साल 2020 के एकेडमी पुरस्कार समारोह का आयोजन 10 फरवरी को किया जा रहा है। एकेडमी अवॉर्ड्स का पहला आयोजन 16 मई सन 1929 को हॉलीवुड के रूसवेल्ट होटल में एक निजी समारोह में किया गया था।
भारतीय सिनेमा में इसका इतिहास
भारतीय सिनेमा का इतिहास ऑस्कर्स के मुताबिक ज्यादा खास नहीं रहा है। अभी तक सिर्फ तीन भारतीय फिल्मों ने Best Foreign Language Film' की कैटेगरी में ऑस्कर नामांकन हासिल किया है। इस रिपोर्ट में बात करते हैं उन तीन फिल्मों के बारे में।
मदर इंडिया

ऑस्कर के लिए भारतीय फिल्म में सबसे पहला फिल्म 'मदर इंडिया' का चयन सन 1958 में किया गया था। हालांकि यह फिल्म अवॉर्ड तो नहीं जीत पाई लेकिन इसने काफी वाहवाही बटोरीं। इसका चयन बेस्ट फॉरेन लैंग्वेज फिल्म में भी किया गया था। इस फिल्म का निर्देशन महबूब खान ने किया था। ये फिल्म सन 1957 में रिलीज हुई थी। विदेशी भाषा में बनी श्रेष्ठ फिल्म श्रेणी में भारत की ओर से 'मदर इंडिया' भेजी गई थी। फिल्म के तकनीकी पक्ष और निर्देशक द्वारा बनाई भावना की लहर से चयनकर्ता प्रभावित थे परंतु उन्हें यह बात खटक रही थी कि पति के पलायन के बाद महाजन द्वारा दिया गया शादी का प्रस्ताव वह क्यों अस्वीकार करती है जबकि सूदखोर महाजन उसके बच्चों का भी उत्तरदायित्व उठाना चाहता है। दरअसल, चयनकर्ता को यह किसी ने नहीं स्पष्ट किया कि भारतीय नारी अपने सिंदूर के प्रति कितनी अधिक समर्पित होती है। फिल्म भारत के सदियों पुराने आदर्श के प्रति समर्पित थी।
सलाम बॉम्बे

1989 में एक और भारतीय फिल्म 'सलाम बांबे' को बेस्ट विदेशी भाषा फिल्म कैटेगरी में चयन किया गया था । इस फिल्म का निर्देशन मीरा नायर ने किया था। भारत देश की आर्थिक राजधानी और सपनों की नगरी कहा जाने वाला मुंबई शहर जिसकी एक कड़वी सच्चाई को बयां करने वाली इस फिल्म ने आते ही देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में हलचल मचा दी थी। इस फिल्म को हिंदी फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला वहीं इसे गोल्डेन कैमरा अवार्ड ,कांस फिल्म फेस्टिवल के ऑडियंस अवार्ड से भी सम्मानित किया गया। 'न्यू यॉर्क टाइम्स' ने दुनिया की 'सर्वकालिक महानतम 1000 फिल्मों' की अपनी सूची में 'सलाम बॉम्बे' का नाम भी शामिल किया था।
लगान

आशुतोष गोविरकर की फिल्म 'लगान' जो की एक ब्लॉकबस्टर फिल्म रही है। इसे सन 2002 में ऑस्कर में बेस्ट फॉरेन लैंग्वेज फिल्म कैटेगरी में नॉमिनेट किया गया था। इसमें मुख्य किरदार आमिर खान निभा रहे थे। फिल्म में ब्रिटिश कलाकारों के लिए इंग्लिश लिरिक्स और डायलॉग स्वयं आशुतोष गोवारिकर ने लिखे थे। यह फिल्म ऑस्कर में 'नो मैन्स लैंड' से पिछड़ गई थी।