2014 की वह फ़िल्म याद है, जो पूरी तरह कुत्ते पर केंद्रित थी। उसमें कुत्ते को करोड़ों का वारिस बताया गया था। फ़िल्म का हीरो ही वही था, अक्षय तो सह कलाकार थे, जॉनी लीवर और कृष्णा की तरह। फ़िल्म का नाम था एंटरटेनमेंट, और कुत्ते का भी!
अगर आपने फ़िल्म देखी है तो 'एंटरटेनमेंट' के ठाठ भी याद होंगे। संगीत विश्वविद्यालय के छात्रों की कानाफूसी सुनिए, ठीक वैसा ही सीन तैयार होता दिखेगा। उनके ठहाके इसे प्रमाणित करेंगे।
'मैडम का कुत्ता देखा, तुम लोगों ने..? क्या शान है यार, उसकी! तीन-तीन नौकर चौबीसों घंटे, वह भी विश्वविद्यालय के खर्चे पर।', छात्रों के समूह में खड़ी काली टी-शर्ट बोली।
'हां यार! शेर जैसा कुत्ता है। हेल्थ-हाइट सब मस्त है। देखकर ही मजा आ जाता है।', दाढ़ी ने तारीफों के पुल बांधे।
'खानपान भी वैसा ही होगा, नहीं?', छोटे कद वालाबैगधारी धीरे से बोला।
'क्यों... दीर्घशंका की गंध आई क्या, तुझे?', यह कहते हुए काली जैकेट ने बैगधारी के सिर पर हाथ मारा। सभी हंसे।
'...लेकिन मानना पड़ेगा, मैडम के कुत्ते ने विश्वविद्यालय के कायदे बदल दिए। डायरेक्टर साहब ने उन स्ट्रीट डॉग्स को बाहर का रास्ता दिखा दिया, जो हॉस्टल का बचा-खुचा खाकर गुजारा करते थे।', जैकेट बोला, तो सबने मुस्कान लिए मुंडी हिलाई।
'...तो क्या हॉस्टल का बचा-खुचा अब शेर खाएगा???', यह सवाल बैगधारी का था।
'तू पागल है क्या? जो मैडम की गाड़ी में आता-जाता हो, वह बचा-खुचा खाएगा! ...और वैसे भी कौन सा अभी खाना बन रहा है, वहां।', दाढ़ी खीझा। सब फिर हंसे।
'पता है… यूनिवर्सिटी में 12 गॉर्ड रखने वाले हैं, सिक्युरिटी के लिए।', काली टी-शर्ट ने मोबाइल देखते हुए अपडेट किया।
'किसकी, हमारी या कुत्ते की..?', जैकेट के इस पंच पर खूब ठहाके लगे।
'यार… मैडम से मिलना ही नहीं होता है। कैंपस-2 का राज गहरा है, और यहां कुत्ते का पहरा है।', जैकेट के इस मोनोलॉग पर फिर हंसी छूटी।
'यदाकदा डायरेक्टर साहब जरूर दिख जाते हैं, निर्देश देते हुए। मानो सारी पंचायत उन्होंने ही संभाल रखी हो या फ़िल्म का सेट तैयार कर रहे हों', दाढ़ी ने तंज कसा।
'इससे अच्छा तो पहले वाली मैडम थीं। सुबह से कैंपस के चक्कर काटकर आधी समस्या सुलझा देती थीं। अब तो कैंपस ही पराया लगने लगा है।', सभी काली टी-शर्ट को देखने लगे।
'वह भी डॉग लवर थीं, लेकिन कुत्ते को कैंपस का मालिक कभी नहीं बनाया। अब लगता है जैसे राजा साहब की वसीयत में यह महल कुत्ते के नाम लिखी गई हो! मुझे तो एंटरटेनमेंट की याद आ गई।', जैकेट का यह आखिरी पंच लोटपोट करने वाला था। सभी हंसते-हंसते अपने अपने रास्ते पर निकल लिए।
साजिद-फरहाद निर्देशित फिल्म एंटरटेनमेंट भले ही फ्लॉप रही हो, लेकिन फीस में बढ़ोतरी का विरोध कर रहे छात्रों ने बातों ही बातों में मनोरंजक पटकथा तैयार कर दी है। "Every dog has a day" की चरितार्थ होती कहावत को फ़िल्म में उकेरकर छालीवुड में नया ट्रेंड लाया जा सकता है।
छात्रों ने कहानी लिख दी है। हीरो, घर का ही है। लोकेशन का खर्च भी बच जाएगा। अब 'डायरेक्टर साहब' की काबिलियत पर निर्भर करेगा कि वे किरदारों में कितना निखार ला पाते हैं।
फिलहाल एडवांस के तौर पर पटकथा लेखकों की मांगें मान लेनी चाहिए। पूरी कमाई घर में ही रहेगी। नाम भी अच्छा सुझाया है, 'मैडम का रॉयल डॉग'! इसकी रॉयल्टी भी नहीं देनी पड़ेगी।