‘अत्यधिक ईमानदार होना भी ठीक नहीं, याद रखो, सीधे खड़े वृक्षों को सबसे पहले काटा जाता है’
कथन आचार्य चाणक्य का है। खैरागढ़ के सियासतदार इसे गंभीरता से लें। खासकर वे जो पार्टी लाइन पर हैं, और वे भी जिन्होंने व्यक्ति विशेष की राह पकड़ रखी है। पहली ईमानदारी है और दूसरी वफादारी। अब कथन की कसौटी पर खुद को परख लें। आगामी नगर पालिका चुनाव में आपकी हिस्सेदारी कमोबेश इसी पैमाने पर सुनिश्चित की जाएगी। Also read: Khairagarh के गंजीपारा में मोंगरा गांव को मिलाया, महावीर वार्ड से जुड़ा मस्जिद रोड भी
फील्डिंग शुरू हो चुकी है। सुना है कि ‘कप्तान’ ने बेहतर बल्लेबाजों को घेरकर अपने धुरंधरों को मैदान में उतारने की रणनीति बनाई है। इसमें ‘ईमानदारों’ के लिए गुंजाइश कम है, लेकिन ‘वफादारों’ को पुरस्कार मिलना तय समझिए। फिर वह किसी भी पार्टी का हो फर्क नहीं पड़ता।
वार्डों का परिसीमन हो पूरा चुका है। राजस्व और पालिका की टीम ने पूरी मशक्कत की है। नापजोख को दिखावा मत समझिएगा, लेकिन वोटों का मजबूत आधार सीमा के निर्धारण को परिभाषित कर रहा है। दो-चार घर तो इधर-उधर हुए ही, पूरा का पूरा गांव भी उठा लिया गया! इस गुणा-भाग पर बंकिम दृष्टि डालने की जरूरत है। Also read: Khairagarh के गंजीपारा में मोंगरा गांव को मिलाया, महावीर वार्ड से जुड़ा मस्जिद रोड भी
आश्चर्य नहीं होगा यदि चिन्हित वोट निशाने पर दिखाई दें। परिसीमन के दौरान नेताओं की छटपटाहट तो यही कह रही थी और आत्मविश्वास भी। जिनका आधार ही राम हैं, उनकी बेचैनी दो-चार दिनों से बढ़ी हुई थी, प्रस्ताव चस्पा होने के बाद राहत की सांस ली। वहीं, देव आंगन में ही खेल रहे थे/हैं। पांच साल के सारे काम इन दो महीनों में ही करके दिखाएंगे। ‘कप्तान’ के नुस्खे पर उन्हें पूरा भरोसा है। प्रस्ताव में दिख रहा है कि कैसे 6 वार्डों को छेडऩे की जरूरत ही महसूस नहीं की गई।
फिलहाल दावा-आपत्ति के लिए आठ दिनों का समय है। पूरा खेल लिखी गई कहानी के अनुसार चला तो आपत्ति करने वाले ‘ईमानदार’ भी गिनती के ही मिलेंगे। इसमें भी ‘वफादारों’ की संख्या ज्यादा हो सकती है ताकि सबकुछ स्वाभाविक लगे। Also read: Khairagarh के गंजीपारा में मोंगरा गांव को मिलाया, महावीर वार्ड से जुड़ा मस्जिद रोड भी
खबर है कि इस बार कांग्रेस की टिकट पुरानी खिडक़ी से ही बंटेगी। कुछ पुराने ‘वफादारों’ के चेहरों की चमक इसकी गवाही दे रही है। नगर सरकार के एक होनहार ने डंके की चोट पर इसकी पुष्टि की है। कहा है- ‘बीसों वहीं से मिलेंगी। एक भी किसी दूसरे के पाले में नहीं जाने वाली।’ लोकसभा चुनाव के दौरान ‘माननीय’ की सक्रियता और महल में मंत्रियों के प्रवास को याद करें तो यह बात सच के बेहद करीब लगती है।
चिंता की कोई बात नहीं, कांग्रेसियों का हाजमा दुरुस्त है। वक्त का तकाजा अनुभवी खूब समझते हैं। महल के दम पर राजनीति करने वालों की फेहरिस्त लंबी है। वे बेअदब हो ही नहीं सकते। सांसत में तो वे हैं, जिन्होंने उनके पीछे ‘हाथ’ का साथ छोड़ा था। इक्का-दुक्का विधायक प्रतिनिधियों की बुदबुदाहट सुनाई दी। एक आवाज सडक़ पर भी गूंजी- ‘अब हम कांग्रेस में गए भी तो कोई पूछने वाला नहीं! उन्हीं से जाकर बात करूंगा। कहूंगा कि हमें ढील दो!’Also read: अयोध्या में गूंजेगा 2,100 किलोग्राम वजनी घंटा, जिसमे इकबाल ने अपना संपूर्ण कौशल का प्रदर्शन किया है
असंतुष्टों के ये बोल निश्चित तौर पर उलझने बढ़ाएंगे। ऐसा रहा तो कुछ बड़बोलों को डमी कैंडिडेट भी बनाया जा सकता है ताकि ‘वफादारों’ पर आंच न आए। पिछली बार के चुनाव में इसके उदाहरण सामने आ चुके हैं। डमी कैंडिडेट की हार का इनाम भी चुनिंदा नेताओं को मिला था। तब सिद्धांतों वाली पार्टी के अचरज भरे कारनामे की चर्चा शहर सहित पूरे विधानसभा में थी। परिसीमन के बाद उस वार्ड में वर्ग विशेष का वर्चस्व भी खत्म हो जाएगा।
भीतरी मौसम के हालात से लगता है कि भाजपा में टिकट की नई खिडक़ी भी खुलेगी। यानी कुछ ‘वफादारों’ की टिकट संकट में आ सकती है। कम से कम ‘ईमानदार’ का सीना ठोक कर दावेदारी करना तो यही इशारा कर रहा है। पिछली दफा भारी मशक्कत के बाद ‘वकील साहब’ माने थे। मनाने के बाद शायद ही किसी मंच पर उनके नाम की कुर्सी लगाई गई हो!
लब्बोलुआब ये है कि खैरागढ़ नगर पालिका का चुनाव दिलचस्प होने वाला है। सुगबुगाहट तेज हो चली है। फिलहाल परिसीमन के बाद अफसरों की ‘वफादारी’ परख ली जाएगी। अब ‘पर’ कतरन के गणित से कितने वोट प्लस-माइनस होंगे, ये मतदाता की समझदारी पर निर्भर करेगा। अभी समझदारी इसी में है कि आसपास की हलचलों पर पैनी नजर रखी जाए। Also read: Khairagarh के गंजीपारा में मोंगरा गांव को मिलाया, महावीर वार्ड से जुड़ा मस्जिद रोड भी