बिजली कंपनियों ने विद्युत नियामक आयोग को दो हजार करोड़ रुपये के घाटे का हवाला देकर, सवा पांच फीसदी दाम बढ़ाए जाने का प्रस्ताव सौंपा है। आयोग ने इस प्रस्ताव पर प्रदेश भर से दावे-आपत्ति बुलाने के लिए 7 मार्च की तारीख तय की है। इसके बाद सुनवाई की जाएगी। आयोग का फैसला जो भी हो, लेकिन सरकार बिजली के बढ़े हुए दामों का बोझ आम जनता पर नहीं पड़ने देगी।
राज्य सरकार ने स्पष्ट किया है कि यदि दाम बढ़ाई गयी तो इसे सरकार द्वारा वहन किया जाएगा। बिजली कंपनियां आने वाले वित्तीय वर्ष से आम आदमी को बिजली का झटका देने की तैयारी में हैं। तीनों बिजली कंपनियों ने विद्युत नियामक आयोग को 5.29 फीसदी दाम बढ़ाने का प्रस्ताव दिया है।
दर वृद्धि याचिका में कंपनियों ने दो हजार करोड़ रुपये का घाटा बताया है। इसमें महंगे फ्यूल से लेकर बिजली बिल वसूली में हुआ नुकसान भी शामिल है पर आगर और जौरा उपचुनाव होने के कारण राज्य सरकार नहीं चाहती कि आम घरेलू उपभोक्ताओं के लिए बिजली महंगी हो।
विद्युत नियामक आयोग ने पिछले साल ही 9.4 फीसदी की दर से बिजली के दाम बढ़ाए जाने को मंजूरी दी थी। उधर, ऊर्जा विभाग के उच्च पदस्थ अफसर भी प्रस्तावित मूल्य वृद्धि से सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि गत वर्ष की वृद्धि से ही बिजली कंपनियों को 27 सौ करोड़ रुपये से ज्यादा की आमदनी बढ़ने का अनुमान है, ऐसे हालात में नए सिरे से दाम बढ़ाने का कोई औचित्य ही नहीं है।
वहीं मध्यप्रदेश के ऊर्जा मंत्री का कहना है की - सरकार का उद्देश्य आम आदमी को सस्ती और बिना किसी व्यवधान के बिजली उपलब्ध करवाना है। विधानसभा चुनाव में हमारे द्वारा इंदिरा गृह ज्योति योजना में 100 रुपये में सौ यूनिट बिजली देने का वादा किया था, उसे निभाया है। 150 यूनिट के दायरे में 80 फीसदी उपभोक्ता सस्ती बिजली का लाभ ले रहे हैं। बिजली की कीमतों का बोझ भी सरकार आम जनता पर नहीं पड़ने देगी।