राजपाट पाना, फिर उसे बचाना; इसी के इर्द गिर्द घूम रही है, खैरागढ़ की सियासत। बिछाई गई बिसात पर चली गई हरेक चाल का मकसद यही है। तब विधानसभा चुनाव जीतकर राजनीति में दमदार वापसी की जिद थी। दाऊ की दीवार रोड़ा बनी। लांघ न सके, तो हाथ का साथ छोड़ा और ‘हलधर’ की राह पकड़ी।
साल्हेवारा की सभा से ‘बाबा' के राजनीतिक चोले पर गुलाबी रंग चढ़ा। पार्टी ‘सुप्रीमो' को ताकत दिखाई। जंगल में राजपरिवार की पैंठ बताई। रुतबा दिखाया। मतदाता दिखाए। जीत का भरोसा दिलाया, और जीते भी। कद के हिसाब से अंतर भले ही कम रहा हो, लेकिन रणनीति सफल रही। बाबा ने एक बार फिर लोकतंत्र की राजगद्दी हासिल कर ली। इधर सरकार बनी कांग्रेस की। ताजपोशी के बाद दाऊजी प्रदेश के बादशाह बन गए। फिर क्या था, बाबा की आंखों पर सरकारी ऐनक चढ़ गया।
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खंडहर सी दिखने वाली पार्टी आलीशान कोठी में तब्दील हो गई। गुलाबी रंग धुंधलाने लगा। विज्ञापनों से हल और हलधर दोनों गायब हो गए। राजा साहब ने दाऊजी की बादशाहत स्वीकार ली। जैसे-जैसे विकास के नाम राशि मिली, प्रगाढ़ता बढ़ती गई। लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के पक्ष में प्रचार करने उतरे ही, नगरीय निकाय में भी अघोषित कप्तान की भूमिका निभाई। खुलकर खेले।

अब तक चोले से गुलाबी रंग उतर चुका था। खबर पार्टी के ‘सुप्रीमो' को भी थी। बावजूद इसके, न कोई प्रतिक्रिया नजर आई और न ही सुनाई दी। विधानसभा में संख्या बल घटने का डर हो, शायद! डरे-डरे तो कांग्रेसी भी दिखे। राजा साहब के बोल ही ऐसे थे- ‘ब्लड टेस्ट कराऊं तो कोरोना नेगेटिव आएगा और कांग्रेस पॉजिटिव'।
राजा का कांग्रेस के लिए सक्रिय होना ‘मियां भाई' पचा नहीं पाए। गंडई की घटना का बहाना पाकर जिलेभर में पुतला जलवा दिया। जिन कांग्रेसियों के लिए वोट मांगे थे, उन्हें समझाइश देने का ऐसा सिला? मियां भाई ने तब तो नहीं रोका था! कह देते- ‘अपने दम पर जिता लेंगे, नगरीय निकाय भी'। इतने पर भी राजा विचलित नहीं हुए। घटना का माकूल जवाब दिया, लेकिन सरकार की राह नहीं छोड़ी।
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छोड़ते भी कैसे! सुप्रीमो के रहते-रहते में बिसात पर सारे प्यादे बिठा दिए थे, बस घोड़े की चाल बाकी थी। मरवाही उपचुनाव में बिना अवसर खोए ढाई घर की छलांग लगाई। बड़े के आदर्शों की आड़ लेकर ‘छोटे जोगी’ को निशाने पर लिया। कहा- ‘जोगी जी ने बाइबल, कुरान और गीता की कसम खाकर बोला था कि मैं जीवन में भारतीय जनता पार्टी को समर्थन नहीं दे सकता, क्योंकि वे भाजपा के विरोध में थे। आज उनका (छोटे जोगी का) समर्थन देना निश्चित रूप से गलत है।’
बलौदा बाजार ‘नरेश’ भी राजा के रंग में रंग गए। पार्टी दो भागों में बंट गई। छोटे जोगी ढाई घर की चाल समझ चुके थे। तीन चौथाई का गणित इतनी जल्दी कैसे सुलझने देते। जानते थे, पार्टी से निकाला तो रास्ता साफ हो जाएगा। इसलिए उपचुनाव के परिणाम बाद बिसात पर आघात किया। बोले- ‘दोनों विधायकों के खिलाफ उन्हीं के विधानसभा क्षेत्रों में हस्ताक्षर अभियान चलाकर इस्तीफा मांगेंगे।’

जाहिर है कि दोनों विधायक इस्तीफा नहीं देंगे। छोटे जोगी उन्हें निकालने से रहे। तात्पर्य यह कि लड़ाई आगे बढ़ेगी। जब से हस्ताक्षर अभियान की बात छिड़ी है, खैरागढ़ की गुलाबी टीम से धुआं उठ रहा है। खुद शागिर्द सशंकित हैं। ऐसे में विरोधियों को भरपूर मौका मिलेगा। मियां भाई भी चिंगारी को हवा देने से पीछे नहीं हटने वाले। हालांकि खैरागढ़िया राजनीति आश्वस्त है, उन्हें नहीं लगता कि कोई आगे आएगा!
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‘बड़े मियां’ कह रहे थे, ‘खैरागढ़ में बाबा के आदमियों से ही तो जोगी कांग्रेस का अस्तित्व है, ऐसे में कोई खड़ा भी होगा, पता नहीं!’ उधर सियासी धुरंधरों की सुगबुगाहट कुछ अलग ही इशारे कर रही है। कह रहे हैं, धुआं उठ रहा है, राजनीति तो गरमाएगी ही। मछली को पानी में डुबाेने का प्रयास रंग लाएगा। कामयाबी संदेहास्पद है, लेकिन धरातल पर पार्टी की मजबूती जरूर परखी जा सकेगी।
बलौदा बाजार और खैरागढ़ में चलाए जाने वाले हस्ताक्षर अभियान की हवा का रुख परखा जा सकेगा। सुप्रीमो के जाने के बाद जोगी लहर की ताकत आजमाई जाएगी। छोटे जोगी को स्व आकलन का मौका मिलेगा। हो सकता है, यहीं से संगठन का भविष्य तय किया जा सके!
फिलहाल देखना यह है कि ‘बाबा’ के साथ मंच साझा करने वाले सरकार के ‘अली बाबा’, ‘मियां भाई’ को कितना समझा पाते हैं। अभियान में ‘दाऊ’ की दखल भी मायने रखेगी!!!
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