इतिहास गवाह है, कैसे मुट्ठीभर हमलावर रास्ते से गुजरते और दोनों तरफ खड़े लाखों लोग मूकदर्शक बने तमाशा देखते थे। यही भीड़ उन हमलावरों पर टूट पड़ती तो भारत के हालात भिन्न होते।
भारत में भ्रष्टाचार का इतिहास काफी पुराना है। बावजूद इसके, लोग इसकी खबरों को चटखारा लेकर पढ़ते हैं। चाय की चुस्कियों के साथ चर्चा करते हैं। तंत्र को कोसते हैं। इसी समय तंत्र का एक हिस्सा अपनी कमाई का गणित बिठाने में जुट जाता है। यही वजह है कि भ्रष्ट अफसर दंभी हो चले हैं।
एक मिसाल है, प्रधानपाठ। भ्रष्टाचार का यह गढ़ प्रदेश में अफसरों के बीच प्रतिष्ठित है। सियासतदार भी अनभिज्ञ नहीं। सभी जानते हैं कि बैराज को बनने में 11 साल लगे। इसके बाद भी 59 करोड़ पानी में डूब गए। जिन तैराकों को सक्षम समझकर सरकारी खजाना बचाने की जिम्मेदारी सौंपी गई, वे भी चालाक निकले। उन्होंने केवल अपना हिस्सा डूबने से बचाया। परिणाम आपके सामने है।
बैराज का टूटा गेट आज तक जस का तस पड़ा हुआ है, उसे सुधारने की बजाय उल्टे उसी आमनेर नदी पर भ्रष्टाचार की नई इबारत लिखी जाने लगी। जिन खिलाड़ियों को 59 करोड़ डुबोने का अनुभव हो, उनके लिए एकाध करोड़ का खेल कोई बड़ी बात नहीं। खेल की शुरुआत हुई संरचना के आधार से। खबर छपी और खूब बिकी। हिस्सेदारों के ज्ञान चक्षु खुल गए, सियासतदार भी जागे।
खेतों की प्यास बुझाने के नाम पर लाखों डकारने वालों की हिचकियां शुरू हो गईं। फोन की घंटी लगातार बजने लगी। सदन में सवाल गूंजने से पहले अफसरों के कानों तक पहुंचे। फिर भी वे टस से मस नहीं हुए। यहां प्रधानपाठ का अनुभव काम आया। बस फिर क्या था, अफसर अपना धर्म-कर्म भुलाकर तिमारदारी में जुट गए। खुराक के हिसाब से बोटियां जुटाई गईं। पार्टी का इंतजाम किया गया।
मुढ़ीपार में हुए एक कार्यक्रम के बाद वहीं महफिल जमी। चौकड़ी में मानपुर-मोहला व डोंगरगांव के अलावा डोंगरगढ़ के दोनों दमदार शामिल हुए। माननीयों ने दावत उड़ाई। जमकर लुत्फ उठाया। इसके बाद वही हुआ, जिसकी अपेक्षा थी। दंभियों के चेहरे चमक उठे। उन्हें लग रहा है, चौकड़ी को साध लिया, सरकार सध गई। वह अपनी जगह ठीक हैं। इतना ही तो करते आए हैं।
ये नहीं जानते कि दाऊ जी चौकड़ी में नहीं खेल रहे। झांसे में भी नहीं आने वाले। उनका दायरा बड़ा है। लक्ष्य ओझल नहीं हुआ है, बीजापुर की वादियों में उनकी तीरंदाजी का अंदाज यही कहता है। कबड्डी और बॉलीबॉल खेलकर बाह्य व आंतरिक बल दोनों परख चुके हैं। बता दिया कि दम है और दबदबा कायम है।
दाऊ जी! आपके होनहारों को इशारे समझ नहीं आ रहे। आपकी गतिविधियां सरकार की सेहत बना रही हैं, लेकिन ऐसी दावतों से माननीयों का हाज़मा बिगड़ सकता है। ऐसे में सरकार की तबियत बिगड़ी तो संभलना मुश्किल होगा।