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अंगुली कटाकर शहादत बताने की चाल ✍️जितेंद्र शर्मा
प्रवासी मजदूरों पर अभी जमकर सियासत चली। राज्यों के साथ ही दिल्ली भी इस मुद्दे पर गरम रही। देशभर में नेताओं के बीच मानों बयानों की होड़ मच गई। टीवी पर डिबेड भी हुए। यह सब तो होना ही था। सवाल गरीब मजदूरों की घर वापसी का जो था, जिनके वोट से सरकारें बनती और गिरती हैं। सो इनके दर्द में सहभागी होना तो नेताओं का बनता ही है। उद्योग धंधों के बंद होने से यह जहां कमाने खाने गए थे वहां बेरोजगार हो गए थे। सरकारें यह जरूर कह रही थीं कि उनके भोजन की व्यवस्था वे कर रहे हैं। पर सच्चाई तो वे बेचारे मजदूर ही जान रहे थे जो पैदल ही सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा पर निकल पड़े थे। हालांकि कुछ राज्य सरकारों ने उन्हें अपने प्रदेशों में लाने के लिए बाद में बसों की व्यवस्था की लेकिन वे नाकाफी ही रहे। अभी भी लाखों की संख्या में मजदूर भाई परदेस में फंसे हुए हैं। 3 मई के बाद जब केंद्र सरकार ने उन्हें अपने प्रदेश में वापस लाने राज्य सरकारों को छूट दे दी तो बात उनकी वापसी के खर्च में आकर अटक गई।
केंद्र में विपक्ष में बैठी पार्टियां सरकार पर हमले करने लगीं। मांग थी मजदूरों को लाने के लिए ट्रेन की टिकट का खर्च केंद्र वहन करे। इस पर खूब आरोप प्रत्यारोपों का दौर भी चला। बाद में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का बयान आया कि मजदूरों को लाने का खर्च प्रदेश कांग्रेस कमेटियां वहन करेंगी। अब बात छत्तीसगढ़ की कर लेते हैं। यहां कांग्रेस की सरकार है। यहां की सरकार ने अपनी नेता की बात नहीं मानी। उसने रेलवे को पत्र लिखकर दे दिया कि मजदूरों की टिकट का खर्च राज्य सरकार वहन करेगी। अब बात यहीं खत्म नहीं होती है। मामले की तह में जाने पर भेद खुला और केंद्र सरकार की ओर से बताया गया कि मजदूरों की वापसी में आने वाली खर्च का 85 फीसदी हिस्सा तो खुद केंद्र वहन कर ही रही है। राज्य सरकारों पर तो उसने केवल 15 फीसदी खर्च का ही भार डाला है।
इतना ही नहीं केंद्र ने राज्य सरकारों को तीन ऑप्शन भी इसके लिए दिए हैं। पहला कि सरकार खुद खर्च वहन करे। दूसरा किसी संस्था से पैसे ले ले और तीसरा यह कि मजदूरों से वसूल ले। अब इस तीसरे विकल्प ने राजनीति करने का मौका दे दिया और मामला गरमा गया। बहरहाल अब मामला लगभग शांत है। राज्य सरकारें अपने अपने स्तर पर भारी हो-हल्ला के बाद मामूली सी रकम का इंतजाम कर मजदूरों पर एहसान करने का काम कर रही हैं। एक राज्य ने तो इतने के बाद भी मजदूरों से पैसे वसूल लिए। भला हो छत्तीसगढ़ की सरकार का जिसने अपनी ही जनता की वापसी के लिए 15 फीसदी खर्च का बीड़ा भारी मन से ही सही उठा तो लिया ही है। अब इसके बाद भी कुछ ऐसे लोग जो सरकार से जलते हैं, चुप नहीं बैठे। कह रहे हैं कि कांग्रेस ने पूरी स्क्रिप्ट अंगुली कटाकर शहादत बताने की सोची समझी साजिश के तहत लिखी थी।
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