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खैरागढ़ बायपास के प्रोजेक्ट के लिए अब तक बंट चुका है तकरीबन 24 करोड़ का मुआवजा, इसलिए प्रोजेक्ट की लागत हुई 43 करोड़।
खैरागढ़. बायपास प्रोजेक्ट की लागत 22 से 43 करोड़ होने के पीछे केवल एक कारण है, मुआवजा। बन रही रोड अभी भी तकरीबन 19 करोड़ की ही है, लेकिन इसके लिए अब तक लगभग 24 करोड़ का मुआवजा बंट चुका है। कुछ मामले अभी भी विवादास्पद हैं। इसके बावजूद करोड़ों बांटने वाले पिता को अपने हक की भूमि की जरा भी परवाह नहीं।
खसरा-खतौनी पर नजर डालें। इसमें भू-स्वामी की जगह छत्तीसगढ़ शासन और पिता/पति की के स्थान पर कार्यपालन अभियंता लोक निर्माण विभाग लिखा हुआ है। सीधा मतलब हुआ कि बायपास प्रोजेक्ट के लिए अधिकृत भूमि की देखरेख व संरक्षण की जिम्मेदारी पीडब्ल्यूडी के अफसरों की है। इसके बावजूद वे ध्यान नहीं दे रहे।
खसरा नंबर और चौहद्दी में हुआ खेल पहले ही उजागर हो चुका है। नक्शे में की गई हेराफेरी भी देखी जा चुकी है। खसरा नंबर 105/5 के मालिक अनिल जैन ने खुद दो दिन पहले 25 फरवरी को पीडब्ल्यूडी के ईई (कार्यपालन अभियंता) को आवेदन कर आरोप लगा चुके हैं कि उनकी भूमि से लगे अधिग्रहित सरकारी प्लाट को दोबारा बेचा गया है। इसके बावजूद अफसर टस से मस नहीं हो रहे। अवैध प्लाटिंग पर कार्रवाई करने वाले राजस्व अधिकारी जिम्मेदारों को बचाने में जुटे हैं। इतने गंभीर मामले पर अफसरों की प्रतिक्रिया बेहद सुस्त है।
सोनेसरार-सरस्वती शिशु मंदिर से एसएच-5 तक बन रहे बायपास के लिए भूमि अधिग्रहण में बड़ा गोलमाल साबित हो चुका है। खसरा नंबर 105 के बटांकर और चौहद्दी से खिलवाड़ को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि 6 किमी में कितनी जगहों पर ऐसा खेल खेला गया होगा। इसके बावजूद प्रशासन कार्रवाई से बच रहा है। अनिल जैन ने 25 फरवरी को दिए आवेदन में स्पष्ट लिखा है कि 105/13 खसरा नंबर वाली भूमि सरकारी है, जिसे शासन ने चुम्मनलाल से अधिग्रहण किया था। उसे कुशालचंद ने 27 अक्टूबर 2020 को संजयगिरी गोस्वामी को बेचा है।
अनिल का कहना है कि इस बिक्री से उसकी भूमि खसरा नंबर 105/5 और शासकीय भूमि की स्थिति शंकास्पद एवं अनिश्चित हो गई है। उनका आरोप है कि शासकीय कर्मचारियों की मदद एवं अनुचित सांठगांठ के बिना ऐसा काम नहीं किया जा सकता। उन्होंने इस प्रकरण की उच्चस्तरीय जांच कर कार्रवाई की मांग की है।
पंचनामा के समय मौजूद थे अनिल जैन भी
इधर खसरा नंबर 105/13 को कुशालचंद से खरीदने वाले संजयगिरी गोस्वामी का कहना है कि आरआई सुभाष खोब्रागढ़े, पटवारी सीएल जांगड़े ने अनिल जैन की भूमि का सीमांकन करने के बाद बायपास के किनारे से ही उनके खसरा नंबर 105/13 की सीमा बताई थी और वहीं से खंभे लगाए गए हैं। तब पंचनामा में हस्ताक्षर करने वालों में नरेंद्र बोथरा, अनिल जैन, सुविमल श्रीवास्तव आदि भी थे।
रोड के बीच से 20 मीटर जमीन सरकारी
पटवारी सीएल जांगड़े मौके पर पहुंचकर यह बता चुके हैं कि बायपास रोड के लिए 40 मीटर जमीन का अधिग्रहण हुआ है। वर्तमान रोड के बीच से 20 मीटर तक की जमीन सरकारी है। लोगों का कहना है कि इस लिहाज से देखें तो बायपास और लांची मार्ग के बीच से 20-20 मीटर नापने पर खसरा नंबर 105/13 का बड़ा हिस्सा सरकारी ही निकलेगा। इसके बाद जो जमीन बचेगी वह 3 डिसमिल है या नहीं, ये देखने की आवश्यकता है।
अब जानिए क्या कह रहे हैं अफसर
पिछले 10 दिनों चौहद्दी में हुए खेल और सरकारी जमीन पर कब्जे को लेकर लगातार खबरें प्रकाशित हो रही हैं, लेकिन जमीन का हिसाब किताब रखने वाले राजस्व के अफसर इसे लेकर तनिक भी चिंतित नहीं। वहीं मालिकाना हक रखने वाले पीडब्ल्यूडी के अफसरों का रवैया भी समझ से परे है। पीडब्ल्यूडी की एसडीओ रीतू खरे का कहना है कि उनके पास किसी तरह का पत्र नहीं आया है और खुद ईई एके चौहान कह रहे कि उन्होंने अब तक चिट्ठी देखी नहीं।
बायपास में दफ्न हैं अवैध प्लाटिंग से जुड़े राज
नक्शे की दिशा बदले जाने और एक खसरा नंबर के कई टुकड़े करने वालों में राजस्व का अमला शामिल है। जाहिर है राजस्व के अफसर भलीभांति जान रहे थे कि बायपास की घोषणा के बाद वहां जमीनों की खरीदी बिक्री तेज हो गई है। नक्शा काटते समय पटवारी को और प्रमाणितकरण करने वाले जिम्मेदार को भी इस बात का भान रहा ही होगा। इसके बावजूद मुआवजा राशि बढ़ाने के लिए षड़यंत्र रचा गया।