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अब तक तो सभी ने यही सुना था और पढ़ा था कि पुराने जमाने में आदिवासी तथा विशेष तौर पर झारखंड के लुप्तप्राय सबर जनजाति के लोग पेड़ पर जीवन-यापन करते थे, लेकिन आज के इस आधुनिक जमाने में भी ऐसा होगा, सच में आश्चर्य करने वाली बात है। लेकिन कोंकादोसा गांव के पिछड़ेपन को देख सहज अंदाजा हो जाएगा कि आज भी कितने लोग किस कदर उपेक्षित स्थिति में गुजर-बसर कर रहे हैं और पेड़ तक पर रहने को मजबूर हैं।
यकीन करना मुश्किल है, लेकिन है हकीकत। पूर्वी सिंहभूम जिला जो झारखंड के दक्षिणपूर्व कोने में स्थित है वहां के बोड़ाम प्रखंड के कोंकादोसा गांव में बिजौली सिंह नाम की एक महिला इमली के पेड़ पर रहती है। पेड़ पर ही सोती भी है और तो और पेड़ के नीचे ही भोजन करती है।
आवास की है समस्या
आप सभी के मन में यह बात जरूर आ रही होगी कि यह महिला पेड़ पर क्यों रह रही है। इस सवाल का जवाब उस गांव के लोगों से मिला। गाँव के लोगों के बताया कि वह उस पेड़ पर रहने को मजबूर है। क्योंकि उसका अपना कोई आवास नहीं है। बिजौली सिंह दिन के समय पेड़ के नीचे खाना पकाती है। बर्तन समेत सभी सामान वह पेड़ के निचे खुले आसमान में ही छोड़ देती है। खाना खाने के बाद वह शाम को सीढ़ी के सहारे पेड़ पर चढ़ जाती है। इमली के पेड़ पर उसने खुद एक मचान बना रखा है जिसमें वह सोती है। आवास नहीं होने के कारण वह पेड़ पर सोने को विवश है।
झारखंड के दक्षिणपूर्व कोने में स्थित पूर्वी सिंहभूम जिले के बोड़ाम प्रखंड के कोंकादोसा नामक गांव पेड़ पर रहने वाली बिजौली सिंह की उम्र 45 साल के आस-पास है। वह महिला अविवाहित है। सरकारी सुविधाओं से दूर यह गांव घने जंगल के बिल्कुल बीचों-बीच है। जमशेदपुर शहर से सटे बोड़ाम प्रखंड में मुख्य सड़क से करीब 15 किमी दूर घने जंगल में जाने के बाद यह गांव मिलता है। इस गाँव में केवल 27 परिवार रहते हैं। इस गांव के अधिकतर लोग जंगल से लकड़ी व पत्ता चुनकर गुजारा करते हैं।
गाँव को गोद लेंगे सचिव
महिला के पेड़ पर रहने की जानकारी तब हुई, जब जिला विधिक सेवा प्राधिकार के सचिव नीतीश निलेश सांगा गांव का दौरा करने पहुंचे। शुक्रवार को वे मौके पर गए थे। संयोग से जब वे पहुंचे तो महिला पेड़ पर बने मचान में नहीं मिली। गांव वालों ने उन्हें गांव की बदहाली से अवगत कराया। गांव में न तो बिजली है, न तो सोलर लाइट की व्यवस्था है। शौचालय तो दूर की बात है यहाँ किसी घर में गैस सिलिंडर भी नहीं है।
गांव में एक प्राथमिक विद्यालय है जिसमें सिर्फ एक पारा शिक्षक है। पांचवीं तक विद्यालय में पढ़ने की व्यवस्था है। गांव से आठ किलोमीटर की दूरी पर मध्य विद्यालय है। दूरी के कारण बच्चे पढ़ाई छोड़ देते हैं।नीतीश निलेश सांगा ने अब इस गांव को गोद लेकर यहां के लोगों तक विकास की धारा पहुंचाने की बात कही है।