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- फसल उत्पादकता और खाद्यान्न आत्मनिर्भरता पर पड़ेगा विपरीत प्रभाव
- विद्युत संशोधन बिल से राज्य के अधिकारों का होगा हनन
- इससे निजीकरण और पूंजीपतियों को मिलेगा बढ़ावा
- किसानों और गरीबों को दी जाने वाली विद्युत सब्सिडी की वर्तमान व्यवस्था उपयुक्त
- संशोधन बिल संघीय व्यवस्था के विपरीत
- राज्य विद्युत नियामक आयोग हो जाएगा अधिकार विहीन
- मुख्यमंत्री ने केन्द्रीय विद्युत मंत्री को लिखा पत्र
रायपुर, 08 जून 2020/ मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने केन्द्र सरकार द्वारा प्रस्तावित विद्युत संशोधन बिल 2020 को समाज के गरीब तबको एवं किसानों के लिए अहितकारी बताते हुए इस संबंध में केन्द्रीय विद्युत राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) आर.के. सिंह को पत्र लिखकर देश की वर्तमान स्थिति को देखते हुए इस संशोधन बिल को फिलहाल स्थगित रखने का आग्रह किया है।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने केन्द्रीय विद्युत मंत्रालय द्वारा तैयार किए गए संशोधन बिल को लागू करने से पूर्व सभी राज्य सरकारों से इस पर विचार-विमर्श करने तथा समाज के गरीब तबको एवं जन सामान्य के हितों का ध्यान रखने की बात कही है।
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मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने केन्द्रीय मंत्री को प्रेषित अपने पत्र में कहा है कि इस संशोधन बिल में क्रास सब्सिडी का प्रावधान किसानों और गरीबों के हित में नही है। समाज के गरीब तबके के लोगों और किसानों को विद्युत सब्सिडी दिए जाने का वर्तमान प्रावधान जांचा परखा और समय की जरूरत के अनुरूप है। किसानों को विद्युत पर दी जाने वाली सब्सिडी यदि जारी नहीं रखी गई तो किसानों के समक्ष फसलों की सिंचाई को लेकर संकट खड़ा हो जाएगा। इससे खाद्यान्न उत्पादन प्रभावित होगा और देश के समक्ष संकट खड़ा हो जाएगा। मुख्यमंत्री ने कहा है कि किसानों और मजदूरों की मेहनत का सम्मान होना चाहिए। जिन्होंने अपनी मेहनत से देश को खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर बनाया है। उन्होंने कहा है कि समाज के गरीब वर्ग के लोगों और किसानों को आत्मनिर्भर और सक्षम बनाने के लिए उन्हें रियायत दिया जाना जरूरी है। उन्होंने संशोधित बिल में क्रास सब्सिडी को समिति किए जाने के प्रावधान को अव्यवहारिक बताया है।
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मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा है कि डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर सिस्टम जो वर्तमान में लागू है, वह सही है। इसमें बदलाव करने से समाज के गरीब तबके के लोग और लघु एवं सीमांत कृषक लाभ से वंचित हो जाएंगे। मुख्यमंत्री ने कहा है कि खेती-किसानी के सीजन में प्रति माह फसलों की सिंचाई के लिए यदि कोई किसान एक हजार यूनिट विद्युत की खपत करता है तो उसे सात से आठ हजार रूपए के बिल का भुगतान करना होगा, जो उसके लिए बेहद कष्टकारी और असंभव होगा।
मुख्यमंत्री ने कहा है कि यह संशोधन बिल वातानुकूलित कमरों में बैठ कर तैयार करने वाले उच्च वर्ग के लोगों और सलाहकारों के अनुकूल हो सकता है लेकिन यह जमीन सच्चाई से बिलकुल परे है। इस संशोधन बिल को लागू करने से देश के समक्ष कई प्रकार की समस्याएं उत्पन्न होंगी । इससे गरीब, किसान और विद्युत कम्पनियों और आम लोगों को नुकसान होगा। रियायती दर पर किसानों को बिजली न मिलने से फसल सिंचाई प्रभावित होगी। खाद्यान्न उत्पादकता घटेगी जिसके चलते देश के समक्ष खाद्यान्न का संकट पैदा हो जाएगा।
