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नित-नया शिगूफ़ा छोड़ने वाले अब सामने बढ़-चढ़कर राम-राम जप रहे हैं और पीछे मंदिर निर्माण व भूमिपूजन रोकने में लगे हैं!
0 अनिल पुरोहित,* वरिष्ठ पत्रकार
कल भाद्रपद कृष्ण ०२, वि. सं. २०७७ तदनुसार ०५ अगस्त, २०२० को अयोध्या एक पावन महातीर्थ बनने की दिशा में अग्रसर होने जा रहा है! सैकड़ों वर्षों से शूल की तरह चुभ रहे दासता के प्रतीक बाबरी ढाँचे को ध्वस्त, धराशायी करके कारसेवकों ने ०६ दिसंबर, १९९२ को इस परम पावन धाम में स्थित भगवान श्री रामलला की जन्मभूमि पर भव्य मंदिर निर्माण के संकल्प का पांचजन्य-नाद किया था, उस गूंज की प्रतिध्वनि सुनकर कल समूचा विश्व प्रकम्पित हो जाए तो कैसा विस्मय! तमाम अड़ंगे डालकर, तमाम कुतर्क करके, हिन्दुत्व की सांस्कृतिक अवधारणा को संकीर्ण सांप्रदायिक खाँचे में सजाने की षड्यंत्रपूर्ण तमाम कुचेष्टाएँ करके भी मंदिर निर्माण विरोधियों को आख़िर हासिल क्या हुआ? मंदिर का निर्माण तो होना ही था, सो हो रहा है... हालाँकि अब तक भी वे इसी में लगे हैं कि मंदिर निर्माण का काम शुरू न हो पाए! वे मुस्लिम तुष्टिकरण के नाम पर रुदालियों की तरह अब भी पसर रहे हैं। अब क्या करें? उनकी नियति ही रोने की है, तो रो रहे हैं! कभी बाबरी ढाँचा ढहने पर तत्कालीन केंद्र सरकार के एक मंत्री माखनलाल फोतेदार फूट-फूटकर रोते देखे गए तो कभी बाटला हाऊस में किसी आतंकवादी की मौत पर कांग्रेस की अध्यक्ष एंटीनियो माइनो उर्फ़ सोनिया गांधी के फूट-फूट कर रोने की बात ख़ुद कांग्रेस के बड़े नेता फ़ख़्र के साथ बताते हैं। हम भी उन्हें रोने से मना नहीं करते। रो लीजिए जी भरके... पर पर झूठ बोलने की भी कोई तो हद तय कर लो। सरेआम उन तथ्यों को झुठला रहे हैं, उन्हें छिपाकर भ्रम फैलाने की साजिश कर रहे हैं... बावज़ूद इसके, मंदिर तो वहीं बन रहा है, जहाँ पर भव्य मस्ज़िद बनाकर मुसलमानों को देने की घोषणा कांग्रेस की तत्कालीन केंद्र सरकार ने तब की थी जब ढाँचा ढहने के कारण कांग्रेस को अपने मुस्लिम वोट बैंक के खिसक जाने का डर सताने लगा। तब जनता द्वारा चुनी गई भाजपा की चार राज्य सरकारों की बलि भी इसी घोषणा के साथ चढ़ाई गई थी! देश इस बात का साक्षी है। यह है कांग्रेस और धुर भाजपा विरोधियों-वामपंथियों की धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र के प्रति निष्ठा!! और आज रामजन्मभूमि पर मंदिर निर्माण के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ-परिवार और देश के सभी संतों-महंतों व धर्माचार्यों और समूचे हिन्दू समाज के संघर्ष, दशकों की लंबी क़ानूनी लड़ाई, कोठारी-बंधुओं की शहादत पर चले आए अपना हक़ जताने कि हमारे राजीव गांधी के उदार हिन्दुत्व ने मंदिर निर्माण का शिलान्यास किया। अब अगर राजीव गांधी ने शिलान्यास कर ही दिया था तो फिर कांग्रेस ने मंदिर बनवा क्यों नहीं दिया? सच्चाई यह है कि स्व. राजीव गांधी ने शिलान्यास नहीं किया था बल्कि कोर्ट के आदेश पर १९८६ में राम मंदिर का ताला खुलवाया था। और मज़े की बात यह है कि