चुनावी चर्चा-1 / नामांकन दाखिले के बाद चौक-चौराहों पर चुनावी चर्चा तेज हो गई है। हम ऐसी ही कुछ चर्चाओं को सिलसिलेवार आप तक पहुंचाएंगे ताकि आप भी जान सकें कि आम मतदाता क्या सोच रहा है? मंगलवार दोपहर तकरीबन 12 बजे। खैरागढ़ का नया बस स्टैंड। एक टेबल पर दो समझदार। चाय की चुस्की और चुनाव पर चर्चा। एक व्यवसायी है और दूसरा किसान। एक शहरी वोटर है तो दूसरा ग्रामीण मतदाता। दोनों शिक्षित हैं। बातचीत से ही पता चला। उम्र भी 35-40 के करीब ही समझो। काखर जोर हे ऐ दारी? नीली जिंस और सफेद शर्ट पहने व्यापारी ने चाय की चुस्की लेते हुए हल्के-फुल्के अंदाज में पूछा। तिन डहार भगही। टेबल के दूसरी तरफ नीली जिंस और हल्की पीली शर्ट पहने किसान ने उसी लहजे में जवाब दिया। ‘तिन डहार भगहि मतलब! तुमन कोन ल देहु?’ (व्यापारी ने जोर देकर मन टटोलने की कोशिश की।) ‘जइसे ते जानबे नई करस।’ (किसान आधा बोलकर चुप हो गया।) ‘जानत हों यार, तोर से सुनना चाहत रेहेंव। दु झन तो तुमर जात सगा आय। फेर तिसर डहार काबर भगहि?’ ‘ठीक कहना हे तोरो, फेर अदमि-अदमि में फरक नई हो थे जी। एक झन जीतिस तो पांच साल दिखबे नई करिस। जेन हारे रिहिस तेनहो मुंहु नई दिखइस।’ ‘अच्छा तबहे तेहां तिसर डहार भगत हस’ ‘मोर ल छोड़, ते बता? तें तो शहर के अदमी आस। है कोई मुद्दा? बीचों बीच खराब सड़क बनगे, अंधा मोड़ जस के तस अपन जगह मे खड़े हे। है कोनहो आवाज उठइया?’ ‘ठीक कहात हस यार, मुद्दा के बात कोनहो नई करे। खाली जात अउ क्षेत्रवाद के बात करत हें।’ ‘तोर गांव तो गंडई क्षेत्र में हे, उहां का महोल हे? क्षेत्रवाद हावि रहि का?’ ‘क्षेत्रवाद काबर हावि रहि! तिसर अदमि भी तो हमरे क्षेत्र में रहिथे। अउ अब तो सिंबल के कारण हल-महल के झगड़ा ही खतम हो गे हे’ ‘ते तो अइसे एकतरफा बोलत हस जइसे वहि जितत हे। सही मे जीत जही का?’ ‘धीर धर, जल्दबाजी मत कर। ओखरो कार्यकाल ल देखे हवन। घंटों बइठारे रहाय। नवा लइका मन तो जानबे नई करे। अभि-अभि पहिचानना शुरु करे हवें। शहरे वाले एकतरफा देहु लगत हे!’ ‘हां, अइसने लगत हे। अउ माहौल भी तो शहर से ही बनही।’ ‘लगाबे शरत, ऐ दारि तो गांव से ही महोल बनही। जीतही कोन, तेन ला नई बता सकंव। काबर की कोनहो जात वाले ल देबो कहिथे तो कोनहो अपन क्षेत्र के अदमि ला।’ ‘ठीक बोलत हस तेंहा। तोड़फोड़ के मुआवजा दिलाय बर कोनहो नई आवत हे। अंधा मोड़ के बाते करना बंद कर दे हें। अभी इहि घटिया सड़क मे चुनावी गाड़ी घला दउड़ही, फेर कोनहो एखर बारे में नई बोलय।’ ‘बोलहिं गा…। बोलहिं काबर नई! फेर कार्रवाई कुछु नई होवय। चुनाव के दु-तीन महिना पहिले हि तो आंदोलन करे रिहिन। काय होइस?’ ‘छोड़ यार, हम तो भैया सोच ले हन… कोन ला देना हे। बे-मन से देइंगे, फेर देइंगे वहिच ला’ ‘हमर जात में तो दु फाड़ हो ही, अब सोचे ल लगहि… ।’ 'ले त फेर मिलबो... बहुत काम हे...' किसान ने चाय के पैसे दिए और दोनों अपनी-अपनी गाड़ी में सवार होकर निकल लिए। और इसे भी जरूर पढ़ें... रमणासन में योगी का राम राग, सुनाई यूपी की कहानी, बोले- आपदा में राहुल गांधी को याद आती है इटली वाली नानी |