महोत्सव में मेला: तीन दिनों राधा-माधव मंदिर परिसर में लगा रहा भक्तों का रेला
खैरागढ़ के नया टिकरापारा में प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव के अंतिम दिन श्री राधा-माधव मंदिर में राधा-कृष्ण की मूर्ति स्थापित की गई। हवन-पूजन के बाद भंडारे का आयोजन हुआ। इसमें विभिन्न वार्डों से प्राप्त दान के अन्न से बनी खिचड़ी के साथ सूजी का हलवा प्रसाद के तौर पर बांटा गया।
विशेष यह कि टिकारापारा के यादव समाज ने वहां आए भक्तों को अपनी तरफ से 400 लीटर केसर वाला दूध वितरित किया। इस तीन दिवसीय महोत्सव के चलते नगर में भक्तिमय माहौल रहा। विशेषकर टिकरापारा के लोग खासे उत्साही नजर आए। राजू यदु ने बताया कि महोत्सव की शुरुआत से पहले देर रात तक वहां के युवाओं ने मुख्य मार्ग से मंदिर परिसर तक टिकरापारा रोड को गोबर पानी से धोया। इसके बाद श्रीराम गौ सेवा समिति के साथ मिलकर महोत्सव में अपनी भागीदारी सुनिश्चित की।
कर्ज लेकर दान देने वाले गैंदलाल के हाथों हुई मूर्ति की स्थापना
मूर्ति के लिए 80 हजार रुपए कर्ज लेकर दान करने वाले 75 वर्षीय गैंदलाल और उनकी पत्नी संतरिन यादव के साथ लखन-सीमा यादव, राजू-सरोज यादव और दिलीप-विनीता श्रीवास्तव ने पूजन कर मूर्ति की स्थापना की। श्रीराम गौ सेवा समिति परिवार ने भी यज्ञ में आहूति डाली।
दूसरे दिन भी उमड़ी भीड़, पहुंचे सांसद-विधायक भी
प्राण-प्रतिष्ठा महोत्सव के दूसरे दिन बुधवार को मौसम खराब होने के बावजूद मंदिर परिसर में भीड़ जुटी। शाम को शिखर कलश स्थापना के बाद शाम को भाजपा के दिग्गज आशीर्वाद प्राप्त करने मंदिर पहुंचे। सांसद संतोष पांडेय ने पूर्व सांसद व वर्तमान भाजपा जिलाध्यक्ष मधुसूदन यादव भी पहुंचे थे। मधुसूदन के साथ सचिन सिंह बघेल, कोमल जंघेल, विक्रांत सिंह, दिनेश गांधी आदि भी शामिल हुए। बुधवार रात विधायक देवव्रत सिंह ने भी महोत्सव में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। इससे पहले पूर्व सांसद अभिषेक सिंह ने कलश यात्रा में शामिल होकर नगर भ्रमण किया था।
सांसद और विधायक ने युवाओं के कार्यों को सराहा…
सांसद संतोष पांडेय ने कहा, ‘यहां वृंदावन-गोकुल सा वातावरण बना हुआ है। राधा-माधव मंदिर में जो कार सेवा श्रीराम गौ सेवा समिति ने की है, वह सराहनीय है। जब हम निस्वार्थ भाव से धर्म का काम करते हैं, तो भगवान भी सब प्रकार की चिंता करते हैं। यह परमार्थ का काम आप लोगों ने किया है।’
विधायक देवव्रत सिंह ने कहा, ‘खैरागढ़ में जितने भी मंदिर हैं, ये सब लगभग 100-200 साल पुराने हैं। इन मंदिरों को अगर हम पुर्नस्थापित करेंगे और यहां ऐसे ही धार्मिक आयोजन होते रहेंगे, तो न हमें द्वारका जाने की जरूरत है और न वृदांवन।’