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लाखों का किराना और इलेक्ट्रॉनिक सामान बर्बाद
भ्रष्ट तंत्र का खामियाज़ा भुगत रही संगीत नगरी
खैरागढ़. साल 2005 के बाद आमनेर के पानी ने मंगलवार को एक बार फिर कहर बरपाया है। पानी उतरा तो इतवारी बाज़ार में बाढ़ से बर्बादी का मंज़र सामने आया। 200 से ढाई सौ दुकानों के लाखों के सामान ख़राब हो चुके हैं। कहीं अनाज़ की बोरियां तो कहीं मटर के पैकेट बिखरे पड़े दिखे। होटलों के फ्रिज़र ख़राब हो चुके हैं। हालाँकि 2005 की तुलना में पानी कुछ कम था। लेकिन पानी का बहाव अधिक था। प्रभावित लोगों में प्रशासनिक रवैये को लेकर भी नाराज़गी है। किराने का दुकान चलाने वाले अग्रवाल परिवार का कहना है कि पानी बढ़ने का अनाउंसमेंट ही नहीं हुआ। वरना समय रहते कुछ नुकसान से बचा जा सकता था।
18 साल बाद वहीं के वहीं
साल 2005 की विभीषिका के बाद बाढ़ से बचाव को लेकर करोड़ों की योजनाएं बनाई गई। लेकिन नेताओं और अधिकारीयों के भ्रष्ट नीतियों ने एक भी योजना का सही क्रियान्वयन नहीं होने दिया। परिणाम 18 साल बाद शहर वहीं का वहीं खड़ा है।
बैराज में हुआ करोड़ों का घालमेल
आमनेर के बहाव को रोकने के लिए 70 करोड़ से अधिक प्रधानपाठ बैराज के नाम से खर्च किए गए। तकनीकी रूप से उक्त स्थल पर बाँध बनाया जाना था। लेकिन बैराज बनाया गया। जिसमें घटिया क़्वालिटी का गेट लगाया गया। परिणाम गेट टूट गया। यदि आज बैराज सही तरीके से बना होता तो इतवारी बाज़ार और खैरागढ़ नगर को इस नुकसान का सामना नहीं करना पड़ता।
बाईपास नहीं हुआ पूरा
बाढ़ के बाद ही साल 2009 के आसपास बाईपास की कार्ययोजना बनी। ताकि शहर में बाढ़ के दौरान भी आवागमन बाधित न हो। पर 15 साल बाद बाईपास भी अधूरा है। बाईपास बनने के दौरान चुनिंदा व्यापारियों और नेताओं ने ज़रूर चांदी काट ली। बाईपास में भी अब तक करोड़ों का ख़र्च हो चुका है।
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आईएचएसडीपी खंडहर में तब्दील
निचली बस्तियों और बस स्टैंड के पीछे की अवैध बस्तियों को शिफ्ट करने की नीयत के साथ चाँदमारी में 8 करोड़ की लागत से आईएचएसडीपी योजना के तहत 472 मकान बनाए गए। पर वोट बैंक की राजनीति के चलते इन बस्तियों को शिफ्ट नहीं किया जा सका। परिणाम सामने है इन बस्ती में रहने वालों को एक बार फिर स्कूल में शरण लेनी पड़ी।
जहाँ है डुबान,वहां बनाया व्यावसायिक कॉम्प्लेक्स
इतवारी बाज़ार के जिस हिस्से में पालिका ने करोड़ों खर्च कर व्यावसायिक कॉम्प्लेक्स बनाया है। और कॉम्प्लेक्स ऐसी जगह बनाया है। जो पूरी तरह से डुबान का हिस्सा है।
नालों पर बने व्यावसायिक कॉम्प्लेक्स
नगर के कुछ हिस्सों में सरकारी नालों पर बकायदा कब्ज़ा कर दुकान और मकान बनाए जा चुके हैं। जिसकी वजह से नालों का पानी भी सड़क पर बहने लगा है।
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विकास के खोखले दावों के बीच सच्चाई
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