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कोशिश कामयाब हुई। धंधे ने नया चोला पहन लिया। कारोबारी बदल गए। मियां भाई के शागिर्दों के तारे गर्दिश में हैं। अब शाही चमचों के सितारे बुलंदी पर होंगे।
हथकड़ी लगाने वाले हाथों को गिरेबान की पहचान करा दी गई है। एक हिस्सा उन्हें भी मिलेगा, ताकि वर्दी के दाग-धब्बों को कमीशन के साबुन से धोया जा सके। आम जनता पर कानूनी डंडे का रुआब जो कायम रखना है।
बिल्कुल सही दिशा में सोच रहे हैं, आप! पिछले दिनों हुई सियासी उठा पटक का ही यह नतीजा है। सारा खेल उस 'चिट्ठी' का है, जो महकमे के वज़ीर तक पहुंचाई गई। उसी ‘चिट्ठी’ ने अवैध कारोबारियों से वर्दी की सांठगांठ उजागर की। सनसनीखेज आरोप लगाए। चौक-चौराहों से गली-माेहल्लों तक सट्टे की पैंठ बताई। शराब तस्करी की अवैध कमाई में नेताओं की हिस्सेदारी का खुलासा किया।
गंडई थाने की कीमत भी तभी पता चली। चिट्ठी ने ही तो बताया कि थाने का खजाना भरता कैसे है। और ये भी कि सट्टा कारोबार के एक लाख से ही वर्दी की सिलवटें हटाई जा रही हैं। कप्तान ने सारे आरोप नकारे, परंतु कार्रवाई से इनकार नहीं कर पाए। ‘पटकथा’ में यही अंत लिखा हो, शायद! ताकि दूसरी कहानी का पसंदीदा खलनायक चुना जा सके।
हो भी कुछ ऐसा ही रहा है। छुईखदान के बाजार में गुपचुप ठेले के पास खड़े धुरंधरों की फुसफुसाहट कानों में पड़ी। तब खाकी व खादी के बीच चर्चा से ही सट्टे की रियासत में हुई ताजपोशी का पता चला।
'लगता है, लोकतंत्र के राजा का फार्मूला काम कर गया। अब वर्दी नियंत्रण में रहेगी’, खादी बोला।
‘थी तो पहले भी’, खाकी ने हस्ताक्षर किए।
‘हां... लेकिन अब यह मामला काफी नज़दीकी हो गया है। वज़ीर को चिट्ठी लिखने की हिम्मत कोई दूसरा नहीं जुटा पाएगा। बोलने वालों के मुंह बंद कर दिए जाएंगे। राजा साहब दोबारा लिखने से रहे! लिखे, तो चार उंगलियां उनकी तरफ भी उठेंगी।’ (गुपचुप की प्लेट उठाते हुए खादी ने एक सांस में सारे पर्दे उठा दिए)
'मैंने सुना है, नया सरगना माहिर है और अनुभवी भी।' (प्लेट से गुपचुप उठाते हुए खाकी के चेहरे पर कुटिल मुस्कान बिखरी)
'तुम उसे सियासत का मुरलीधर भी कह सकते हो।'
'मुरलीधर.., मतलब..???' (खाकी को ठसका लगा)
'भोला मत बन, तू भी जानता है। सत्ता चाहे किसी की भी रही हो, ये अपनी बांसुरी चैन से बजाते रहे हैं। सिंहासन की चापलूसी हो या सरदार की सेवा, सट्टा कारोबारी खास सेवकों में शुमार मिलेंगे।' (पानी की बोतल आगे बढ़ाते हुए खादी ने तंज कसा )
'यानी दिग्गजों की तरह ये भी गड़ी बंटकर खेलना जानते हैं! हारे कोई भी, इनकी जीत निश्चित रहती है। टीम को आखिरी तक पता नहीं चलता कि कौन किसकी तरफ से खेल रहा है।' (खाकी ने अनुभव का निचोड़ साझा किया)
'और नहीं तो क्या, स्वहित साधकर नाम के आगे कोष्टक में समाजसेवी लिखने का चलन इन्हीं अवैध कारोबारियों ने ही तो शुरू किया है।' (खादी ने जमीर पर हमला बोला)
‘…तो!!! अब पुलिस क्या करेगी?'
'जाहिर है, समाजसेवकों को तो पकड़ नहीं सकती। इसलिए सरगना के हाथों कठपुतली बनकर रहेगी, और क्या!’
'नहीं-नहीं, दाऊजी के भाषण बाद दिया गया सबसे बड़े अफसर का आठ माह पुराना फरमान थोड़े ही नकार देगी, कार्रवाई तो करनी ही पड़ेगी।' (खादी के भीतर का सरकार समर्थक जागा, उसने कार्रवाई पर जोर देते हुए कहा)
'तुझे कुछ भी नहीं मालूम। कप्तान से मुलाकात हो चुकी है। ज्यादा हल्ला मचा तो गिने चुने ही धरे जाएंगे, खानापूर्ति के लिए।' (खाकी ने सारी पोल खोल दी)
'मैं समझ गया। कानून का डंडा अब कोरोना भगाने के काम आएगा। बिना मास्क वाले आरोपियों की धरपकड़ तेज होगी।’ (खादी ने कटाक्ष किया)
'वैसे भी, कोरोनाकाल में मंदी का दौर लंबा चला है। नया सरगना वर्दी की जेब में दो-चार हज़ार बढ़ाकर ही डालेगा!' (खाकी को मिर्ची लगी, तो गुपचुप वाले ने सूखी पपड़ी मीठी चटनी में डुबोकर खाने को दी)
इतने पर किसी ने 'खाकी' को आवाज दी… 'चल साहब बुला रहे हैं', और वह चर्चा अधूरी छोड़ चला गया। हालांकि यहां यह तो स्पष्ट हो गया कि सट्टे की रियासत का बादशाह बदल चुका है। 'मुरलीधर' को गद्दी सौंप दी गई है। सिंहासन के चारों पायों को थामने वालों में सत्ताधारी मजबूत हाथ भी शामिल हैं। असरकार की भागीदारी भी सुनिश्चित कर दी गई है।
देखिए दाऊजी! कारोबार भले ही हाईटेक हो गया हो, विरासत हासिल करने के लिए चिट्ठी की सियासत आज भी कारगर है। एक चिट्ठी, वसीयत का काम कर गई। 'मुरलीधर' को सत्ता सट्टा का ताज मिल गया।