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एक ही आयोजन बाद 55 लाख से 3 करोड़ पहुंचा खर्च,कभी 5 लाख में शुरू हुआ था महोत्सव Featured

ख़ैरागढ़ :- डोम का एरिया बढ़ने के बजाय आधा हुआ, फिर भी ख़ैरागढ़ महोत्सव 22 में खर्च सीधे 55 लाख से सीधे 3 करोड़ पहुंच गया। कभी ख़ैरागढ़ महोत्सव के पहले आयोजन में टेंट पर महज़ 5 लाख रूपए खर्च हुए थे। स्थानीय टेंट हाउस संचालकों ने काम मांगने विवि से संपर्क भी किया। लेकिन चूंकि पहले से नियत था कि काम बाहर ही दिया जाना है। इसलिए नियमों को ताक में रख दिया गया। ख़ैरागढ़ महोत्सव बीते 8 वर्षों से होता आ रहा है। लेकिन पिछले साल किए गए बंदरबाट की वजह से इस साल महोत्सव में विराम लग गया। 2022 के पहले ख़ैरागढ़ महोत्सव में डोम और भोजन का अंतिम भुगतान लगभग 40 लाख रूपए तक किया गया था। लाइट,साउंड और अन्य खर्च को मिलाकर अधिकतम 55 लाख तक हुआ। पर इस बार के खर्च ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। 


एरिया घटा,पर खर्च बढ़ा


बीते सालों तक लगभग 32 हज़ार वर्ग फीट एरिए में डोम लगाने सहित भोजन आदि खर्चों को मिलाकर टेंट हाउस को 40 लाख के आसपास का भुगतान होता था। लेकिन इस बार मात्र 16 हज़ार वर्ग फीट जगह में डोम लगाया गया। फ़िर भी खर्च 4 गुना किया गया। 


45 लाख में लाखों के लिए लग जाता है डोम


जानकारों की माने तो लगभग 2 लाख 40 हज़ार वर्ग फीट जगह में डोम लगाने का संपूर्ण खर्च 45 लाख रूपए है। जिसमें लाखों की संख्या में लोग शामिल होते हैं। पंडित प्रदीप मिश्रा जैसे कथाकारों के आयोजन इतना वृहद डोम लगता है। पर संगीत विवि में कुछ हज़ार की भीड़ वाले आयोजन में ढाई करोड़ का भुगतान सिर्फ एक इवेंटिंग एजेंसी को ही दे दिया गया। 


ऐसे उड़ाई नियमों की धज्जियां


निविदा नियमों का पालन किए बिना दे दिया करोड़ों का काम 

छात्र कल्याणकारी मदों का पैसा कर दिया महोत्सव में खर्च


वित्त अधिकारी पर होती है मोनिटरिंग की जवाबदारी


संगीत विवि में होने वाले समस्त खर्चों पर मॉनिटरिंग की जवाबदारी वित्त अधिकारी ( एफओ ) की होती है। वित्त अधिकारी शासन नियुक्त करता है। नियमानुसार खर्च का भार भी वित्त अधिकारी पर ही होता है। लेकिन पूरे मामले में एफओ नरेंद्र गढ़े ने खुद को अधिकृत न होना बताया और जवाब का भार कुलसचिव पर डाल दिया। जिसकी वजह से आर्थिक अनियमितता का शक गहराता जा रहा है। 


निविदा बुलाते तो बच सकते थे करोड़ों रूपए


यदि आयोजन से पहले विवि प्रशासन निविदा आमंत्रित करता तो विभिन्न फर्म निविदा डालते। ऐसे में संभव था कि खर्च कम से कम होता और परीक्षा सहित अन्य छात्र कल्याणक मदों के पैसे बच जाते,लेकिन विवि प्रशासन ने करोड़ों का काम बिना किसी प्रक्रिया किए दे दिया। मामले में कुलसचिव आई.डी.तिवारी कह चुके हैं कि गवर्मेंट अधिकृत एजेंसी को काम देने के लिए किसी प्रक्रिया की आवश्यकता नहीं होती। 

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