महिलाएं रखती हैं निर्जला व्रत,बालू से बनता शिव पार्वती का स्वरूप
हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद महीने के शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि को हरतालिका तीज का व्रत किया जाता है। ये व्रत उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड और राजस्थान में खासतौर से किया जाता है। इस व्रत की कथा के अनुसार देवी पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए अपनी अलिकाओं के साथ यानि सहेलियों के साथ ये व्रत किया था। इसलिए इसे हरतालिका व्रत कहा जाता है। इसलिए महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए ये व्रत करती हैं। इनके साथ ही कुंवारी लड़कियां भी अच्छा पति पाने के लिए ये व्रत करती हैं। इस व्रत में पूरे दिन बिना पानी पिए उपवास किया जाता है और शाम को बालू रेत से श्रीगणेश और भगवान शिव-पार्वती की मूर्तियां बनाकर पूजा की जाती हैं। इसके बाद पूरी रात जागरण करते हुए चारों प्रहर की पूजा की जाती है। यानी हर 3 घंटे में पूजा होती है।
पूजा विधि:प्रदोष काल में होती है पूजा
हरतालिका तीज पर माता पार्वती और भगवान शंकर की विधि-विधान से पूजा की जाती है। भगवान शिव-पार्वती की पूजा प्रदोषकाल में किया जाता है। सूर्यास्त के बाद के मुहूर्त को प्रदोषकाल कहा जाता है। यह दिन और रात के मिलन का समय होता है। पूजा के लिए भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश की बालू रेत व काली मिट्टी की प्रतिमा हाथों से बनाएं। पूजा स्थल को फूलों से सजाकर एक चौकी रखें और उस चौकी पर केले के पत्ते रखकर भगवान शंकर, माता पार्वती और भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करें।
इसके बाद देवताओं का आह्वान करते हुए भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश का पूजन करें। सुहाग की सारी वस्तु रखकर माता पार्वती को चढ़ाना इस व्रत की मुख्य परंपरा है। इसमें शिवजी को धोती और अंगोछा चढ़ाया जाता है।
ये सुहाग सामग्री सास के चरण स्पर्श करने के बाद ब्राह्मणी और ब्राह्मण को दान देना चाहिए।
व्रत के नियम : रखा जाता है निर्जला व्रत
1. हरतालिका तीज व्रत में जल ग्रहण नहीं किया जाता है। व्रत के बाद अगले दिन जल ग्रहण करने का विधान है।
2. हरतालिका तीज व्रत करने पर इसे छोड़ा नहीं जाता है। प्रत्येक वर्ष इस व्रत को विधि-विधान से करना चाहिए।
3. हरतालिका तीज व्रत के दिन रात्रि जागरण किया जाता है। रात में भजन-कीर्तन करना चाहिए।
4. इस व्रत को कुंवारी कन्या, सौभाग्यवती स्त्रियां करती हैं। शास्त्रों में विधवा महिलाओं को भी यह व्रत रखने की आज्ञा दी गई है।
पूजन में चढ़ाई जाती है सुहाग सामग्री
हरतालिका तीज व्रत में देवी पार्वती की पूजा में सुहाग सामग्री चढ़ाई जाती है। जिसमें मेहंदी, चूड़ी, बिछिया, काजल, बिंदी, कुमकुम, सिंदूर, कंघी, माहौर, आदि। इसके अलावा श्रीफल, कलश, अबीर, चंदन, घी-तेल, कपूर, कुमकुम और दीपक होता है।
व्रत कथा: देवी पार्वती ने जंगल में किया तप और शिव पूजा
हरतालिका तीज व्रत भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार माता पार्वती ने भगवान भोलेनाथ को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था। हिमालय पर गंगा नदी के तट पर माता पार्वती ने भूखे-प्यासे रहकर तपस्या की। माता पार्वती की यह स्थिति देखकर उनके पिता हिमालय दुखी थे।
एक दिन महर्षि नारद भगवान विष्णु की ओर से पार्वती जी के विवाह का प्रस्ताव लेकर आए लेकिन जब पार्वतीजी को इस का पता चला तो, वे विलाप करने लगी। एक सखी को उन्होंने बताया कि, वे भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तप कर रही हैं। इसके बाद अपनी सखी की सलाह पर माता पार्वती वन में चली गईं और भगवान शिव की आराधना में लीन हो गई।
इस दौरान भाद्रपद में शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन माता पार्वती ने रेत से शिवलिंग का निर्माण किया और भोलेनाथ की आराधना की। माता पार्वती के कठोर तप को देखकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और पार्वतीजी की इच्छानुसार उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया।
श्री रुक्खड स्वामी देवालय
पं.धर्मेंद्र दुबे खैरागढ
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