये कि दर्शकों ने किरदारों की कही बातों को वर्तमान परिस्थितियों से जोड़कर देखा और उसकी तारीफ की।
डॉ. कॉल ने डाली चायनीज गुड्डे में जान तो बची तालियां
नाटक के अंतिम क्षण में रुहों की मौजूदगी को नकारने और चमत्कार पर विश्वास नहीं करने वाले डॉ. कॉल ने चायनीज गुड्डे में जान डाल दी। इस घटना से नफीसा और गुलाम का चेहरा खिल उठा। इसके बाद सीख दी कि सच कुछ नहीं होता, वह केवल यकीन पर खड़ा होता है। यकीन है तो सच है।
उस्ताद राशिद से सीखने मंच के सामने जमीन पर बैठे छात्र
जैसे ही उस्ताद राशिद खां ने राग यमन छेड़ा डॉ. नमन दत्त ने संगीत के वरिष्ठ छात्रों को मंच के सामने ही बैठा दिया। इस तरह उस्ताद राशिद ने मंच पर तो प्रस्तुति दी, लेकिन छात्रों के लिए वे एक शिक्षक की भूमिका में नजर आए। उन्हीं को ध्यान में रखते हुए उन्होंने राग और बंदिशों का चयन किया।
समापन कार्यक्रम के अतिथियों ने ये कहा…
हम शांतिनिकेतन के करीब पहुंचेंगे
पूरा अंचल और पूरा देश जुड़ रहा है। कुछ सालों बाद इसका लाइव टेलिकास्ट हुआ करेगा, ऐसी कल्पना है। ऐसा लगता है कि हम शांतिनिकेतन के करीब पहुंचेंगे।
-देवव्रत सिंह, पूर्व सांसद
प्रयास से बने अच्छे कलाकार
भाग्य के भरोसे नहीं अभ्यास और प्रयास के जरिए अच्छे कलाकार बनें। प्रयास करना नहीं छोड़ना चाहिए। युवाओं को मन मुक्त होना चाहिए।
-विक्रांत सिंह, अध्यक्ष, जनपद पंचायत
खैरागढ़ को जिंदगी में भूल नहीं सकता
मेरा बेटा बच्चों को यहां की स्टोरी सुनाता है। पांच साल का पोता खैरागढ़ जाना चाहता है। जो यहां कुछ दिन रह गया, वो कभी खैरागढ़ को भूल नहीं सकता।
-डीके घोष, पूर्व कुलपति, पाटिल विवि, नवी मुंबई
(खैरागढ़ महोत्सव 2018 की खबर दैनिक भास्कर से साभार)
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