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ख़ैरागढ़. ख़ैरागढ़ विधानसभा की राजनीति आज़ादी के बाद से ही राजपरिवार के इर्द - गिर्द रही। आज़ादी के तुरंत बाद के चुनाव में स्व. राजा वीरेंद्र बहादुर सिंह, स्व.रानी पद्मावती देवी सिंह ने ख़ैरागढ़ और वीरेंद्र नगर का प्रतिनिधित्व किया। बीच बीच के अल्पविराम के बाद अमूमन विधानसभा की राजनीति राजपरिवार के इर्द गिर्द ही रही। फिर चाहे लोकसभा हो या राज्यसभा। जनता ने न विकास देखा और न लहर। उन्होंने अपनी प्रतिबद्धता राजपरिवार के साथ बनाए रखी। राजा - रानी के बाद उनके पुत्र स्व.शिवेंद्र बहादुर सिंह सांसद बने,उनकी पत्नि गीता देवी सिंह मंत्री बनीं। और स्व. रानी रश्मि देवी सिंह लगातार विधायक बनीं। उनकी अकस्मात मृत्यु के बाद राजपरिवार के तत्कालीन विश्वस्तों ने बिल्कुल देर नहीं किया और सत्ता का तुरंत हस्तातंरण देवव्रत सिंह को करते हुए।जनता को यह बता दिया गया कि आपका प्रतिनिधित्व करने वाले यही हैं।स्व.देवव्रत सिंह जीते तो राजपरिवार का सदस्य होने के कारण पर उन्होंने अपने काम से खुद को साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। राजपरिवार के वर्तमान विश्वस्त भी लगभग उसी रणनीति पर काम कर रहे हैं। देवव्रत सिंह की पूर्व पत्नी पद्मादेवी,उनके दोनों बच्चों आर्यव्रत और शताक्षी को लेकर लोगों के बीच जा रही हैं। विरासतकालीन राजनीति की पूरी बिसात महल के विश्वस्त ही बिछा रहे हैं। और बिसात पर प्रदेशाध्यक्ष के सामने खुली दावेदारी रख पद्मादेवी ने बता दिया है कि वे राजपरिवार की राजनीतिक विरासत पर अपना पुख्ता दावा रखती हैं हालांकि अब निगाहें सिंह की पत्नी विभा देवी सिंह पर टिकी हैं।
कोमल,गिरवर की स्वाभाविक दावेदारी के साथ नीलांबर और विजय का भी नाम
निरन्तर चलते राजपरिवार के इस दौर में साल 2003 के चुनाव में स्व.देवव्रत सिंह और भाजपा से सिद्धार्थ सिंह के बीच सीधी टक्कर थी। पर उक्त चुनाव में जाति बाहुल्यता के आधार पर पदार्पण कर लोधी समाज के प्रदेशाध्यक्ष कमलेश्वर वर्मा ने जातिवाद का तड़का लगा दिया। चुनाव में गिलास छाप से खड़े हुए कमलेश्वर वर्मा को 21 हज़ार वोट मिले। हालांकि जीत कांग्रेस की हुई। पर भाजपा ने जातिवाद की इसी नैया में अपना खेवनहार भी देख लिया और देवव्रत सिंह के लोकसभा जाने के बाद खाली हुई सीट से कोमल जंघेल को अपना उम्मीदवार बनाया। कोमल जंघेल जीते,फिर जीते और संसदीय सचिव बने। फिर अगले चुनाव में कांग्रेस ने भी पहली बार राजपरिवार को नकारते हुए गिरवर जंघेल को अपना उम्मीदवार बनाया। गिरवर जीते भी ..... पर बीते विधानसभा चुनाव में देवव्रत सिंह ने जातिवाद के तिलस्म को पूरी तरह नेस्त नाबूद कर दिया। जनता कांग्रेस (जोगी) के बैनर तले देवव्रत ने गिरवर जंघेल को तीसरे स्थान पर पहुंचा दिया। और कोमल जंघेल दूसरे स्थान पर रहे। वे कम अंतर से हारे और उपचुनाव में भाजपा के दावेदारों में स्वाभाविक रूप से पहला नाम उनका ही आता हैं। जंघेल मतदाताओं से लेकर कार्यकर्ताओं से सतत संपर्क बनाए हुए हैं।कांग्रेस से नीलांबर वर्मा का नाम भी बड़ी प्रमुखता से सामने आ रहा है। नीलांबर बूथ स्तर पर सक्रिय हैं। और ब्लॉक कांग्रेस ख़ैरागढ़ अध्यक्ष यशोदा वर्मा के पति हैं। यदि नीलांबर वर्मा के नाम सहमति नहीं बनी तो यशोदा वर्मा का नाम भी सामने आ सकता है। लोधी समाज से ही अगला नाम विजय वर्मा का है। विजय वर्मा जिला पंचायत सदस्य निर्मला वर्मा के पति हैं,और लगातार सक्रिय हैं। इसके अलावा कांग्रेस से कामदेव वर्मा,दशमत जंघेल,रजभान लोधी जैसे नाम भी हवा में तैर रहे हैं। तो भाजपा में भी तीरथ चंदेल,लुकेश्वरी जंघेल,राजकुमार जंघेल जैसे नाम भी जातीय समीकरण में हवा में तैरते रहते हैं। और इनकी भी दावेदारी सामने आ रही है।
