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सीन-1: मोहल्ला क्लास में मैडम बच्चों को पढ़ाई से जोड़ने के लिए लाल बुझक्कड़ के किस्से सुना रही हैं। शायद मन की बात सुन ली होंगी। इसलिए प्रधान सेवक का नुस्खा आजमा रही हैं ताकि बच्चों की सूझबूझ विकसित हो।
मैडम: "था एक गांव! नाम याद नहीं। कभी बताया भी नहीं गया। सिर्फ कहानी सुनाई गई, लाल बुझक्कड़ की।"
"हां-हां वही सरपंच, जो पूरे गांव का इकलौता विद्वान था। कहें तो अंधों में काना राजा! ज्ञान कैसा भी हो, सरपंच जी को सियासत की समझ अच्छी थी। समस्या का गलत-सलत ढंग से निकाला गया समाधान ही उनकी पहचान थी। इसी में खूब वाहवाही लूट लेते थे।"
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"भोले-भाले ग्रामीण उनकी इसी सूझबूझ के कायल थे। शायद ही कोई होगा, जिसने लाल बुझक्कड़ को पढ़ा न हो! सुना तो जरूर ही होगा। एक किस्सा मशहूर है, जब गांव में हाथी आया। तब से पहले किसी ने हाथी नहीं देखा था। कच्ची सड़क पर उसके पांव के निशान देख सभी आश्चर्यचकित थे।"
"समस्या पहुंची सरपंच जी के पास। वे मौका मुआयना करने आए। मशहूर होने की आदत से मजबूर थे। निशान देखते ही झट बोल पड़े…
जाने बात बुझक्कड़ और ना जाने कोए
पांव में चाकी बांधकर हिरण ना कूदा होए!!"
"लाल बुझक्कड़ बोले- अरे, यह कुछ नहीं है। ये निशान तो हिरण की शैतानियों के हैं। उसने पैरों में चक्की बांधी होगी, फिर उछला होगा। तभी ये निशान बने होंगे।"
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कहते हैं, दीवारों के भी कान होते हैं। इतनी कहानी किसी 'दीवार' ने सुन ली! यहां कई लाल बुझक्कड़ वाहवाही लूटने तैयार थे। 'दीवार' की बताई अधूरी कहानी उन्हें जम गई। बस, फिर क्या था वायरल वीडियो पर मिट्टी डालने की लाल बुझक्कड़ी तरकीब सुझा दी गई।
पार्टी बदनाम हो रही है, नोट लेने वाले से नहीं! पार्टी बदनाम हो रही है, कमीशन खाने से नहीं! पार्टी बदनाम हो रही है, करप्शन से नहीं! पार्टी बदनाम हो रही है, इन 'कारनामों' के उजागर होने से! भई, सिद्धांतों वाली पार्टी है। राम के नाम पर चलने वाली पार्टी है। उसके अहम किरदार का नोट लेते हुए फ़ोटो व वीडियो मीडिया में आने से पार्टी कमजोर हो रही है।
सीन-2 अब यहां देखिए! फतेह मैदान में चार की चौकड़ी बैठी है। उनके बीच इन्हीं 'लाल बुझक्कड़ों' की चर्चा चल रही है। बातों पर गौर करिए…
पहला: ये बहुत गलत हो रहा है यार। चलो मान लिया कि 'उसने' ऐसा किया, लेकिन यह उजागर नहीं होना था। कुछ भी कहो, है तो होनहार!
दूसरा: मैंने तो तीन साल पहले देख रखा था 'उसका' हुनर, फिर भी चुप रहा। सिर्फ पार्टी की बदनामी न हो करके! (पहले की बात का मजा लेते हुए दूसरा बोला)
तीसरा: (इसने थोड़ी हिमाकत की) ...तो क्या भ्रष्टाचार और कमीशनखोरी पार्टी सिद्धांतों में शामिल है.? देखो! गुस्साना मत। मन में सवाल आया, इसलिए पूछ लिया।
(बातों से ये चारों भाजपाई लग रहे हैं)
पहला: अरे, नहीं पागल! ये सब पार्टी सिद्धांत से परे है। फिर भी सिस्टम में रहना है तो ऐसी बातें दबानी पड़ती है।
चौथा: लेकिन भाई! दबाओगे कैसे..??? लोग तो अब खुलकर चर्चा कर रहे हैं।
पहला: देख नहीं रहे, पार्टी में हड़कंप मचा हुआ है, लेकिन वीडियो पर सवाल कोई नहीं उठा रहा..? सभी ये कह रहे हैं कि आखिर ये खबर कैसे बन रही।
दूसरा: क्या भाई… आप भी! आपके 'होनहार' की फ़ोटो सोशल मीडिया पर आएगी और खबर भी नहीं बनेगी? कमाल करते हो। (इसने थोड़ी फिरकी ली)
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पहला: यही तो बात है। तू नहीं समझ रहा! सवाल बदलकर जवाब की दिशा तय की जा रही है ताकि कटघरे में किसी दूसरे को खड़ा किया जा सके।
तीसरा: (इसने फिर हिम्मत जुटाई और पूछा) सीधा सवाल है, सादा सा जवाब होना चाहिए। फिर भी सियासत भटक रही है..?
