The RAGNEETI is periodical magazine and the news portal of central India with the political tone and the noise of issues. Everything is in this RAGNEETI. info@ragneeti.co.in
Owner/Director : Bhagwat Sharan Singh
Office Address : New Bus Stand, Shiv Mandir Road, Khairagarh. C.G
ऐसा है हाथ से बन रहे इस कागज का इतिहास/ तकरीबन सन 1500 में बाबर ने पहले चाइना पर अटैक किया। हार गए। चाइना ने उनके सैनिकों को जेल में डालकर कागज बनाने के काम दे दिया। पांच-दस साल बाद दोबारा हमला कर उन्हीं सैनिकों को जीतकर इंडिया ले आए। उदयपुर दरबार व जयपुर महाराजा ने उन्हें बसाया। तब से उनकी पीढ़ी कागज बनाने का काम कर रही है।
नियाव@ खैरागढ़
बाबर के साथ भारत आए मिर्जा परिवार ने कागज को खास से आम किया था। उसी परिवार की 20वीं पीढ़ी के सदस्य मिर्जा अखबर बेग आदिरंग महोत्सव में पहुंचे हैं। वे संगीत नगरी में अपनी 600 साल पुरानी कला का प्रदर्शन कर रहे हैं, जिसमें रद्दी का इस्तेमाल कर आसानी से कागज बनाया जाता है। चित्ताड़गढ़ राजस्थान से आए बेग कहते हैं कि 25 फीसदी जंगल कागज के लिए कट रहे हैं। नतीजा ये होगा कि 10-20 सालों में पेपर बेन हो जाएंगे। लेकिन इस हुनर के जरिए हम पेड़ बचा सकते हैं। इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय परिसर में चल रहे आदिरंग महोत्सव में बिहार की मधुबनी पेंटिंग, मेघालय के पारंपरिक परिधान, असम, मणिपुर और आंध्रप्रदेश आदि का हस्तशिल्प भी देखने को मिल रहा है। इसे देखने व खरीदने के लिए कला प्रेमियों की भीड़ जुट रही है।
फ्रांस, पेरिस से लेकर अमेरिका तक जाता है कागज/ मिर्जा बता रहे हैं कि रद्दी कागज के अलावा सन के पौधे से बने पुराने रस्से, कपड़े और सिल्क आदि का इस्तेमाल कर भी हैंड मेड कागज बनाया जा सकता है। वे शादी के कार्ड भी बनाते हैं। उनके बनाए कागज की उम्र एक हजार साल है। डायरी यहां 600 रुपए और बाहर 120 डालर में बिकते हैं। फ्रांस, पेरिस, जर्मनी, अमेरिका में भी इसकी सप्लाई होती है।
मेघालय में स्कूल चलाने वाली आस्की लाई हैं तगमंदा/ मेघालय में स्कूल का संचालन करने वाली आस्कीडोमे मोमन पारंपरिक परिधान तगमंदा और ज्वेलरी लेकर आई हैं। उनके साथ आए बोसमेन संगमा कहते हैं कि कॉटन, मूंगा, सिल्क आदि से बनता है तगमंदा और इसकी कीमत 200 रुपए से 20 हजार तक है। कम कीमत वाले तगमंदा टॉवेल के रूप में भी इस्तेमाल किए जाते हैं।
आंध्र का लेदर लैंप और असम का बांस शिल्प/ आंध्रप्रदेश के चिन्ना कुलायप्पा लेदर पपेट और लैंप लेकर आए हैं, जिसकी कीमत 400 से दो हजार रुपए तक है। इसी तरह असम के रितुराज बांस से बने ट्रे, कप-प्लेट, स्टैंड, फ्लावर स्टैंड, नाइट लैंप आदि लेकर आए हैं, जो सौ से दो हजार तक बिक रहे हैं। इस हस्तशिल्प मेले में कोलकाता, मणिपुर, बस्तर आदि की चीजें भी लोगों को लुभा रही हैं।
इस वीडियो में चित्तोड़गढ़ के मिर्जा को सुनें...
और इसे भी पढ़ें...
आदिरंग में थांग-ता, पाइका और बीन जोगी की झलकियां, आज बस्तर बैंड की धूम