रोड पर बिखरी गिटि्टयों से परखिए बायपास की गुणवत्ता।
बायपास की घोषणा के बाद भी चलता रहा जमीन की खरीदी-बिक्री का खेल और आंखें मीचे बैठे रहे अफसर।
खैरागढ़. बायपास रोड पर पहले 72 किसानों की धनहा डोली के लिए तकरीबन दो करोड़ का मुआवजा तय किया गया था, लेकिन चार साल तक खसरा-रकबा का खेल कर मुआवजा पाने वालों की संख्या 118 हो गई। जमीन की किस्म बदलते ही मुआवजे की राशि 12 गुना तक बढ़ गई। अब तक 118 लोगों को लगभग 24 करोड़ रुपए बांटे जा चुके हैं।
सोनेसरार-सरस्वती शिशु मंदिर एसएच-5 तक बायपास रोड के लिए लोकेशन फायनल होने के बाद एसडीएम ने पांच गांवों के 72 किसानों की सूची जारी की, जिनकी 15.881 हेक्ट. यानी लगभग 39.24 एकड़ भूमि अर्जित की जानी थी। यह सभी असिंचित धनहा डोली थीं और इसी के हिसाब से किसानों का मुआवजा दो करोड़ एक लाख 28 हजार 956 रुपए निर्धारित किया गया था। इसमें 30 प्रतिशत सोलेशियम और 12 फीसदी अतिरिक्त ब्याज राशि शामिल थी।
लोकेशन निर्धारण के चार साल बाद 2018-19 में बायपास का निर्माण शुरू हुआ। इस बीच खसरा-रकबा का खेल चला। किसानों की जमीन औने-पौने भाव में खरीदी गई और मनमाफिक बटांकन करवाया गया ताकि रोड में आने वाली जमीन 37 डिसमिल से कम हो और मुआवजे का आकलन वर्गफीट के हिसाब से किया जा सके।
अमलीडीह खुर्द के अलावा पांच गांवों में शामिल सोनेसरार, मुसका, अकरजन और खम्हरियाखुर्द में भी राजस्व के कर्मचारियों की मिलीभगत से गणित बिठाकर मुआवजे की राशि 12 गुना तक बढ़ाई गई। वर्तमान में उतनी ही जमीन के लिए सरकार 21 करोड़ 75 लाख 98 हजार 67 रुपए का मुआवजा बांट चुकी है। इसमें प्रक्रिया शुल्क को मिलाने पर लगभग 24 करोड़ रुपए होते हैं।
बायपास में ऐसे दबी दिखी सिंचाई की पाइप:
बायपास पर सीबीआर में ऐसी दबी है पाइप।
बंटवारा और अवैध प्लाटिंग कर बढ़ाई कीमत
अमलीडीह खुर्द में हुआ चौहद्दी का खेल पहले ही खुल चुका है, जिसमें दान की 5 डिसमिल जमीन (ख. नं. 105/4) गायब कर दी गई। इस टुकड़े के मालिक सुविमल श्रीवास्तव आज भी राजस्व अफसरों के चक्कर काट रहे हैं। यह खसरा नंबर 105 के 13 भागों में से एक था। अमलीडीह खुर्द के अलावा सोनेसरार, अकरजन और खम्हरिया खुर्द में ही हुआ खेल महज नक्शा देखने से समझ में आता है।
रसूखदारों ने एकमुश्त जमीन खरीदकर इसका मनमाफिक बटांकन कराया। अपने रिश्तेदारों के नाम उसकी रजिस्ट्री कराई। इसके बाद 37 डिसमिल से कम रकबा बताकर वर्गफीट के हिसाब से मुआवजे का दावा किया। इस पूरी प्रक्रिया में राजस्व अमले ने बराबर की भागीदारी निभाई। तभी खरीदी-बिक्री से लेकर रजिस्ट्री और नामांतरण तक किसी ने भी आपत्ति नहीं दर्ज कराई।
इसके लिए भी खसरा नंबर 105 का ही उदाहरण लें तो 53 डिसमिल जमीन के अर्जित हिस्से का मुआवजा वर्गफीट के हिसाब से नहीं मिलता, लेकिन दो भागों में बटांकन होने से सरकार को नुकसान हुआ। दस्तावेजों के अनुसार 2013 में इसके दो भाग बेचे गए। यहीं चौहद्दी का खेल हुआ। इसलिए मुआवजा करोड़ों में जा पहुंचा। किसानों की मानें तो मौके पर झोल रकबा भी है, जिसका हिसाब राजस्व कर्मचारी ही बता सकते हैं।
पाइप की वजह से ऐसी हुई दपका के रोड की हालत:
सिंचाई पाइप की वजह से ऐसे हुई है दपका क्षेत्र के सड़क की हालत।
फंसी कांग्रेस के जिला महामंत्री की जमीन भी
अमलीडीह खुर्द में ही महिला ग्रामीण कांग्रेस की जिला महामंत्री नसीमा बानो की जमीन भी फंस गई है। भू-अर्जन के लिए निर्मित नक्शे में उनकी भूमि के खसरा नंबर 107/2 के स्थान पर खसरा नंबर 107/1 का अंकित कर दिया गया है। इसकी वजह से उनकी बचत भूमि 0.28 हे. का हिसाब नहीं मिल रहा है। उनके पति नासिर मेमन का कहना है कि सूचना के अधिकार में भू-अर्जन वाला नक्शा निकालने के बाद इस गोलमाल का पता चला।
यहां जानिए 2013-14 में किस गांव की कितनी जमीन के लिए बना था कितना मुआवजा
गांव
किसान
रकबा हे.
कीमत हे.
कुल राशि
सोनेसरार
15
3.447
10,45,000
36,02,115
अमलीडीहखुर्द
28
4.967
8,80,000
43,70,960
मुसका
01
0.364
4,20,000
1,52,880
अकरजन
12
3.086
6,00,000
18,51,600
खम्हरियाखुर्द
17
4.017
10,45,000
41,97,765
कुल
72
15.881
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1,41,75,320
नोट: रकबा हेक्टेयर में है। कीमत उप पंजीयक कार्यालय खैरागढ़ के गाइड लाइन दर 2013-14 प्रति हेक्ट. के हिसाब से। इसमें 30 प्रतिशत सोलेशियम और 12 प्रतिशत अतिरिक्त ब्याज राशि शामिल नहीं है।
जानिए मुआवजे को लेकर दो एसडीएम के कथन
तत्कालीन एसडीएम और संगीत विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार पीएस ध्रुव का कहना है कि भू-अर्जन की कार्रवाई में धारा-4 के प्रकाशन बाद खरीदी-िबक्री बटांकन आदि नहीं किया जाता। मेरे समय (2008-09) में दो-ढाई करोड़ का मुआवजा बना था। इस समय धारा-4 का प्रकाशन नहीं हुआ था। दो-ढाई साल बाद यह रद्द हो गया था। इसी तरह सीपी बघेल का कहना है कि भूमि की रजिस्ट्री उनके समय में हुई है, लेकिन धारा-4 के प्रकाशन का उन्हें ध्यान नहीं है।