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मुख्यमंत्री ने कहा कि इस संशोधन बिल के माध्यम से राज्य सरकारों के अधिकारों की कटौती तथा राज्य विद्युत नियामक आयोग की नियुक्तियों के अधिकारों को केन्द्र सरकार के अधीन किया जाना संघीय ढांचे की व्यवस्था के विपरीत है। यह बिल राज्य विद्युत नियामक आयोग के गठन के संबंध में राज्यों को सिर्फ सलाह देने का प्रावधान देता है। नियुक्ति के संबंध में राज्य की सहमति आवश्यक नहीं है। यह प्रावधान राज्य सरकार की शक्तियों का स्पष्ट अतिक्रमण है।
विद्युत संशोधन बिल 2020 में विद्युत के क्षेत्र में निजीकरण को बढ़ावा दिए जाने का प्रावधान किया गया है। इसके तहत सब लाइसेंसी और फ्रेन्चाईजी की नियुक्ति का भी प्रावधान है। यह प्रावधान चेक और बेलेन्स की नीति के विरूद्ध है, क्योंकि नियामक आयोग से लाईसेंस लेने के लिए सब लाईसेंसी और फ्रेंचाईजी बाध्य नहीं हैं। इससे यह स्पष्ट है कि यह अधिकार और कर्तव्य के सिद्धांत के भी विपरीत है।
मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने विद्युत वितरण प्रणाली को आम जनता की जीवन रेखा बताते हुए कहा है कि इसे निजी कम्पनियों का सौंपा जाना किसी भी मामले में उचित नहीं होगा। यह संशोधन विधेयक पूंजीवाद को बढ़ावा देने वाला और निजी कम्पनियों को इलेट्रिसिटी बोर्ड को कब्जा दिलाने वाला है।
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मुख्यमंत्री ने कहा है कि यह संशोधन बिल केंद्रीकृत विद्युत अनुबंध प्रवर्तन प्राधिकरण (ईसीईए) के गठन का प्रस्ताव करता है। उन्होंने इस संबंध में माननीय सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपील के संबंध में दिए गए निर्णय का भी विस्तार से उल्लेख किया है। उन्होंने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन पूरे देश में किया जा चुका है। उन्होंने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले को देखते हुए केंद्रीकृत विद्युत अनुबंध प्रवर्तन प्राधिकरण (ईसीईए) का गठन औचित्यहीन है। यदि ऐसा किया जाता है तो राज्य विद्युत नियामक आयोग अधिकार विहीन हो जाएंगे।
यह संशोधन केंद्रीकृत विद्युत अनुबंध प्रवर्तन प्राधिकरण (ईसीईए) के गठन का प्रस्ताव करता है। विद्युत नियामक विद्युत खरीदने के लिए अनुबंध की मंजूरी और होने वाले विवाद के समाधान के लिए पूरी तरह से सक्षम हैं। उल्लेखनीय है कि माननीय सुप्रीम कोर्ट ने 2015 की सिविल अपील संख्या 14697 में 12 अप्रैल 2018 को निर्णय लिया है कि ईआरसीएस के रोल और सहायक जिम्मेदारियों का संज्ञान लिया गया है और सभी विद्युत नियामक आयोग में एक कानूनी सदस्य की नियुक्ति के लिए निर्देशित किया है। सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश का अनुपालन पहले ही पूरे भारत में किया जा चुका है। जब भारत की सर्वोच्च अदालत पहले ही इस मुद्दे को देख चुकी है और इसे सुलझा चुकी है, तो नए निकाय के गठन का कोई औचित्य नहीं है। टैरिफ नीति से संबंधित प्रस्ताव वास्तव में राज्य विद्युत नियामक आयोग को दंत विहीन बनाने वाला साथ ही यह संघीय ढांचा, जो राज्यों की जनसांख्यिकीय और आर्थिक विविधता का सम्मान करता है उसके लिए यह हानिकारक है।
प्रस्तावित संशोधन केंद्र सरकार को नवीकरणीय और पनबिजली खरीद दायित्व को संरक्षित करने के लिए भी शक्ति प्रदान करता है। देश के अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग संसाधन हैं। मुख्यमंत्री श्री बघेल ने कहा है कि इसे देखते हुए पूरे देश के लिए इसको लागू किया जाना उचित नहीं होगा।