प्रधानपाठ बैराज में हुए भ्रष्टाचार की लीपापोती के बाद ठेकेदारों का हौसला बढ़ा हुआ है और सिंचाई विभाग के अफसर उनके साथ मिलकर चीटिंग कर रहे हैं। इसलिए तो ठेकेदार कह रहा है कि बाम्बे की रेत नमकीन होती है। वहां डस्ट ही मिलाते हैं। इससे मसाले में लस आता है और अफसर क्या कह रहे खुद पढ़िए...।

नियाव@ खैरागढ़

1. टिंगामाली से बैराज तक बन रहे सीसी रोड और तकरीबन सवा किमी के रिवर प्रोटेक्शन वाल के काम को देखकर तो ऐसा ही लग रहा है। प्रोटेक्शन वर्क के बेस पर जंगल से निकाली गई बोल्डर वाली मिट्‌टी डाली जा रही है, जिसे पका हुआ मुरुम बताया जा रहा।


2. इसी तरह कांक्रीट में रेत के साथ आधी कीमत वाली डस्ट मिलाई जा रही है। सब इंजीनियर जेके जैन ये तो स्वीकार लिया कि एस्टीमेट में डस्ट का प्रावधान नहीं रहता, लेकिन ये भी बोले कि डस्ट को गिट्‌टी के साथ मिलाकर बेस में डाला जाता है। रोड के गड्‌ढों को भरने के लिए भी इसका उपयोग होता है। उनका यह जवाब मिलीभगत के खेल को उजागर कर रहा है।


3. जब एस्टीमेट में प्रावधान ही नहीं है तो डस्ट की बिलिंग कैसे होगी? गुरुवार दोपहर तकरीबन दो बजे टिंगामाली से बैराज वाली निर्माणाधीन रोड पर दोनों तरफ बोल्डर वाली मिट्‌टी दिखाई दी। ठीक यही मिट्‌टी प्रोटेक्शन वर्क के एक छोर पर मिली।


मौके पर गिट्‌टी के साथ मिला डस्ट भी

4. बैराज से तकरीबन एक किमी दूर नदी के दाएं हिस्से में सवा किमी रिवर प्रोटेक्शन वर्क पूरा होने वाला है। बमुश्किल 10-12 मीटर का काम ही रह गया है। यहीं पर बेस में बोल्डर युक्त मिट्‌टी दिखाई दी और इसके दूसरे छोर पर गिट्‌टी में डस्ट मिला दिखा, जबकि बाजू में रेत का ढेर भी पड़ा हुआ था। इससे साफ जाहिर है कि मसाले में डस्ट भी मिलाया जा रहा है।


रेत से आधे कीमत में मिल जाती है डस्ट

5. मटेरियल सप्लायरों से जानकारी लेने पर पता चला कि फिलहाल एक हाइवा यानी 500 फीट रेत की कीमत 11 हजार रुपए है, जबकि इतनी ही डस्ट 6 से साढ़े 6 हजार में मिल जाती है। सीधी सी बात है कि प्रोटेक्शन वर्क का काम करने वाले ठेकेदार ने विकल्प के तौर पर डस्ट का इस्तेमाल किया है ताकि मसाले में रेत की मात्रा घटाई जा सके। इससे लागत भी घटेगी।


कमजोर होगी स्ट्रेंथ, फटेगा कांक्रीट

6. नगर पालिका के सब इंजीनियर प्रशांत शुक्ला के अनुसार डस्ट चिकना होता है। मसाले में मिलाने से स्ट्रेंथ कम हो जाती है। ऐसे में प्रोटेक्शन वर्क कितना मजबूत होगा इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। अनुभवी ठेकेदारों का कहना है कि डस्ट की ज्यादा मात्रा से कांक्रीट फटेगा ही।


पूर्व सांसद के निरीक्षण में मिली थीं खामियां

7. चार माह पहले मौके पर पहुंचे पूर्व सांसद देवव्रत सिंह को भी सीसी रोड में खामियां मिली थीं। जूता मारने से ही कांक्रीट उखड़ रही थी। वे तो कांक्रीट के टुकड़े भी लेकर आए थे। बताया था कि सड़क में तालाब की मिट्‌टी का उपयोग किया गया है। इसके बावजूद किसी तरह की कार्रवाई नहीं हुई।


ठेकेदार और अफसरों के बोल से परखिए काम की ईमानदारी

8. बाम्बे में तो इसी से काम होता है / ठेकेदार केडी शर्मा का कहना है कि कांक्रीट के मसाले में डस्ट मिलाते हैं। अब बाम्बे में तो नमकीन रेत मिलती है तो इसी से काम होता है। डस्ट मिलाने से लस आता है और पकड़ मजबूत बनती है। हम तो निर्धारित क्वारी से ही मटेरियल ला रहे हैं।


9. गड्‌ढे में डालते हैं डस्ट / सब इंजीनियर जेके जैन का कहना है कि वह बोल्डरयुक्त मिट्‌टी नहीं बल्कि पका हुआ मुरुम है, जिसे निर्धारित क्वारी से लाई जा रही है। रोड में कहीं-कहीं गड्‌ढे होने पर ठेकेदार अपने हिसाब से डस्ट डालता है। वैसे एस्टीमेट में डस्ट का प्रावधान नहीं होता। इसकी बिलिंग भी नहीं होती।


10. डस्ट नहीं ग्रेडिंग मटेरियल है / ईई जीडी रामटेके बोले- मैं आज प्रधानपाठ की तरफ गया था। वहां बन रहे सीसी रोड और प्रोटेक्शन वर्क को भी देखकर आया हूं। वहां बोल्डर वाला मुरुम डाला गया है। इससे मजबूती आती है। इसी तरह प्रोटेक्शन वर्क के कांक्रीट में डस्ट नहीं ग्रेडिंग मटेरियल का इस्तेमाल किया जा रहा है।


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