हर महीने की त्रियोदशी के व्रत को प्रदोष व्रत के नाम से जाना जाता है. प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित होता है. इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा-अर्चना की जाती है. भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष में पड़ने वाला ये पहला प्रदोष व्रत है. इस बार ये 4 सितंबर, शनिवार को पड़ रहा है इसलिए इसे शनि प्रदोष व्रत भी कहा जा रहा है. शनि प्रदोष व्रत के दौरान भगवान शिव के साथ-साथ शनिदेव की कृपा भी पा सकते हैं. अगर किसी पर शनि का प्रकोप है या साढ़े साती है, तो इस दिन व्रत या ये उपाय करके साढ़े साती के प्रकोप से मुक्त हो सकता है. सभी समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए शनि त्रियोदशी के दिन प्रदोष काल में भगवान शिव की विधि-विधान से पूजा करने से शनि की साढ़े साती से मुक्ति मिल जाती है.
शनि प्रदोष व्रत का महत्व
कहते हैं कि प्रदोष व्रत के दौरान भगवान शिव और माता पार्वती की उपासना की जाती है. ऐसा करने से जीवन में हर सुख की प्राप्ति होती है. साथ ही व्यक्ति को पाप कर्म से मुक्ति मिलती है. ये व्रत स्त्री और पुरुष दोनों रख सकते हैं. इस व्रत को रखने से संतान प्राप्ति का वरदान भी मिलता है. शनिवार को पड़ने के कारण शनि प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव के साथ-साथ शनिदेव की भी विदि-पूर्वक पूजा करें. शनि से जुड़ी वस्तुओं का दान करें. कहते हैं ऐसा करने से कुंडली में शनि की दशा सही हो जाती है.
यूं करें शनि की पूजा और उपाय
1. शनि त्रियोदशी के दिन अगर आप पर साढ़े साती या शनि ढैय्या है तो शाम के समय पीपल के पेड़ की पूजा करें. उसके आगे सरसों के तेल का दीपक जलाएं. फिर शनिदेव के मंज्ञ 'ॐ शं शनैश्चराय नम:' का 108 बार जाप करें. मान्यता है कि ऐसा करने से शनि परेशान नहीं करते.
2. शनि त्रियोदशी के दिन धन को लेकर परेशान लोगों को पीपल के पेड़ पर नीले रंग के फूल चढ़ाने की सलाह दी जाती है. साथ ही पीपल के पड़े पर जल चढ़ाएं और शनि के मंत्र की एक माला का जाप करें. ऐसा करने से आर्थिक स्थिति में सुधार होता है.
3. संतान प्राप्ति और जल्द विवाह की मनोकामना रखने वाले जातकों को शनि त्रियोदशी के दिन शिवलिंग पर 11 फूल और 11 बेलपत्र अर्पित करने की सलाह दी जाती है. कहते हैं ऐसा करने से शनि दोष से राहत मिलती है.
4. इस दिन तेल में अपना चेहरा देखकर डाकोत को तेल का दान करें, ऐसा करने से जहां शनिदेव का आर्शीवाद प्राप्त होता है, वहीं शनि दोष से मुक्ति मिलती है.
5. शनि प्रदोष के दिन काले कुत्ते को तेल से चुपड़ी हुई मीठी रोटी खिलाने से सोई हुई किस्मत जाग जाती है.
6. इस दिन भगवान शिव के साथ शनिदेव की पूजा-अर्चना करना चाहिए. साथ ही, शनि चालीसा के साथ-साथ शनि स्त्रोत का पाठ भी कर ना चाहिए. ऐसा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है.
शनि प्रदोष व्रत कथा
प्राचीन समय की बात है। एक नगर सेठ धन-दौलत और वैभव से सम्पन्न था। वह अत्यन्त दयालु था। उसके यहाँ से कभी कोई भी ख़ाली हाथ नहीं लौटता था। वह सभी को जी भरकर दान-दक्षिणा देता था। लेकिन दूसरों को सुखी देखने वाले सेठ और उसकी पत्नी स्वयं काफ़ी दुखी थे। दुःख का कारण था- उनके सन्तान का न होना। सन्तानहीनता के कारण दोनों घुले जा रहे थे। एक दिन उन्होंने तीर्थयात्रा पर जाने का निश्चय किया और अपने काम-काज सेवकों को सोंप चल पड़े। अभी वे नगर के बाहर ही निकले थे कि उन्हें एक विशाल वृक्ष के नीचे समाधि लगाए एक तेजस्वी साधु दिखाई पड़े। दोनों ने सोचा कि साधु महाराज से आशीर्वाद लेकर आगे की यात्रा शुरू की जाए। पति-पत्नी दोनों समाधिलीन साधु के सामने हाथ जोड़कर बैठ गए और उनकी समाधि टूटने की प्रतीक्षा करने लगे। सुबह से शाम और फिर रात हो गई, लेकिन साधु की समाधि नहीं टूटी। मगर सेठ पति-पत्नी धैर्यपूर्वक हाथ जोड़े पूर्ववत बैठे रहे। अंततः अगले दिन प्रातः काल साधु समाधि से उठे। सेठ पति-पत्नी को देख वह मन्द-मन्द मुस्कराए और आशीर्वाद स्वरूप हाथ उठाकर बोले- 'मैं तुम्हारे अन्तर्मन की कथा भांप गया हूँ वत्स! मैं तुम्हारे धैर्य और भक्तिभाव से अत्यन्त प्रसन्न हूँ।' साधु ने सन्तान प्राप्ति के लिए उन्हें शनि प्रदोष व्रत करने की विधि समझाई और शंकर भगवान की निम्न वन्दना बताई।
हे रुद्रदेव शिव नमस्कार। शिव शंकर जगगुरु नमस्कार॥ हे नीलकंठ सुर नमस्कार। शशि मौलि चन्द्र सुख नमस्कार॥ हे उमाकान्त सुधि नमस्कार। उग्रत्व रूप मन नमस्कार ॥ईशान ईश प्रभु नमस्कार। विश्वेश्वर प्रभु शिव नमस्कार॥ तीर्थयात्रा के बाद दोनों वापस घर लौटे और नियमपूर्वक शनि प्रदोष व्रत करने लगे। कालान्तर में सेठ की पत्नी ने एक सुन्दर पुत्र जो जन्म दिया। शनि प्रदोष व्रत के प्रभाव से उनके यहाँ छाया अन्धकार लुप्त हो गया। दोनों आनन्दपूर्वक रहने लगे
श्री रुक्खड स्वामी देवालय
पं.धर्मेंद्र दुबे खैरागढ
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