खैरागढ़. बायपास में अर्जित की गई जमीन के भू-नक्शे से खासा खिलवाड़ किया गया है। मात्र खसरा नंबर 105 में हुए हेरफेर से इसे समझा जा सकता है। मौके पर कंपास के प्रयोग से नक्शे में बदली गई दिशा और चौहद्दी में की गई गफलत का खुलासा पहले ही हो चुका है। जब इसी खसरा नंबर के अलग-अलग प्लाट के नक्शों को परखा गया तो चौकाने वाले तथ्य सामने आए।
सबसे पहले उस कहानी को समझिए, जहां से इस मूल खसरे का बंटवारा हुआ। पटवारी के ही बताए अनुसार खसरा नंबर 105 का रकबा एक एकड़ 58 डिसमिल था, जिसके तीन हिस्सेदार बताए गए हैं- अगमदास, गैंददास और भारतदास। इन्होंने अपने रकबे में से 53 डिसमिल जमीन कुशालचंद जैन को एकमुश्त बेची। बाद में इस जमीन का दो भागों में बटांकन हुआ, खसरा नंबर 105/1 और 105/2 के रूप में।
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पटवारी ने बताया कि खसरा नंबर 105/2 का रकबा 36 डिसमिल था और 105/1 का 17 डिसमिल। इसी रकबे में से 7 डिसमिल प्लाट चुम्मन पटेल को बेचा गया, जिसका खसरा नंबर 105/6 हुआ। यहीं पर एक प्लाट लगभग साढ़े 5 डिसमिल शकीला बानो ने खरीदा, जिसका खसरा नंबर 105/8 है। इसी से निकला एक 3 डिसमिल का टुकड़ा संजयगिरी गोस्वामी के नाम पर है, जिसका खसरा नंबर 105/13 है और यहीं चुम्मन व संजय के बीच विवाद का कारण बना। यह टुकड़ा पड़त भूमि है, जबकि कुशालचंद के बी-1 में धनहा डोली जिक्र है, पड़त भूमि का नहीं।
बड़ी गड़बड़ी: दो लोगों के नाम एक ही खसरा नंबर
मूल खसरा नंबर 105 का एक भाग 105/3 भी है और फिलहाल यह सूरज कुमार की पुश्तैनी जायदाद है। कुशालचंद को 53 डिसमिल बेचने के बाद जुलाई 2018 के नक्शे में 105/1 के बाद 105/3 ही दिखाई दे रहा है, 105/2 गायब है। तब 105/3 के मालिक भारतदास थे। बताया गया कि नंबरदार अगमदास ने इसी मूल खसरे में से 45 डिसमिल जमीन बसंती जैन को बेची थी, और उसका भी खसरा नंबर 105/3 ही था। इसके पीछे का गणित राजस्व के अफसर ही बता सकते हैं।
गौर से देखें नक्शे के लाल घेरे से गायब है खसरा नंबर 105/2
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नक्शे में मिला प्रमाण, दूसरी दिशा में प्रकट हुआ 105/2 का टुकड़ा
जैसे पांडादाह रोड उत्तर दिशा में होते हुए भी पटवारी नक्शे में पश्चिम की ओर बताया गया है, ठीक इसी तरह का खेल 105/2 के बटांकन में हुआ है। पहले ही बता चुके हैं कि इसका कुल रकबा 36 डिसमिल था, जिसे पड़त भूमि को मिलाकर चार भागों मंे बांटा गया, जिसे मिलाने पर लगभग 32 डिसमिल जमीन होती है।
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यानी इस खसरा नंबर 105/2 का तकरीबन 4 डिसमिल टुकड़ा इन्हीं चार टुकड़ों के आसपास ही होना चाहिए था, लेकिन यहां पटवारी की कलम ने फिर पलटी मारी और यही टुकड़ा 105/1 की दूसरी साइड में प्रकट हो गया। फिलहाल यह डायवर्टेड (व्यपवर्तित) खसरा शत्रुहन धृतलहरे के नाम पर है।
जुलाई 2018 व फरवरी 2021 के नक्शे में अंतर
जुलाई 2018 में तहसील से निकाली गई प्रमाणित कापी में खसरा नंबर 105/2 की चौहद्दी देखें, फिर लाल घेरे पर नजर डालें। उत्तर में विक्रेता (कुशालचंद) की भूमि खसरा नंबर 105/1 दिखाई दे रहा है।
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अब 15 फरवरी 2021 के भू-नक्शे के लाल घेरे को गौर से देखें। इसमें 105/2 से हुए सारे टुकड़े दिखाई दे रहे हैं, लेकिन खुद 105/2 का टुकड़ा छलांग लगाकर दूसरी तरफ 105/1 के बाजू से चिपका है।
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पटवारी सीएल जांगड़े कह रहे- एक ही मालिक का खसरा था, तो मिला दिया
सवाल: सारे टुकड़े एक ही खसरा नंबर के थे, तो बचत 4 डिसमिल को उसके आसपास ही होना था?
जवाब: दोनों खसरा नंबर (105/1 व 2) के मालिक एक ही थे, इसलिए मिला दिया।
सवाल: केवल मिलाया नहीं, नक्शे में प्लाट की ही दिशा बदल दी?
जवाब में जांगड़े ने मुंडी हिलाई, लेकिन खामोश रहे।
सवाल: जब एक में ही मिलाना था, तो एकमुश्त खरीदी गई 53 डिसमिल को दो भागों (17 व 36 डिसमिल) में क्यों बांटा?
जवाब: यह पहले से बंटा हुआ था, इस संबंध में नहीं जानता।
सवाल: खसरा नंबर 105/3 दो लोगों को कैसे मिला?
जवाब: मेरी जानकारी में यह भारतदास को मिला था, बसंतीबाई को यही खसरा कैसे मिला, नहीं जानता।
सवाल: दान के जमीन (105/4 सुविमल श्रीवास्तव) की चौहद्दी भी ऐसे ही बदली गई होगी?
जवाब: इसके बारे में भी मुझे कुछ नहीं मालूम।