खैरागढ़. जनपद पंचायत छुईखदान में मुख्य कार्यपालन अधिकारी (सीईओ) द्वारा नियमों को ताक पर रखकर एकल हस्ताक्षर से करोड़ों रुपये आहरण करने का मामला सामने आने के बाद वित्तीय अनियमितता का बड़ा घोटाला उजागर हो गया है।
पंचायत राज अधिनियम 1993 की धारा 66(4) और पंचायत लेखा नियम 1999 के तहत यह अनिवार्य है कि जनपद पंचायत से राशि दोहरा हस्ताक्षर – सीईओ एवं सहायक लेखा अधिकारी (या कलेक्टर द्वारा अधिकृत अधिकारी) से ही आहरित की जा सकती है। बावजूद इसके, सीईओ द्वारा 8 माह से अधिक समय से सिंगल हस्ताक्षर से राशि निकाली जा रही है, जो स्पष्ट रूप से नियम का उल्लंघन है।
प्रशासन को गुमराह करने का प्रयास
जनपद सीईओ ने अपने जवाब में दावा किया कि सहायक लेखा अधिकारी का पद रिक्त होने के कारण एकल हस्ताक्षर से राशि आहरण किया गया है और नियुक्ति के बाद ही दोहरे हस्ताक्षर की प्रक्रिया अपनाई जाएगी। लेकिन यह जवाब स्वयं सीईओ की दोषिता को सिद्ध करता है, क्योंकि जब तक संयुक्त हस्ताक्षर की व्यवस्था न हो, किसी भी परिस्थिति में राशि आहरित नहीं की जा सकती।
यह तर्क शासन को गुमराह करने का प्रयास है, जो यह दर्शाता है कि सीईओ ने जानबूझकर वित्तीय नियमों का उल्लंघन किया।
सभापति ने जताई नाराज़गी
जनपद पंचायत सभापति ज्योति जंघेल ने कहा, “सिंगल हस्ताक्षर से आहरण की जानकारी नहीं थी। यदि ऐसा हुआ है तो नियमानुसार दोषियों पर कार्रवाई होनी चाहिए। भारतीय जनता पार्टी भ्रष्टाचार को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करेगी।”
जनपद सदस्य रीना यदु ने भी इस विषय में अनभिज्ञता जताई और कहा कि “इस विषय पर सामान्य सभा में जानकारी ली जाएगी।”
वहीं, विधायक प्रतिनिधि विनोद ताम्रकार ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “यह कैसा सुशासन है जहां नियमों को दरकिनार कर घोटाले किए जा रहे हैं? भाजपा सरकार केवल सुशासन का ढोंग कर रही है। भ्रष्टाचार पर आंख मूंद लेना ही भाजपा की नीति बन चुकी है।”
प्रशासन की चुप्पी भी संदेहास्पद
सभापति द्वारा 17 मई 2025 को जिला पंचायत सीईओ को भेजे गए पत्र के बावजूद अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है, जो प्रशासन की निष्क्रियता और मिलीभगत की ओर संकेत करता है। इसके बाद 6 जून को पुनः शिकायत की गई, जिसमें सीईओ पर शासन को गुमराह करने और आर्थिक क्षति पहुंचाने का आरोप लगाया गया है।
मांग: अनुशासनात्मक कार्रवाई व वसूली
सभापति ने सीईओ के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई, साथ ही अब तक एकल हस्ताक्षर से निकाली गई पूरी राशि की जांच कर दोषियों से वसूली की मांग की है।
लोकतांत्रिक व्यवस्था और प्रशासनिक पारदर्शिता पर सीधा हमला
यह मामला केवल वित्तीय अनियमितता नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक व्यवस्था और प्रशासनिक पारदर्शिता पर सीधा हमला है। यदि समय रहते कार्रवाई नहीं हुई तो यह प्रकरण बड़े घोटाले का रूप ले सकता है, जिससे शासन की साख और जनता का भरोसा दोनों ही खतरे में पड़ जाएंगे।