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भ्रष्ट+आचार= भ्रष्टाचार। भ्रष्ट यानी बुरा अथवा बिगड़ा हुआ। आचार का मतलब है आचरण। शाब्दिक अर्थ ये हुआ कि ऐसा कोई भी आचरण जो अनैतिक और अनुचित हो।
आप सोच रहे होंगे कि समाज जिस शब्द को शिष्टाचार के रूप में स्वीकार कर चुका है, उसके संधि विच्छेद की आवश्यकता क्यों पड़ी? वह इसलिए कि ‘कखग’ सीखने-सिखाने वाले इसे समझ सकें। नैतिक शिक्षा का पाठ पढ़ाने वालों को यह स्पष्ट हो जाए। उनके कानों तक भी बात पहुंचे जो भविष्य गढ़ने वालों को भ्रष्ट आचरण के लिए मजबूर कर रहे हैं।
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राजनांदगांव जिले के शिक्षा विभाग में इन दिनों जो अध्याय चल रहा है, वह नया नहीं है! साहब का तरीका भी पुराना ही है, फिर भी उन्होंने ‘ककहरे’ से शुरुआत की है। रटा-रटाया जवाब दे रहे हैं, मानो चौथी-पांचवीं के छात्र हों। उन्हें पता ही नहीं कि यहां मल्टी ग्रेड मल्टी लेवल प्रणाली की छाप है। वे अभी तक अक्षर ज्ञान में अटके हैं, जबकि कई किरदारों ने इस विशेष अध्याय में पीएचडी कर रखी है।
तभी तो, कल तक जिन्होंने आंखें तरेर रखी थीं, आज सुर मिला रहे हैं। कह रहे हैं, 'अब फर्नीचर आ ही गया है, तो इस्तेमाल भी हो ही जाएगा'। बिन मांगे कंप्यूटर टेबल आना शुभ संकेत मान रहे हैं। कहते हैं- 'हो सकता है कंप्यूटर भी जल्द आ जाए! पूरे देश में यही तो चल रहा है।' साहब ने 'गांधीजी' की तस्वीर दिखाकर समझाया हो, शायद! वरना अलग राग अलापने से बाज आते।
सियासत से परे कोई तान छेड़ता है भला! वह भी संगीत नगरी के सधे सियासतदार को नजरअंदाज कर। भूल गए, 15 साल सत्ता की सरदारी इन्हीं के पास रही है। घाट-घाट के पानी की परख है इन्हें, और 'पनिहारिन' की भी। झांसे में नहीं आने वाले। जो कहा था, वो मान लिए होते तो फिर भी बख्श दिए जाते। मांग पत्र ही तो मांगने कहा था। मंगा लेते! थोड़ा ही ऊपर-नीचे होता, और क्या!
'आका' से ही पूछ लिया होता, जिसके कहने पर सरकारी धन के दुरुपयोग की हिम्मत जुटाई। मना थोड़े ही करते। कम से कम उपयोगी चीजें संकुलों तक पहुंच जातीं। याद रखिएगा, बिना मांग की खरीदी का कुतर्क हो सकता है, तर्क नहीं। शंका लाजमी है। कहीं ये गुणवत्ताहीन माल खपाने की कोई साजिश तो नहीं! हो भी सकती है। तभी तो भौतिक सत्यापन के लिए गुणवत्ता जांचने का कोई पैमाना निर्धारित करने की जरूरत ही नहीं समझी गई।
कह रहे हैं राज्य सरकार ने साहब को अधिकृत किया है। चलो ये भी मान लिया, पर मति तो मंत्री जी छीन नहीं ले गए होंगे। कर्ताधर्ता हैं आप, उस विभाग के, जिसके कंधों पर प्रदेश का ईमानदार भविष्य गढ़ने की जिम्मेदारी है। ऐसे उदाहरण ईमानदारी को मुंह चिढ़ाएंगे।
मिसालें ऐसी दीजिए कि पीढियां याद रखें। समाज सेवियों के शहर में हैं, आप। यहां की सियासत कमजोर नहीं। गलत को गलत कहने का माद्दा रखने वाले खूब मिलेंगे। बस्तरिया पाठ दोहराने से कुछ हासिल नहीं होगा। हां, सदाचार का संधि विच्छेद कर नए अध्याय की शुरुआत जरूर की जा सकती है।
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'बड़े साहब' अनुभवी हैं। चप्पे चप्पे का मिजाज जानते हैं। कितने ही ऐसे मामले निपटा चुके होंगे। फर्नीचर खरीदी में हुए गोलमाल को भी पकड़ ही लेंगे। स्कूल खुलने वाले हैं। कोई नया फार्मूला ईजाद करिए। उस पर फोकस करिए। कुछ ऐसा जिससे कोरोना काल में हुए नुकसान की भरपाई हो सके।