खैरागढ़ क्षेत्र में आबकारी विभाग की ताबड़तोड़ कार्रवाई ने न केवल अवैध शराब कारोबारियों की नींद उड़ा दी है, बल्कि आम जनता के बीच यह सवाल भी खड़ा कर दिया है कि क्या यह कार्रवाई वास्तव में एक सतत मुहिम का हिस्सा है या फिर महज औपचारिकता निभाने की कवायद?
देवरी से बोरई तक चली छापेमारी की लहर
देवरी जैसे वनांचल ग्राम में शुक्रवार को एक साथ तीन ठिकानों पर छापेमारी कर आरोपी चैतराम यादव, गोवर्धन बंधे, गणेशु डहरे के पास से 14 लीटर कच्ची महुआ शराब और 150 किलो महुआ लाहन जब्त करना कोई मामूली उपलब्धि नहीं है। साथ ही ग्राम बोरई में आरोपी धनाजी के यह से गोवा स्पेशल व्हिस्की और देशी शराब मिलाकर कुल 14.40 लीटर अवैध शराब की बरामदगी यह दर्शाती है कि ये व्यापार अब छोटे-मोटे धंधेबाजों तक सीमित नहीं रह गया है—बल्कि यह एक सुनियोजित नेटवर्क की ओर इशारा करता है।
कड़ी कार्रवाई या हल्की पकड़?
चार मामलों में से केवल दो आरोपियों को जेल भेजना और बाकी को मुचलके पर छोड़ना कहीं न कहीं कार्रवाई की गंभीरता पर सवाल खड़े करता है। क्या यह उदारता किसी "प्रभावशाली" संरक्षण का परिणाम है या कानूनी बाध्यता?
आबकारी विभाग की भूमिका सराहनीय, पर सवाल बरकरार
कार्रवाई का नेतृत्व कर रही टीम—विजयेंद्र कुमार, राजकपूर कुमरा और प्रभाकर सिरमौर—की सक्रियता काबिल-ए-तारीफ है। लेकिन ऐसी कार्रवाइयों की नियमितता और पारदर्शिता ही यह तय करेगी कि खैरागढ़ में अवैध शराब का कारोबार वास्तव में रुकेगा या फिर कुछ दिनों की खामोशी के बाद फिर वही खेल दोहराया जाएगा।
जनता आश्वासन नहीं परिणाम देखना चाहती है
प्रशासन ने दावा किया है कि इस तरह की कार्रवाइयाँ आगे भी जारी रहेंगी। पर जनता अब आश्वासन नहीं, परिणाम देखना चाहती है। छोटे कारोबारियों पर कार्रवाई कर बड़ी मछलियों को छोड़ना इस अभियान की प्रभावशीलता को खोखला बना सकता है।
आबकारी विभाग इस सख्ती को अभियान में बदलकर ऊपरी संरक्षण वाले शराब माफियाओं तक पहुंचता है, तो यह खैरागढ़ की सामाजिक संरचना में एक बड़ा बदलाव ला सकता है। वरना ये खबर भी बाकी “कड़ी कार्रवाई” जैसी सिर्फ खबर बनकर रह जाएगी