उत्तर प्रदेश सरकार गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में हाजिर थे लेकिन जिस उम्मीद के साथ सरकार कोर्ट पहुंची थी उम्मीद पूरी नहीं मामला था लखनऊ के चौराहों पर लगे हैं इससे हिंसा के आरोपियों के पोस्टर का इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी सरकार से यह पोस्टर हटाने का था
क्या कि हाईकोर्ट के फैसले पर स्टे नहीं लगेगा और यूपी सरकार से यह भी पूछा कि इस कानून के तहत उन्होंने लोगों की निजी जानकारी को ऐसे पोस्ट शेयर करने का फैसला लिया कोर्ट ने मामले को 3 सदस्य के पास दिया है सुनवाई जारी रहेगी
Anti CAA प्रदर्शन अर्थात नागरिकता कानून के विरोध में दिसंबर में लखनऊ में काफी हिंसा हुई थी सार्वजनिक संपत्तियों को काफी नुकसान पहुंचाया था सरकार ने उस वक्त कह दिया था यूपी सरकार ने कहा था नुकसान की भरपाई नुकसान करने वालों से ही की जाएगी अब तक ऐसे 57 लोगो को उनके नाम और पते के साथ लखनऊ के कुछ चौराहों पर होर्डिंग्स लगाए गए। इसके बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट में मामले पर स्वत संज्ञान लिया और सरकार से यह पोस्टर हटाने के लिए कह दिया इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस गोविंद माथुर जस्टिस रमेश सिन्हा की बैंच ने कहा था, "इस तरह सरकार की तरफ से सिर्फ आरोपों के आधार पर लोगों के पोस्टर लगाकर उनको अपमानित करना ठीक नहीं है सरकार की तरफ से कोई ऐसा काम नहीं किया जाना चाहिए जिससे किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचे ऐसे पोस्टर लगाना सरकार के लिए भी गलत है और नागरिक के भी" इसी आदेश पर स्टे लगवाने के लिए यूपी सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची है
क्या कहती है यूपी सरकार :
पहला तो ये कि सबको पता चले कि ये वही लोग हैं जिन्होंने उत्पात मचाया था
दूसरी वजह ये कि हजरतगंज में लगे हुए होर्डिंग्स में कुल 28 लोगों के नाम है ठाकुरगंज में लगे 10 लोगों के ना, हसनगंज में त13 और कैसरगंज में 6 लोगों के नाम है सारे होल्डिंग मिलाकर कुल मिलाकर 57 लोगो के नाम है।
Anti CAA protest में हुए प्रदर्शन में जो सर्वजनिक सम्पत्ति का नुक़सान हुए है
करीब 1.55 करोड़ रुपए वसूल किए जाएंगे प्रोटेस्ट में हुए नुकसान के भरपाई के तौर पर।
अब ये मामला सुप्रीम कोर्ट में है ।
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