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आर्टिस्ट का रोल ही है समाज को सुंदर बनाना- नेवरे
जंगल में ढूंढा फ्लेवर/ इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय में इंटरनेशनल ग्राफिक्स आर्ट फेस्टिवल में आए चित्रकार रघु नेवरे नागपुर से 150 किमी दूर ताड़वा के जंगल में रहते हैं। वहीं स्टूडियाे बना रखा है। वे कहते हैं जंगल में एक नया फ्लेवर है। पेश है नेवरे से बातचीत के कुछ अंश:-
90% लाइफ तो ट्रैफिक में ही खत्म हो रही है
सवाल: शहर और गांव का आर्ट कितना भिन्न है?
जवाब: मुझे घूमकर काम करने में मजा आता है। पांच साल हो गए नागपुर से 150 किमी दूर एक ताड़वा के जंगल में स्टूडियो बनाकर काम कर रहा हूं। शहर में ट्रैफिक साउंड, प्रदूषण आदि के चलते 90 फीसदी लाइफ खत्म हो जाती है। असल जीवन जंगल में है। जैसे खैरागढ़। यहां एक नया फ्लेवर है।
ऊंचाई तक पहुंचना है तो फील करो
सवाल: ज्यादातर स्टूडेंट डिग्री लेकर दिल्ली, मुंबई, कोलकाता जैसे बड़े शहरों की तरफ भागते हैं?
जवाब: असल में हमारा एजुकेशन सिस्टम ही गड़बड़ है। हमें ए फॉर एप्पल ही सिखाया गया है। दिमाग को एक दायरे में रखा गया है। आप एजुकेटेड हो जाओ। अकाउंट करने मेरे यहां आओ। डिग्री ले लो। मेरी बिल्डिंग बनाओ। आपको सर्विस करने के लिए ही पढ़ाया जाता है। आपकी जिंदगी इनकम के लिए ही है। भीमसेन जोशी का आलाप सुनो। उसमें तो कोई शब्द नहीं है, लेकिन आपको वह फील कराता है कि आपको मैं सातवें आसमान पर ले जा रहा हूं। जिन्होंने पूरी जिंदगी पैसा कमा लिया, अब क्या करेंगे? फील लेना स्टार्ट किया तो उस ऊंचाई तक पहुंचेंगे।
दिमाग को स्टॉप करो तो समझ आएगी खूबसूरती
सवाल: एक आर्ट आसानी से समझ में आ जाता है और दूसरे को समझने के लिए मशक्कत करनी पड़ती है?
जवाब: आर्ट में एक फील होता है। इसे आपको लेना पड़ता है। यह आपकी ताकत पर निर्भर है। अगर आप दुनियादारी में उलझे हो तो महसूस नहीं कर सकते। खूबसूरती को फील करने के लिए दिमाग को स्टॉप करना पड़ेगा और दिल को काम पर लगाना पड़ेगा। जैसे ही आप फील करेंगे कलाकृति में जान आ जाएगी। एब्स्ट्रैक्ट आर्ट फील करने की चीज है। बहुत आसान है इसे समझना।
खैरागढ़ जैसी यूनिवर्सिटी पूरे हिंदुस्तान में नहीं
सवाल: प्रो. नागदास कहते हैं कि खैरागढ़ को कल्चरल विलेज बनाना चाहिए?
जवाब: खैरागढ़ विश्वविद्यालय से तो पुराना प्यार है। नागदास का सपना तो अभी शुरू हुआ है। देखना तो ये कैसे बढ़ेगा। अभी पूरे हिंदुस्तान में खैरागढ़ जैसी यूनिवर्सिटी कहीं नहीं है। जेजे स्कूल ऑफ आर्ट सिर्फ ढांचा रह गया है। वहां न स्टूडेंट है और न ही टीचर। आर्टिस्ट का रोल ही है समाज को सुंदर बनाना। खजुराहो का आर्ट देखो। अजंता की पेंटिंग्स देखो। हमें अपने स्टूडेंट को यही सीख देनी है ताकि देश सुंदर बने।
(जनवरी 2018 में दैनिक भास्कर में प्रकाशित)
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