बाद में ख़ुद राजीव गांधी इससे मुकर भी गए। अयोध्या क़रीबी नज़र रखने वाले ‘जनमोर्चा’ अख़बार के संपादक शीतला सिंह ने अपनी एक मुलाक़ात का हवाला देते हुए बताया कि राजीव गांधी ने ख़ुद इस बात से इंकार किया था कि राम मंदिर का ताला खुलवाने में उनकी कोई भूमिका थी। प्रयागराज (इलाहाबाद) के सीजेएम रहे सीडी राय ने इस मामले की पूरी कहानी बताई। देशभर में अपने झूठ का रायता फैलाकर फ़रेब और तुष्टिकरण की राजनीति कर रहे लोग तथ्यों को छिपाकर, सत्य को झुठलाकर आख़िर कब तक बच पाएंगे? अब छत्तीसगढ़ में नए-नए संसदीय सचिव बने विकास उपाध्याय के राम मंदिर निर्माण को लेकर बयान और पोस्टर को देखिए। इससे अधिक स्तरहीन राजनीति की मिसाल और क्या हो सकती है? और तो और, राजीव गांधी की मौत को लेकर उपाध्याय को अभी-अभी यह ब्रह्म-ज्ञान हुआ है कि राजीव गांधी के उदार हिन्दुत्व की ओर बढ़ते क़दम से भाजपा व उसके सहयोगी संगठन चिंतित थे। वे नहीं चाहते थे कि राजीव ज़्यादा समय तक राजनीति में रहें, और ठीक चुनाव के वक़्त १९९१ में उनकी हत्या होना इस बात का प्रमाण है। मेरा ऐसा मानना है कि यह तथ्य को झुठलाकर कीचड़ में पत्थर फेंककर भाग जाने की गंदी सियासी फ़ितरत का नमूना है। अब या तो जनता के बीच आकर उपाध्याय अपनी आशंकाओं को साबित करें और नहीं तो प्रदेश की भावनाओं से खिलवाड़ करने के लिए बिना शर्त माफ़ी मांगें क्योंकि पूरा विश्व जानता है कि पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या में तमिल उग्रवादियों के संगठन लिट्टे का हाथ रहा है, क़ानूनन यह साबित भी हो गया है, उनकी हत्या से जुड़े लोग आज भी ज़ेल में क़ैद हैं और गांधी परिवार ने उन आरोपियों से बार-बार मिलकर संदेह के दायरे ख़ुद बढ़ाए हैं और आरोपियों के प्रति अपनी ‘रहमदिली’ भी दिखाई है; तब राजीव गांधी की हत्या को लेकर ऐसी बातें बचकानेपन का शर्मनाक परिचय मानी जा सकती हैं। ज़ाहिर है, इससे वे अपने केंद्रीय नेतृत्व की नाराज़गी के केंद्र में भी आ सकते हैं। पर विडंबना एक और यह भी है कि राजीव गांधी के उदार हिन्दुत्व के ‘वामपंथी स्क्रिप्ट राइटर्स’ से कहकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के पिता के उग्र हिन्दू विरोध और श्री राम के प्रति अपमानजनक टिप्पणियों पर कुछ लिखवाकर ‘भूपेश-जनक’ को ‘उदार हिन्दुत्व’ की सीख देने का साहस नहीं दिखाया जाता! तो नया-नया पद पाकर कुछ बोलने से पहले कम-से-कम तथ्यों की पड़ताल तो कर ही लेनी चाहिए। रामलला की जय-जयकार वे करें, यह अच्छी बात है, लेकिन इसकी आड़ में झूठ-फ़रेब की गंदी राजनीति नहीं होनी चाहिए। इतिहास साक्षी है कि मुस्लिम तुष्टिकरण के चलते शाहबानो-प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट का आदेश पलटने वाला क़ानून लाने वाली कांग्रेस के लिए तो हिन्दू और मुसलमान, राजनीतिक इस्तेमाल की वस्तु ही ज़्यादा रहे हैं। आज भगवान राम के ननिहाल को स्वर्ग-सा सुंदर बनाने और लव-कुश वाटिका को ईको टूरिज़्म सपॉट बनाने की सुध अगर कांग्रेस नेताओं को आई है तो सच मानिए, यह सिर्फ़ श्रीराम मंदिर