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नहीं रहे ख़ैरागढ़ के विधायक देवव्रत सिंह,51 वर्ष की आयु में हृदयगति रुक जाने से हुआ निधन Featured

 

ख़ैरागढ़ में शोक की लहर,शाम 4 बजे होगा अंतिम संस्कार

 

ख़ैरागढ़. रियासत के राजा और ख़ैरागढ़ विधानसभा के विधायक देवव्रत सिंह का 52 साल की उम्र में निधन हो गया। देर रात उन्हें सीने में दर्द और बेचैनी की शिकायत हुई,जिसके बाद उन्हें ख़ैरागढ़ अस्पताल लाया गया। बीएमओ डॉ. विवेक बिसेन ने बताया कि अस्पताल लाने के साथ ही श्री सिंह अचेत हो चुके थे। जिसके बाद उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। रात्रि 3 बजे घटित इस हृदय विदारक घटना की सूचना मिलते ही पूरे क्षेत्र में शोक की लहर दौड़ गई है। उनके पार्थिव देह को ख़ैरागढ़ स्थित कमल विलास पैलेस में अंतिम दर्शनों के लिए रखा गया है। गुरूवार को उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। विधायक देवव्रत सिंह पूर्व से डायबिटीज से पीड़ित थे। जानकारी मिलते ही सुबह 4 बजे से ही कमल विलास पैलेस में समर्थकों की भारी भीड़ उमड़ने लगी थी।

अजेय योद्धा के रूप में खुद को किया पुनर्स्थापित

 

अपनी माता स्व.रानी रश्मि देवी सिंह के आकस्मिक निधन के बाद राजनीति में आए स्व.देवव्रत सिंह ने मात्र 25 वर्ष की उम्र में विधानसभा चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। जिसके बाद उन्होंने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा। 3 बार विधायक रहे। फिर 1 बार सांसद रहे। राजनीति में एक ऐसा दौर भी आया जब उनके सांसद चुनाव लड़ने के बाद विधानसभा की सीट खाली हो गई और उनकी पहली पत्नी पद्मादेवी सिंह को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा तो राजनीतिक पंडितों ने देवव्रत सिंह के दौर को खत्म मान लिया था। लोकसभा में मधुसूदन यादव से हार के बाद राजनीतिक तौर पर उन्हें निर्वासित माना जा रहा था। पर वे लौटे और खुद को साबित किया। कांग्रेस और भाजपा के दिग्गजों की भीड़ में वे खुद के दम पर चुनाव जीते और खुद को अजेय योद्धा के रूप पुनर्स्थापित किया।

केंद्रीय विद्यालय बड़ी देन

 

वैसे तो ख़ैरागढ़ में उनके किए विकास कार्यों की लंबी चौड़ी श्रृंखला है। जिन्हें समेटना मुश्किल है। पर अपने संसदीय कार्यकाल में पहली बार नियमों को शिथिल करवाकर उन्होंने ख़ैरागढ़ को केंद्रीय विद्यालय की सौगात दिलवाई। वे यहीं नहीं रूके कुछ ही महीनों में ही केंद्रीय विद्यालय का नया भवन स्वीकृत करा लिया। और साढ़े सात करोड़ की लागत से नया भवन भी तैयार कर लिया।

सरल व्यक्तित्व के थे धनी

 

राजपरिवार में जन्मे होने के बावजूद उनमें लेश मात्र अहंकार नहीं था। यही उनकी लोकप्रियता का मुख्य कारण था। मिलनसारिता ऐसी की एक आम आदमी भी आसानी से उनसे संवाद कर सकता था। प्रखर वक्ता, अद्भुत नेतृत्व क्षमता के चलते राजनीतिक परिदृश्य में उनका नाम चिर स्थाई रूप में अंकित हो गया।

 

ऐसा रहा राजनीतिक सफ़र

 

00 राजनीतिक पदार्पण के साथ 15 सालों तक विधायक रहे

00 लोकसभा लड़े और ढाई साल सांसद रहे।

00 छतीसगढ़ युवक कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे।

00 कांग्रेस संगठन में राष्ट्रीय प्रवक्ता, महासचिव जैसे पदों को सुशोभित किया।

 

ऐसा रहा पारिवारिक जीवन 

 

स्व.राजा रविंद्र बहादुर सिंह व स्व.श्रीमति रानी रश्मि देवी सिंह की दूसरी संतान के रूप में देवव्रत सिंह का जन्म हुआ था। पहला विवाह छतरपुर रियासत की पद्मादेवी सिंह के साथ हुआ। और दूसरा विवाह विभा देवी सिंह से हुआ। पद्मादेवी सिंह और देवव्रत सिंह की पुत्री शताक्षी सिंह और आर्यव्रत सिंह हैं। जो अंतिम समय में उनके साथ रहे। परिवार में उनकी बड़ी बहन उज्जवला सिंह के साथ ही उनके बच्चे रहते हैं। 

कमल विलास पैलेस छोड़,उदयपुर को बनाया निवास 

 

बदली राजनीतिक परिस्थितियों और जनता से अपनी दूरी कम करने स्व.सिंह ने ख़ैरागढ़ कमल विलास पैलेस छोड़ छुईखदान ब्लॉक के उदयपुर को अपना स्थाई निवास बना लिया था। कुछ दिनों पहले ही खुद के फेसबुक पेज उन्होंने अपनी पुत्री शताक्षी को महल के सजावट का श्रेय देते हुए तस्वीरेँ साझा की थी।

 

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