साहू समाज भी ठोंकेगा ताल
इन सबके बीच अब साहू समाज से भी दावेदारी सामने आ रही है। इनमें सबसे पहला नाम आता है जिला पंचायत सदस्य घम्मन साहू का। घम्मन साहू समाज के प्रमुख पदों में रहे हैं,और भाजपा के संगठन पदाधिकारी भी रहे है । साथ ही कांग्रेस से पूर्व जनपद अध्यक्ष भुवनेश्वर साहू के नाम की भी दावेदारी है। साथ मे हेमू साहू जैसे नाम भी हवा में तैर रहे हैं। साहू समाज दोनों ओर से लोधी समाज से प्रत्यशियों का नाम सामने आने पर बहुजन समाज पार्टी से विप्लव साहू का नाम भी आगे कर सकती है। और वोटों के ध्रुवीकरण का दांव खेल सकती है।
भाजपा की राजनीतिक धुरी बने विक्रांत
डॉ.रमन सिंह के मुख्यमंत्री बनने के बाद भाजपा की राजनीति में भी व्यापक परिवर्तन आया,महल की राजनीति के मुख्य आधार रहे सिद्धार्थ सिंह के भाजपा की राजनीति के कमान संभालते ही भाजपा को मजबूती मिली। वे चुनाव तो नहीं जीते पर उनके राजनीतिक कद का भाजपा को फ़ायदा मिला। फिर सिद्धार्थ सिंह के पुत्र और डॉ.रमन सिंह भांजे विक्रांत सिंह ख़ैरागढ़ की सियासत की मुख्य धुरी बने। वे लगातार नगर पालिका से जनपद होते हुए जिला पंचायत पहुंचे और अब भाजपा के दावेदारों में अग्रणी पंक्ति में हैं। विक्रांत लगातार पार्टी में सक्रिय हैं। या यूं कहें कि ख़ैरागढ़ में भाजपा संगठन की राजनीति के केंद्र बिंदु हैं। संगठन से लेकर सभी निर्णयों में उनकी सीधी दखल है। और भाजपा युवा मोर्चा की सीधी पसंद हैं। और विधानसभा उपचुनाव में मुख्य दावेदार। डॉ.रमन सिंह के ममेरे भाई सचिन बघेल भी जिला पंचायत पहुंचे। और वे भी भाजपा संगठन के पदों पर निरन्तर सक्रिय हैं। हालांकि उन्होंने बीते वर्षों में भी खुद को सीधी दावेदारी से पृथक ही रखा है।
जनमुद्दों को लेकर सक्रिय है खम्मन
राजनीतिक और जातिवादी पृष्ठभूमि के बीच नए दौर में नए नाम भी सामने हैं,जो अपने राजनीतिक ठौर मज़बूत करने संघर्ष कर रहे हैं। भाजपा की राजनीति में सबसे प्रमुख नाम खम्मन ताम्रकार का है। छुईखदान जनपद के उपाध्यक्ष रहे खम्मन साल्हेवारा से लेकर राजनांदगांव जिले तक में जनमुद्दों को लेकर सक्रिय हैं। और उनका नाम भी भाजपा की फेहरिस्त में शामिल हैं। कांग्रेस सरकार के विरुद्ध भी खम्मन लगातार बिगुल फूंक रहे हैं।खम्मन के पिता भाजपा संगठन के पुराने नामों में से एक है। और भाजपा के एक धड़ा खम्मन की दावेदारी का समर्थन कर रहा है।
इनकी भी है दावेदारी
00 कांग्रेस की राजनीति में प्रदेश कांग्रेस सचिव नीलेंद्र शर्मा,पदम कोठारी, राजेश पाल,उत्तम सिंह,नवनिर्वाचित नगरपालिका अध्यक्ष शैलेंद्र वर्मा जैसे नाम भी हवा में तैर रहे हैं।
00 भाजपा में भी गिरिराज किशोर दास वैष्णव,स्वरूप वर्मा जैसे नाम भी गाहे बगाहे अपनी दावेदारी रख रहे हैं।
राजनीतिक समृद्धता के बावजूद खाली हैं हाथ
पारिवारिक और राजनैतिक समृद्धता के बावजूद विकास के नाम ख़ैरागढ़ विधानसभा को वो नहीं मिला। जिसका वो हकदार रहा है। जिला निर्माण के नाम पर भाजपा हो या कांग्रेस ख़ैरागढ़ को छल ही मिला है। रोज़गार के नाम पर भी हाथ खाली हैं। स्वास्थ्य सुविधाएं बद से बदतर हैं। एशिया के पहले संगीत विश्व विद्यालय का तमगा होने के बावजूद रोज़गार के नाम पर सिर्फ कोरी घोषणाएं मिली है ।
किसके कितने वोटर ?
00 लोधी समाज के लगभग कुल 60 हज़ार वोटर हैं।
00 साहू समाज के लगभग कुल 58 हज़ार वोटर हैं।
00 अनुसूचित जनजाति वर्ग के लगभग कुल 30 हज़ार वोटर हैं।
00 अन्य जातियों को मिलाकर लगभग 62 हज़ार वोटर हैं।