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सुकमा. तेलंगाना से चलकर बिहार लौट रहे प्रवासी मजदूर की जुबानी सुनिए उसकी बेबसी की कहानी। जिसमें वह बता रहा है कि लॉकडाउन के चलते घर लौटने में उसे किन मुसीबतों का सामना करना पड़ा।
बीबीसी न्यूज़ ने अपने ट्विटर हैंडल पर एक पोस्ट जारी किया है, जिसमें तेलंगाना से पैदल छत्तीसगढ़ के सुकमा पहुंचे है प्रवासी मजदूर से बातचीत है। दुर्गा दास, जो तेलंगाना में मजदूरी करते थे, अब लॉकडाउन के चलते बिहार स्थित अपने गांव लौट रहे हैं। उनके साथ 75 लोग और हैं, जो छत्तीसगढ़ के जंगलों से होकर 350 किलोमीटर का सफर तय कर अभी छत्तीसगढ़ के सुकमा ज़िले पहुंचे हैं। यहां 33 वर्षीय दुर्गा दास की जुबानी जानिए पूरी कहानी...
‘अभी हम छत्तीसगढ़ के सुकमा जिला में हैं। हम लोग करीब 75 लोग हैं। बिहार जाना है। तेलंगाना में काम करते थे। वहां से जंगल के रास्ते चलते हुए आए तो पता चला कि छत्तीसगढ़ बॉर्डर पास में है। हम लोग शनिवार को निकले थे।’
‘वहां हमें कहा गया था कि सरकार तरफ से पैसे मिलेंगे, पर पैसा कुछ मिला नहीं तो सोचा यहां फालतू खा कर क्या करेंगे। इसलिए हम लोग वहां से पैदल निकल पड़े वहां के प्रशासन ने पहले हमें कहा कि पैदल नहीं जाना है। आप लोगों के लिए गाड़ी की व्यवस्था की जा रही है। यह सुनकर हम भी राजी हो गए, और पूछा कि इसके लिए क्या करना होगा।’
‘उन्होंने कहा रजिस्ट्रेशन कराना होगा। मेडिकल जांच करानी होगी। मोहर लगवाना होगा। वहां हमें स्टेशन तक जाने के लिए एक पेपर भी दिया गया और कहा वहां जाकर आपका पास बन जाएगा। चार दिन के अंदर सब हो जाए जाएगा, लेकिन कुछ नहीं हुआ। आज तक कुछ नहीं हुआ। मैसेज नहीं आया तो हम लोग वहां से निकल आए। पैसा भी खत्म हो गया था, इसलिए पैदल ही निकल आए।’
यहां (छत्तीसगढ़ के सुकमा ) पहुंचे तो आर्मी कैंप वाले मिले। अच्छा व्यवहार किए। खाना भी खिलाए।
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BBC द्वारा जारी वॉइस रिकॉर्डिंग सुनें :
दुर्गा दास तेलंगाना में काम करते थे. अब बिहार में अपने गांव जाने के लिए पैदल निकल पड़े हैं. उनके साथ 75 और लोग हैं जो छत्तीसगढ़ के जंगलों से होकर 350 किलोमीटर चलकर अभी छत्तीसगढ़ के सुकमा ज़िले पहुंचे हैं. सुनिए दुर्गा दास की कहानी... pic.twitter.com/nw7C6Hp0xR
— BBC News Hindi (@BBCHindi) May 16, 2020
आगे रिकॉर्डिंग में दुर्गादास कहते हैं.....
'कि 350 किलोमीटर हम चलकर आए हैं और घंटे का कोई हिसाब नहीं रहा। चलना है मतलब चलना है, किसी भी तरह मेन रोड पकड़ना है। डर किस बात का? हम कुल 75 लोग एक साथ, हमारे पास कुछ था भी नहीं, जिससे लूटमार हो कुछ भी नहीं है हमारे पास, साथ में बस चना रखे थे जिसको खाते हुए आए हैं। हालांकि चलने का इरादा नहीं है पांव में छाले पड़ चुके हैं अब आगे का रास्ता कैसे चलेंगे?'
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'बात हुई थी कि गाड़ी में छोड़ दिया जाएगा। सरकार से चवन्नी भर भी विश्वास नहीं है कि वह हमारे लिए कुछ करेगी। वहां (तेलंगाना) के एसआई से बात किए, वहां के तहसीलदार जो मजिस्ट्रेट होता है, से बात किए, सब ने कहा हो जाएगा पर कुछ नहीं हुआ। कहा गया कि 3 किस्तों में लॉक डाउन का पैसा मिलेगा, पर कुछ पैसा नहीं मिला।'
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'अब कभी कहीं नहीं जाएंगे। अपना खेती-बाड़ी करेंगे। मरेंगे तो साथ में मरेंगे, और सरकार से यही कहेंगे कि आप जो भी कदम उठाए, प्रवासी मजदूर जहां काम कर रहे थे, वही में काम दे देते, वेतन दे देते, जिससे उनका काम चलता रहता। वहीं खाते पीते रहते और पैसे घर भेज देते। हम वहां भी भूखे मरे, घर वाले भी भूखे मरे।'
'तेलंगाना में नहीं आएंगे। सरकार ने हमारे साथ नाइंसाफी की।हमारी कंपनी ने हमारे साथ नाइंसाफी की। अब भूल कर भी तेलंगाना नहीं आएंगे। वहीं कमा खा लेंगे। आज हम और गरीब हो गए। अब इस गरीबी को सुधारने में 10 साल लगेंगे। पेट भर खाना कहां खा पाए, चनें से पेट थोड़ी भरता है।'
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