(बाकी तीनों उसकी तरफ टकटकी बांधे देखने लगे)
'इतना ही तो पूछना है कि वीडियो में चेहरा आपका है। आवाज आपकी है। कोई नोट की गड्डी दे रहा है और आप ले रहे हैं। अगर ये सच है तो नैतिकता के नाते कदम उठाइए, झूठ है तो उसके खिलाफ जिसने सारा स्वांग रचा।'
(तीसरे ने सिलसिलेवार बोला और बिंदुवार सवाल खड़े किए, बाकी तीनों का मुंह खुला का खुला रह गया)
पहला: देख भाई! यहां बोला तो बोला, किसी पांचवे के सामने मत बोलना। खासकर उस डंडा शरण के सामने। वही है, जो पार्टी की छवि खराब कर रहा है।
'कह तो रहे हैं, पार्टी की चिंता है। लेकिन कारनामे को अंजाम देने वाला सवालों से मुक्त है। भला, ये कैसा न्याय हुआ..?'
(तीसरा बुदबुदाया तो चौथे ने चुगली की)
'देखो भाई! ये कुछ बड़बड़ा रहा है।'
'देख, तू ज्यादा मत बोल हमारा ग्रुप छोड़ना है, तो छोड़ दे!'
'अरे, नहीं भाई! एक दोहा याद कर रहा था।'
'कौन सा..?'
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'जाने बात बुझक्कड़ और ना जाने कोए
और रातभर की अंधेरिया दुबक के बैठी होए।।'
'मतलब..?'
'जाने दो भाई, आप नहीं समझोगे!'
'बताता है कि ग्रुप से निकालूं, अभी।'
(उसने वही लाल बुझक्कड़ की कहानी सुना दी, जो ऊपर आप पढ़ चुके हैं, आगे की कहानी भी सुनिए, दोहे में कही गई बात भी इसी में है...)
"दरअसल, किसी ने उस हाथी को पेड़ के पीछे बैठे देखा और लाल बुझक्कड़ से कहा, वह क्या है..? तब बुद्धिमत्ता की पोल खुलने के डर से सरपंच जी ने यह दोहा बोला, जिसका मतलब था कि आज सूरज अचानक निकल आया होगा, जिस कारण 'अंधेरा' डर के मारे पेड़ के किनारे छिपकर बैठा है और अंधेरा होने का इंतजार कर रहा है। यह सुनकर सभी लोग बड़े खुश हुए और लाल बुझक्कड़ की बड़ाई करते हुए तालियां बजाने लगे।"
चौथा: 'मैं समझ गया।'
(लो, इस मोटी बुद्धि ने बात समझ ली, मतलब हर कोई समझ जाएगा, यह कहकर चारों हंसने लगे।)
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आप समझे या नहीं!!! शशशशश… हंसना मत, डंडा शरण सुन लेगा। सुनकर चुप रहे, ऐसा भी नहीं! लिखेगा। लिखा, तो पब्लिक पढ़ेगी। पढ़ी, तो सारा ड्रामा समझ जाएगी। समझी, तो फिर बड़ी बदनामी होगी।
...और आप तो अच्छे से जानते ही हैं कि यह पार्टी हित में नहीं। हां, जनहित की बात हो... तो उससे करना। वह 'लाल बुझक्कड़ी' तरकीब नहीं लगाता!
प्रधानमंत्री जी! कहानी के जरिए बच्चों में सूझबूझ विकसित करने का आजमाया हुआ नुस्खा नि:संदेह कारगर है। ऐसी ही कोई युक्ति इन 'लाल बुझक्कड़ों' के लिए भी सुझाइए।
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अगली बार 'मन की बात' में इन्हें भी बताइए कि 'जनहित' हमेशा 'पार्टी हित' से ऊपर है। कोई भी राजनीतिक पार्टी बनाई ही जनहित के लिए जाती है। ये अलग बात है कि जनहित की आड़ में स्वार्थ सिद्ध किए जाएं, किन्तु खुलासा होने पर पार्टी, स्वार्थी से किनारा करती है, परमार्थी से नहीं!!!