फ़िल्म शिकार। हसरत जयपुरी गीतकार। शंकर जयकिशन संगीतकार और आवाज आशा भोसले की। गीत…
'पर्दे में रहने दो, पर्दा न उठाओ
पर्दा जो उठ गया तो भेद खुल जाएगा ...'
कल्पना कीजिए कि यह गीत आज म्युज़िक यूनिवर्सिटी खुद गा रही है। एशिया की पहली कला व संगीत की यूनिवर्सिटी! छत्तीसगढ़ की पहली 'ए' ग्रेड यूनिवर्सिटी! वही यूनिवर्सिटी जिसकी झांकी गणतंत्र दिवस के अवसर पर दिल्ली में दिखाई दी थी।
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वह राजस्व विभाग को चुनौती दे रही है। कह रही है- 'आंखों देखा रियासतकालीन नाला नक्शे से गायब करना कौन सी बड़ी बात है, राजा-रानी की विरासत में चार चांद लगाओ तो जानें! बड़े-बड़े दाग तो चांद में भी हैं! चार चांद लग जाएं, फिर दाग अच्छे ही समझो!'
सुनें ज़रा...
'मेरे पर्दे में लाख जलवे (घोटाले) हैं
कैसे मुझसे नज़र मिलाओगे…'
नगर पालिका को मुंह चिढ़ा रही है। कह रही है- 'कोरोना जांच से पहले पीआईसी की बैठक की। कर्मचारियों को प्रमोशन देकर लाख-लाख बधाइयां ली। अब नाहक घबरा रहे हो। हमारे यहां तो लोक नृत्य के ढोल में भी पोल है। अरे! चोरी कर सीना जोरी करना सीखो! मैंने नकाब उठा दिया तुम्हें शर्म आ जाएगी। जल जाओगे।'
ताल दें...
'जब ज़रा भी नक़ाब उठाऊँगी
याद रखना की, जल ही जाओगे…'
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देखिए कैसे गीत के इन बोलों में सच निकलकर बाहर आ रहा है...
'हाय जिसने मुझे बनाया है,
वो भी मुझको समझ न पाया है'
सचमुच! आज उनकी आंखें नम होंगी। वे समझ नहीं पा रहे होंगे! सोच रहे होंगे, 'क्या इसी दिन के लिए महल दान किया था..?'
आखिरी की ये दो पंक्तियां विश्विद्यालय के प्रशासनिक अफसर गुनगुना रहे हैं। वह, जो सबकुछ जानते हुए खामोश रहे! वह, जिन्होंने छात्रा के साथ हुए अनैतिक कृत्य को बर्दाश्त किया। और वह भी, जो पीड़िता को धमकाते रहे और आरोपी के साथ खड़े दिखे।
अब गीत के इन बोलों पर उनका गुरूर परखिए...
'मुझको सजदे किये हैं इंसां ने
इन फ़रिश्तों ने, सर झुकाया है'
समझ गए..?
खैरागढ़… ओ खैरागढ़! तुम्हें ताज्जुब हो रहा है ना..? नहीं भी हो रहा होगा! तुम तो सहनशीलता की मिसाल हो। तुम्हें इसी की तो ट्रेनिंग दी गई है, बचपन से। तुम मुंह में उंगली रखे बैठे रहना। और मन हो तो तुम भी गुनगुना लेना…
क्या..?
पर्दे में रहने दो, पर्दा न उठाओ
पर्दा जो उठ गया तो भेद खुल जाएगा
अल्लाह मेरी तौबा, अल्लाह मेरी तौबा!!!
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