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शराब ने छीनी रोटियां : ✍️जितेंद्र शर्मा
अभी जब देश कोरोना काल में गंभीर संकट के दौर से गुजर रहा है। देश के प्रधान सेवक से लेकर नर्स, सिपाही और गांवों के कोटवार तक अपने अपने स्तर पर बिना किसी अतिरिक्त स्वार्थ के प्रणम्य आहुतियां दे रहे हैं, एक बड़ा वर्ग जो दीन, हीन, मजबूरों की सेवा में देश भर में जुटा रहा वह अब गायब होता नजर आ रहा है। याद कीजिए 23 मार्च 2020 को जब से देश में लॉक डाउन की घोषणा की गई। प्रधानमंत्री की एक अपील पर देश की रफ्तार थम गई। कल कारखाने, व्यापार, स्कूल, कॉलेज, सभी धार्मिक स्थल, यातायात के सभी साधन, निर्माण कार्य आदि सब बंद हो गए। देशभर में जो जहां था वहीं ठहर गया। कोरोना वायरस के भय से लोग अपने अपने घरों में कैद हो गए।
यहां तक कि जिन नेताओं को हम सेवा के नाम पर चुनते हैं, उनमें से भी ज्यादातर बंगलों से बाहर निकलने में कोताही बरतने लगे। तब बहुतेरे लोग ऐसे भी थे जो अपनों के आसपास होकर दूर रहे हैं। इनमें भी दो प्रकार के लोग थे पहले तो वे जो अपनी ड्यूटी को पूजा के समान अंजाम दे रहे थे और दूसरे वे थे जो दरिद्र नारायण की सेवा में अपना सर्वस्व न्यौछावर करने घरों की दहलीज लांघ चले थे (इनमें शासकीय सेवक भी बड़ी संख्या में थे)। कोरोना काल में इनकी नि:स्वार्थ सेवा और योगदान वंदनीय है। सब कुछ लॉक डाउन की भेंट चढ़ जाने के बाद दरिद्र नारायण की सेवा यानी गरीब, वंचितों की भूख को मिटाना छत्तीसगढ़ में भी बड़ी चुनौती के रूप में सामने था। सरकार ने अपने स्तर पर इस दिशा में उल्लेखनीय काम किया। उन्हें तीन महीने का राशन मुहैया कराया। कई संस्थाओं ने भी सूखा राशन दान में दिया। कई ऐसी भी संस्थाएं थीं जो सडक़ों पर निकलकर पागल, भिखारियों और गरीबों को ढ़ूंढकर उन्हें पका भोजन करा रहा रहे थे। ऐसा लग रहा था मानों गरीबों के लिए लोगों और संस्थाओं ने दोनों हाथों से दान देना शुरू कर दिया हो। मानव सेवा का इससे बड़ा उदाहरण शायद और कभी देखने को मिला हो, ऐसा उत्साह था इन महामनाओं में। सुनने में तो ये भी आया कि कई बार विभिन्न संस्थाओं के स्वयंसेवकों को लोग बोलते थे कि पूड़ी, फ्राइड राइस खा-खा कर बोर हो गए, आज कुछ सादा हो जाए। सूखा राशन का ढेर जमा होने के कई वीडियो भी इस दौरान सोसल मीडिया पर वायरल हुए। यह सब कुछ लॉक डाउन के पहले और दूसरे चरण तक ऐसा ही पूर्ण समर्पण के साथ चलता रहा।
लेकिन तीसरा चरण शुरू होने के बाद लोग और संस्थाएं इस सेवा कार्य से अलग होते चले गए।अब कोई भोजन बांटता नजर नहीं आता। अखबारोंं में भी इनके सेवा की तस्वीरें अब दिखाई नहीं देती। जबकि रोज कमाने और खाने वालों की समस्या वैसी ही बनी हुई है। फिर ऐसा क्यों हुआ? यह बड़ा सवाल खड़ा हो गया। जवाब कहां खोजते, इन्हीं सेवादारों से मिला। उनका कहना था जिस दिन शराब दुकानें खुलीं, उस दिन से सेवादारों ने देखा कि जिन्हें वे गरीब और जरूरतमंद समझकर रोज खाना पहुंचा रहे थे, उनमें से कई सुबह से ही शराब की लाइन में लगे थे। बताते हैं इसी दिन एक और घटना हुई राजधानी में प्रशासन ने भोजन सप्लाई के लिए एक व्हाट्सअप ग्रुप बनाया था। इस ग्रुप में कई ने शेयर किया कि लॉक डाउन 1.0 और 2.0 में सभी संस्थाओं ने पूरी मदद की। लेकिन अब शराब दुकानें खोल दी गई हैं, और जिन्हें वे गरीब समझ भोजन दिया करते थे, वे शराब खरीदने लाइन में लगे मिल रहे हैं। अत: उन्होंने भोजन नहीं बांटने का ऐलान कर दिया। यह बात अलग है कि अब भी कई परिवार दो वक्त की रोटी के लिए दो-चार हो रहे हैं। कई जगहों में नशे के बाद मारपीट-हत्या, चोरी जैसी घटनाएं हो रही हैं। मतलब यह कि इस शराब ने कई गरीब और जरूरतमंदों की दो वक्त की रोटी छीन ली है।
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