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पत्रकार - राजू यदु की कलम से
राजनांदगांव। एक मजबूत इरादों वाले मुखर इंसान प्राकृत शरण सिंह का यूं खामोश हो जाना, उनके जानने वालों को निराशा की गर्त में धकेल दिया है। पत्रकारिता जगत ने अपना एक योद्धा खो दिया। आम आदमी के साथ खड़ा रहने वाला, उनकी आवाज को उठाने वाला चला गया। पत्रकार प्राकृत शरण सिंह का जीवन और उनकी पत्रकारिता विद्रोह, सृजन और स्वतंत्रत विचारों की मिशाल थी। सामंतवाद व भ्रष्ट व्यवस्था के खिलाफ वे हमेशा विद्रोही के रूप में खड़े रहे। वे लोकतांत्रिक व्यवस्था और साम्यवाद के पैरोकार थे। सृजन की बात करें तो उन्होंने पत्रकारिता जीवन में सदैव उन लोगों को पहचान देने की कोशिश की जो विपरीत परिस्थितियों में समाज के लिए कुछ कर रहे हैं या करना चाहते हैं। वे किसी विचारों में बंध कर नहीं रहें। आम तौर इंसान किसी न किसी विचारों के प्रति आसक्त होता है। पर उनके साथ ऐसा नहीं था। पत्रकारिता जीवन में संरक्षण या लालच को नकार कर आगे बढ़ना ही उनकी बुनियादी प्रवृत्ति थी। पत्रकार की कलम को पकड़ लेना और उसे अपने हिसाब से लिखवाने के वे सख्त खिलाफ थे। यह भी एक सत्य है कि उन्होंने पत्रकारिता में खबरों के लिए संबंधों की परवाह नहीं की। यही वजह है कि भ्रष्ट व्यवस्था में उनके विरोधियों की लंबी फेहरिस्त है। हालांकि उनके अंर्तमन में प्राकृत शरण की पत्रकारिता को लेकर अंधरूनी सम्मान है, इसे उनके विरोधी भी नकार नहीं सकते। आम आदमी के हितों के लिए सत्ता के समक्ष सवाल उठाना और जरूरत पड़ने पर उनके खिलाफ जाकर नुकसान उठना उनका स्वाभाव था।
पत्रकारिता उनका पैशन था। उन्होंने विचारों और लेखन को साधने में कठिन तपस्या की थी। यही वजह है कि उनकी लेखनी जब चलती थी तो करप्ट सिस्टम की धज्जियां उड़ जाती थी। सरलता, सहजता और परिस्थियों को स्वीकारने की उनकी जबर्दस्त क्षमता थी। काफी कम उम्र में उन्होंने पत्रकारिता जगत में उपलब्धियां हासिल की। शुरूआती दौर में छोटे पदों में रहने के बाद भी वे अपने लेखन के दम पर अपना स्थान और सम्मान पाने में सफलता प्राप्त की।
जगत विशन भोपाल,मध्यप्रदेश, राज एक्सप्रेस बड़वानी,मध्य प्रदेश, दैनिक भास्कर राजनांदगांव के ब्यूरो चीफ, भास्कर भिलाई में डिजीटल हेड, भिलाई पत्रिका में सीनियर रिपोर्टर और रायपुर से निकलने वाली सबसे पुरानी और प्रतिष्ठित अखबार महाकौशल का संपादक रहने के बाद वे कोरोना काल में खैरागढ़ वापस लौटें। यहां दैनिक भास्कर की एजेंसी में बड़ी सहजता से काम करते थे। एक बार बातों-बातों में मैंने उनसे पूछा भैया आप इतने बड़े स्तर पर काम कर चुके हैं, अब खैरागढ़ ब्लाक में काम कर रहे हैं, आप सामंजस्य कैसे बैठाते है। उन्होंने कहा, मैं पत्रकार हूं। पत्रकार छोटा बड़ा नहीं होता। आप किस स्थान पर हैं या किस पद पर हैं या मायने नहीं रखता। मायने रखता हैं आपका आपका काम। संस्थानों में बतौर जिम्मेदारी पद दिए और लिए जाते हैं, वह अस्थायी होता है। किंतु पत्रकार का पद तो हमेशा रहता है।
प्राकृत शरण सिंह का जन्म खैरागढ़ के प्रतिष्ठित गहरवार परिवार में सन 18 नवंबर 1980 को हुआ था। माता-पिता शिक्षक थे। प्राकृत शरण सिंह का स्वाभाव अपने दादाजी से मिलता-जुलता था। उनके दादा लाल शरण सिंह की भी करीब 39 वर्ष की अल्पायु में मौत हो गई थी। कम उम्र में जितना उनके पास अधिकार था, वह काफी संपत्ति बना लेते लेकिन वे उसूलपसंद इंसान थे। स्वाभिमानी इंसान थे। यही गुण प्राकृत शरण में भी देखने को मिलता था। वे उसूलपसंद व्यक्ति थे। जो ईमानदार हैं, कर्मवीर हैं वहीं उनकी निकटता प्राप्त कर पाते थे।
पिछले दिनों 8 अप्रैल को वे कोरोना पॉजीटिव आए थे। सब कुछ ठीक चल रहा था। अचानक ईश्वर नाराज हो गए। 15 अप्रैल को प्राकृत सिंह के सेवानिवृत्त पिता की मृत्यु हो गई। प्राकृत शरण जी की तबीयत बिगड़ी उन्हें भिलाई रेफर किया गया। वहां उनकी तबीयत सुधर रही थी। परिजनों से उनकी बातें भी हो रही थी। 19 अप्रैल की देर शाम तक सब सही चल रहा था। अचानक देर रात करीब 2 बजे उनकी तबियत बिगड़ने लगी। ... और वह हो गया जिसकी कल्पना तक किसी ने नहीं की थी। पत्रकारिता जगत का चमकता सितारा खो गया। खैरागढ़ को बेटा रूठ गया। समाज को दिशा देने का माद्दा रखने वाला, समाज का चिंतक प्राकृत शरण सिंह की सांसे उखड़ गई। वे हमें छोड़ कर चले गए। हां उनके विचार जिंदा है। उन्होंने हमेशा विचारों को जिया है। प्राकृत शरण सिंह विचार बनकर हम सबके बीच सदैव रहेंगे।
उन्हें अपनी जन्मभूमि खैरागढ़ के लिए अथाह प्रेम था। उनकी चिंता के केंद्र में हमेशा खैरागढ़ का रियासतकालीन वैभव और भविष्य का विकसित और संस्कारित खैरागढ़ होता था। उन्होंने खैरागढ़ को पहचान दिलाने में काफी प्रयास भी किए। किंतु अभी बहुत कुछ करना बाकी था, वे इसके लिए लड़ भी रहे थे, किंतु भगवान को कुछ और ही मंजूर था। उनका देह खत्म हो गया हैं किंतु आत्मा नहीं मरती। पता नहीं क्यों ऐसा लगता है, खैरागढ़ के प्रति उनका लगाव और अपने अधूरे कार्यों को पूरा करने के लिए वे खैरागढ़ लौटेंगे।