खैरागढ़. जिले के आंगनबाड़ी केंद्रों में बच्चों को गर्म भोजन वितरण के नाम पर बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़ा सामने आने के बावजूद अब तक दोषियों के खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई नहीं हुई है। प्रशासन ने पुष्टि के बाद केवल आर्थिक वसूली तक अपनी कार्रवाई सीमित रखी है, जबकि रिकॉर्ड में हेरफेर करने वाले ऑपरेटर, सुपरवाइजर और परियोजना अधिकारियों पर न तो किसी प्रकार की प्राथमिकी दर्ज की गई है, न ही निलंबन जैसी कोई विभागीय कार्रवाई हुई है। इससे महिला एवं बाल विकास विभाग की कार्यप्रणाली और जिला प्रशासन की निष्क्रियता पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं।
एक ओर जहां लगातार फर्जीवाड़े के मामले उजागर हो रहे हैं, वहीं दूसरी ओर कलेक्टर श्री इंद्रजीत सिंह चंद्रावल की अध्यक्षता में 14 जून को आयोजित समीक्षा बैठक में महिला एवं बाल विकास विभाग की कार्यकुशलता की प्रशंसा की गई। यह विरोधाभास चौंकाने वाला है, क्योंकि जिस विभाग की पीठ थपथपाई जा रही है, उसी के अधीनस्थ अधिकारी सरकारी योजनाओं का खुलेआम दुरुपयोग कर रहे हैं।
कागज़ों में बच्चे, जमीन पर घोटाला
सिंगारपुर जैसे आंगनबाड़ी केंद्रों में बच्चों की वास्तविक संख्या 28 है, लेकिन रिकॉर्ड में 56 दर्शाकर दो गुना भोजन सामग्री उठाई जा रही थी। यह सिर्फ एक केंद्र का मामला नहीं है, बल्कि पूरे ब्लॉक में दर्जनों आंगनबाड़ियों में इसी तरह की अनियमितताओं की पुष्टि हो चुकी है। अप्रैल माह में 700 की जगह 1398 गरम भोजन पैकेट दिखाकर लाखों रुपये की सरकारी राशि हड़प ली गई।
समीक्षा में वाहवाही, ज़मीनी हकीकत में घोटाला
समीक्षा बैठक में कलेक्टर ने सुपोषण चौपाल, बाल संदर्भ शिविर और स्टंटिंग दर पर सुधार जैसे बिंदुओं पर चर्चा की, लेकिन जब तक विभागीय निगरानी में पारदर्शिता और जवाबदेही नहीं लाई जाती, तब तक यह सब केवल दिखावे की कवायद ही प्रतीत होती है। बड़ी चिंता की बात यह है कि जिन परियोजना अधिकारियों और सुपरवाइजरों को सुधार और निगरानी की जिम्मेदारी सौंपी गई है, वही भ्रष्टाचार के संरक्षण में लगे हुए हैं।
कांग्रेस का आरोप: ‘महज बैठकें हो रही हैं, कार्रवाई शून्य’
कांग्रेस नेताओं ने प्रशासन पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए कहा कि “जनता के टैक्स के पैसे से संचालित योजनाएं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रही हैं और प्रशासन आंख मूंदे बैठा है। केवल समीक्षा बैठकें कर लेने से जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ा जा सकता। जब तक दोषियों पर एफआईआर और निलंबन जैसे कठोर कदम नहीं उठाए जाते, तब तक जनता का विश्वास टूटता रहेगा।”
क्या सिर्फ कागजों पर ही मिटेगा कुपोषण?
जिला प्रशासन और विभागीय अधिकारियों की निष्क्रियता यह दर्शा रही है कि बच्चों के पोषण से जुड़ी योजनाओं को भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ा दिया गया है। अगर शासन-प्रशासन अब भी नहीं चेता, तो कुपोषण मुक्त समाज का सपना केवल नीति पत्रों और बैठक कक्षों तक ही सिमटकर रह जाएगा।