निर्माण के ज़वाब में महज़ एक शिगूफ़े से ज़्यादा कुछ नहीं है। राम मंदिर निर्माण को लेकर अपने इस झूठ के प्रचार पर कांग्रेस के लोगों को शर्म तक महसूस क्यों नहीं हो रही है, जबकि देश साक्षी रहा कि श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ-परिवार, भाजपा और सभी हिन्दूवादी संगठनों ने संघर्ष किया है। कांग्रेस के लोगों ने तो शुरू से मंदिर निर्माण के काम में रोड़े ही अटकाने का काम किया। कांग्रेस के एक वक़ील नेता ने तो मंदिर निर्माण शुरू होने पर आत्महत्या तक करने का ऐलान कर रखा है। अब जिन लोगों ने प्रभु राम को काल्पनिक बताया, रामसेतु के अस्तित्व को ही नकारा, रामलला को वर्षों तक टेंट में रहने मजबूर किया, रामसेतु को तोड़ने का कुत्सित प्रयास किया, जो कहते थे कि विवाद छोड़ो और प्रभु की जन्मभूमि पर अस्पताल या स्कूल बना दो, अदालत में प्रभु राम के खिलाफ खड़े थे, जिन्हें कभी जय श्रीराम के नारों से डर लगता था, वही लोग अब देश में जागृत होते हिंदुओं की संगठित शक्ति को देखकर कैसे बढ़-चढ़कर राम-राम जप रहे हैं! जिन लोगों ने वर्षों चले राम जन्मभूमि आंदोलन को कुचलने का प्रयास किया, असंख्य बलिदानों के प्रति जिनके मुख से कभी एक शब्द नहीं निकला, जिन्होंने रामभक्तों पर गोली चलाने का समर्थन किया, वही सब लोग अब जय सियाराम-जय सियाराम कर रहे हैं! और अब भी कांग्रेस कर क्या रही है? ख़बर यह है कि राम मंदिर निर्माण को रोकने के लिए कांग्रेस किसी भी हद तक जाने को तैयार है और अब दिग्विजय सिंह को कांग्रेस ने मैदान में उतारा है। कोर्ट हो या मीडिया और सोशल मीडिया, कांग्रेस पूरा जोर लगा रही है कि किसी भी तरह राम मंदिर के निर्माण को रोका जाये, हरसंभव कोशिश की जाये और बस हर हाल में राम मंदिर के निर्माण और भूमिपूजन को रोकना है। कांग्रेस के नेता अब भी एक के बाद एक सामने आ रहे हैं और राम मंदिर भूमिपूजन और निर्माण को रोकने की मांग कर रहे हैं। एक कांग्रेस नेता का तो वह वीडियो खूब वायरल हो रहा है जिसमें उसे दाँत किटकिटाते यह कहते देका-सुना जा रहा है कि अयोध्या ही धंस जाये, अयोध्या में प्रलय आ जाये ताकि भूमिपूजन हो ही नहीं। कल एक कांग्रेस सांसद कुमार केतकर ने भगवान राम को ही काल्पनिक बता दिया और कहा कि जब कोई राम था ही नहीं, तो मंदिर काहे का? कांग्रेस नेताओं के अलावा कांग्रेस के नजदीकी लोग भी राम मंदिर के भूमिपूजन को रोकने की पूरी कोशिश में लगे हैं। कांग्रेस के करीबी शंकराचार्य स्वरूपानंद ने कहा कि मुहूर्त अच्छा नहीं है। एक कांग्रेस नेता ने तो भूमिपूजन के खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका भी डाल दी, हालाँकि कोर्ट ने उसकी याचिका को फाड़कर फेंक दिया। अब मैदान में कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह खुद आ गए और आज दिग्विजय सिंह ने अशुभ मुहूर्त का जुमला उछालकर राम मंदिर के भूमिपूजन को रोकने की मांग की। यानी, जैसे जैसे मंदिर निर्माण पास आता जा रहा है, कांग्रेस नेता अपनी मानसिकता दर्शा रहे हैं।
नोट - यह लेखक के अपने विचार हैं।